शुक्रवार, 8 मई 2015

सुर-१२८ : "पीड़ित मानवता का संकल्प... विश्व रेडक्रॉस दिवस...!!!"


न हो कोई दुखी
न ही कोई रोता
न ह कोई पीड़ित
न हो कोई व्यथित
इसलिये बनी...
'रेडक्रॉस सोसाइटी'
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मित्रों...,

यूँ तो हम सभी अपने आस-पास न जाने कितने दुखी आहत व्यक्तियों को देखते हैं और न जाने कितनी प्राकृतिक आपदाओं या अनेकानेक घटनाओं में अनगिनत लोगों को तड़फते हुये रोते-बिलखते देखते लेकिन कितने ही लोग होते जिनकी आत्मा इनसे द्रवित होती और उनमें भी केवल चंद ही होते जो इन ह्रदय विदारक दृश्यों को देखकर न सिर्फ़ स्वयं भी व्यथित होते बल्कि उनके लिये कुछ करने की भी मन में ठान लेते और इस तरह ही दुनिया में ऐसे महान व्यक्तित्व सामने आते जो अपनी संकल्प शक्ति से विश्व परिदृश्य में इस तरह उभरते कि संपूर्ण जगत के लिये मिसाल बन जाते तभी तो देश-विदेश तक उनकी कीर्ति का डंका बजता ऐसे ही थे मानवता के उपासक ‘जीन हेनरी डयूनेन्ट’ जिनका जन्म ८ मई १८२८ में हुआ और इन्होने इटली में युद्ध के दौरान रक्तपात के अनेक भयानक दृश्य देखें जिन्होंने इनके मन-मस्तिष्क पर इस कदर छाप छोड़ी कि उन रोते हुये लोगों के आंसू पोछने, उनके गम को बांटने तथा उनके लिये कुछ करने का दृढ़ निश्चय कर लिया और उस कार्य के लिये अपने दिमाग में एक स्पष्ट रुपरेखा भी बना ली । इस तरह ‘रेडक्रॉस’ नाम की एक संकल्पना ने उनके भीतर जन्म लिया जिसके मूलभूत विचारों को उन्होंने १८६२ में ‘सूवेनिर डी सफेरिनो’ नामक एक पुस्तक में प्रकाशित किया इसमें ही उन्होंने युद्द में घायल जनों की तकलीफों का दर्दनाक विवरण भी दिया साथ ही यह भी दर्ज किया कि किस प्रकार से उनको एवं उन जैसे ही दूसरे दर्द से कराहते मानवों के कष्टों का निवारण समिति बनाकर किया जा सकता हैं इस तरह उन्होंने अपनी किताब में पीड़ित मानवता की सेवा करने के अपने स्वप्न को शब्दों में उतार कर रख दिया जिसका त्वरित असर उसे पढ़ने वाले उन सभी लोगों पर हुआ जो खुद भी इसी तरह सेवा करने के इच्छुक तो थे लेकिन इस कार्य को किस तरह अंजाम दिया जाये समझ नहीं पा रहे थे अतः जब उन्होंने उनके इतने स्पष्ट निति निर्धारक अभियान के बारे में पढ़ा तो वे सब उनका साथ देने के लिये आगे जिससे कि तुरंत सबने मिलकर एक बैठक में युद्ध में आहतों की स्थिति के सुधार हेतु उपयोगी साधनों को एकत्रित करने हेतु एक आयोग का गठन किया जिनका काम अपनी समिति के लिये एक प्रस्तावित समझौते का प्रारूप बनाना थे जिससे कि उनके अभियान में जुड़ने वाले ‘स्वयंसेवक’ अपने-अपने दल बनाकर चिकित्सा सेवा के लिये तैयार हो सके इस तरह ‘रेडक्रॉस’ नाम की एक अंतर्राष्ट्रीय संस्था का जन्म हुआ तथा इस संस्था की पहचान के लिए ‘सफ़ेद पट्टी’ पर ‘लाल रंग’ के ‘क्रास’ चिह्न को मान्यता दी गई जो कि आज पूरे विश्व में पीड़ित मानवता की सेवा का प्रतीक बन गया है और इस ‘अन्तर्राष्ट्रीय रेडक्रॉस’ ने अपनी संस्था के लिये 'Find the Volunteer in side you' (अपने अन्दर के स्वयं सेवक को पहचानें) का नारा दिया है।

इस अंतर्राष्ट्रीय संस्था का प्रमुख उद्देश्य रोगियों, घायलों तथा युद्धकालीन बंदियों की देखरेख करना इसके अतिरिक्त इस सोसाइटी के उद्देश्यों की सूची काफ़ी लंबी हैं---

विश्व के सभी देशों में ‘रेडक्रॉस आंदोलन’ का प्रचार करना

रेडक्रॉस’ के आधारभूत सिद्धांतों के संरक्षक के रूप में कार्य करना

युद्धकाल में बंदियों की सहायता तथा अन्य पीड़ितों की सहायता के लिए अंतर्राष्ट्रीय एजेन्सी का निर्माण करना

बंदी शिविर की देखरेख करना, युद्धबंदियों को संतोष और आराम पहुँचना और सभी प्राप्य प्रभावों के प्रयोग से उनकी स्थिति सुधारने का प्रयत्न करना

शांति तथा युद्ध के समय में भी सरकारों, राष्ट्रों तथा उपराष्ट्रों के बीच शुभचिंतक मध्यस्थ के रूप में कार्य करना

युद्ध बीमारी अथवा आपत्ति से होनेवाले कष्टों से मुक्ति का मानवोचित कार्य स्वयं करना अथवा दूसरों को ऐसा करने के लिए सहायता देना ।

अपने सतत कार्यों से इस एजेन्सी ने विभिन्न सेनाओं तथा जहाजी बेड़ों के अनगिनत खोये हुयें इंसानों का भी पता लगाया तथा युद्धबंदियों को सहायता दी, इसके अंतर्गत ५०० से अधिक बंदी-शिविरों की नियमित देखरेख हुई और उनको अधिक सुविधाएँ प्रदान की गई लगभग 150 वर्षों से पूरे विश्व में रेडक्रॉस के स्वंय सेवक असहाय एवं पीड़ित मानवता की सहायता के लिए काम करते आ रहे हैं ।

भारत ने भी वर्ष १९२० में पार्लियामेंट्री एक्ट के तहत ‘भारतीय रेडक्रॉस सोसायटी’ का गठन किया और तब से ही ‘रेडक्रॉस’ के स्वंय सेवक विभिन्न प्रकार की आपदाओं में निरंतर निस्वार्थ भावना से अपनी सेवाएं दे रहे हैं जिसका संबंध ‘प्रथम विश्वयुद्ध’ से है और इस समय तक इसकी लगभग १८ प्रांतीय संस्थाएँ और करोब ४१२ ज़िला शाखाएँ बन चुकी हैं तथा बंगाल की भुखमरी से लेकर कई प्राकृतिक दुर्घटनाओं के समय इसने सहायता पहुँचाई है। कहा जाता हैं कि विश्व के लगभग दो सौ देश किसी एक विचार पर सहमत हैं तो वह है ‘रेडक्रॉस’ के विचार और युद्ध का मैदान हो प्रकृति का महाविनाश लोगों की मदद के लिये  हमेशा सबसे आगे रहता हैं  ‘रेडक्रॉस’... सबको ‘विश्व रेडक्रॉस दिवस’ की शुभकामनायें... :) :) :) !!!
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०८ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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