गुरुवार, 14 मई 2015

सुर-१३४ : "संभलना आसान था... पर, हम ही बहक गये...!!!"

कोई सदा
बुलाती हैं मुझे
और...
मैं राह भटकी सी
उस और चली जाती हूँ
बिना सोचे-समझे
कि ये किसी जाल में भी
फंसा सकती हैं
मेरे आने वाले कल को
दोजख़ भी तो बना सकती हैं 
फिर भी...
बड़ी भली लगती हैं
मेरे जेहन पर तारी होती जाती हैं
सोचने-समझने की
हदों से मुझे बहुत दूर ले जाती हैं
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मित्रों...,

जीवन के रास्तों में सभी के सामने ऐसी कभी-कभी ऐसे मोड़ आ जाते हैं जबकि उसे बहुत सोच-समझकर न सिर्फ अगला कदम उठाना पड़ता हैं बल्कि उसी पर उसके आने वाले जीवन का दारोमदार भी होता हैं पर, चंद ही होते जो सही निर्णय लेकर अपना सुनहरा भविष्य बना लेते जबकि अधिकांश बहक जाते और यही गलत फ़ैसला उनके मुस्तकबिल को अंधकारमय कर देता... कुछ बानगी देखिये--- 

‘अलिज़ा’ ने अपनी आँखों से ‘रोहन’ को शोपिंग मॉल में किसी लड़की के साथ बड़े रूमानी अंदाज़ में हाथों में हाथ लेकर घुमते देखा था पर जब तक वो उनके करीब पहुँच पाती वो दोनों उस जगह से जा चुके थे फिर उसने तुरंत उसे कॉल किया तो उसने मीटिंग में होने का संदेश देकर उसे बाद में बात करने का कह दिया पर, अलिज़ा के लिये उन पलों को काटना बड़ा मुश्किल हो रहा था अतः वो तुरंत बिना सोचे समझे उसके ऑफिस की और जाने लगी लेकिन सही मालूमात न होने की वजह से वो उसे खोज नहीं पायी लेकिन ये एक-एक पल उस पर बड़ा भारी गुज़र रहा था तनाव में दिमाग़ की नसें भी फटी जा रही थी लेकिन अब उससे मुलाकात करने के अलावा कोई रास्ता नहीं था अतः वो शाम को तयशुदा जगह पर उससे मिलने का इंतजार करने लगी और जब शाम को वो उससे मिलने आया तो अपने सवालों की झड़ी लेकर वो उस पर टूट पड़ी पर उसने बड़ी ही होशियारी से न सिर्फ उसके सवालों के जवाब देकर उसे संतुष्ट कर दिया बल्कि उसके शक करने को लेकर उससे नाराज़ होकर अपना पलड़ा भी भारी कर लिया कि उसे उसकी मुहब्बत पर ऐतबार होता तो आज वो यूँ उससे जिरह न करती और इस तरह उसकी आँखों देखी सच्चाई को उसने अपनी लच्छेदार बातों से यूँ भरमाया कि बेचारी खुद पर ही लज्जित हुई कि उसने किसी और को ‘रोहन’ किस तरह से समझ लिया ? जिसका खामियाज़ा अंततः उसे यूँ भुगतना पड़ा कि एक दिन ‘रोहन’ ने उसे ख़ुद अपने बीबी-बच्चों से मिलाया लेकिन तब तक इतनी देर हो चुकी थी कि उसके पास आत्महत्या के सिवा कोई मार्ग ही शेष न बचा था

एक दिन यूँ ही गलती से ‘मिली’ के सामने एक गलत ‘वेबसाइट’ क्या खुल गयी उसे तो समझो लत लग गई रोज उसे देखने की जिसकी वजह से हमेशा प्रथम आने वाली वो लड़की अपने बारहवीं के इम्तिहान में फ़ेल हो गयी और अब उसका दिमागी इलाज़ एक बड़े मनोचिकित्सक के पास चल रहा हैं

इसी तरह अपने दोस्तों के साथ समूह बनाकर पढने जाने वाला किशोर ‘जुनेद’ का धीरे-धीरे बीयर से शुरू होने वाला सिलसिला कब ‘ड्रग्स’ और ‘अपराध’ की दिशा में मुड़ गया उसे खबर ही नहीं हुई बल्कि उसे तो होश तब आया जब उसने खुद को जेल की सलाखों के पीछे पाया और अब वो किशोर बंदी गृह में अपना जीवन गुज़ार रहा हैं जिसने उसके भावी जीवन की नींव को ही हिलाकर रख दिया

अपनी कॉलेज की पढ़ाई के लिये ‘रमन’ ने एक बड़े शहर के सबसे बड़ी यूनिवर्सिटी में दाखिला क्या लिया वहां के लोगों का उच्च स्तरीय रहन-सहन और ‘हाई सोसाइटी’ के रंग-ढंग ने उस पर अपनी चकाचौंच का ऐसा असर डाला कि वो सब कुछ भूलकर अपने परिवार वालों को धोखे में रखकर अपने आपको उनके स्तर का दिखाने की होड़ में अनजाने में ही चोरों के एक गिरोह में शामिल हो गया और हर तरह के जुर्म में पारंगत हो गया पर कब तक खुद को सबसे छूपा पाता आख़िरकार एक दिन पुलिस की गोली का शिकार होकर लावारिस की तरह मारा गया ।        

‘सलोनी’ हमेशा से फिल्मों की एक नामी-गिरामी हीरोइन बनना चाहती थी और सबके समझाने-बुझाने पर नहीं मानती थी तो माता-पिता ने उसे पहले पढ़ाई पूरी कर फिर इस और ध्यान देने का मशविरा दिया लेकिन एक दिन उसने अख़बार में एक विज्ञापन देखा और फिर किसी को भी बिना बताये रातों-रात घर से माँ के जेवरात चुराकर पहुँच गयी सपनों की नगरी मुंबई और फिर एक दिन उसी अख़बार में उसके बलात्कार के बाद मार देने की घटना की सचित्र न्यूज़ छपी इस तरह उसका खबर बनने का ख़्वाब यूँ दर्दनाक तरीके से पूरा हुआ

इन सभी काल्पनिक किरदारों और उनके साथ होने वाली दुखद या धोखे की कहानियां भले ही गढ़ी गयी हो पर, अमूमन ख़ास तौर पर युवा वर्ग में और कभी-कभी किसी भी वय में सबके साथ ऐसा होता कि उसे पता होता कि वो जो करने जा रहा / रही हैं वो सही नहीं हैं या उसके दुष्परिणाम उसे पता होने के बाद भी उसका उसी रास्ते पर जाना यही बताता कि कुछ चीजें खुदे के इख़्तियार में नहीं होती इसलिये सबके समझाने के बावजूद भी बंदा उसे कर गुज़रता तो ऐसे में उन सब किस्सों का क्या जिन्हें रोज देखने, पढने और सुनने के बाद भी हम उससे कोई सबक नहीं लेते या हमें ये लगता कि ऐसा हमारे साथ नहीं हो सकता जबकि कितना भी समझदार इंसान हो कुछ मामलों में वो भी अपने उपर काबू नहीं रख पाता तभी तो जानते-बुझते भी या दिखाई देने पर भी आदमी गड्डे में गिर जाता या बार-बार मना करने पर भी एक बच्चा आग को पकड़ने के बाद ही उसके ताप को समझ पाता... ये सबके साथ न भी हो तो क्या जिनके भी साथ होता केवल वही इसे समझ पाते कुछ तो बाद में संभल भी जाते तो कुछ को जिंदगी ये मौका भी नहीं देती इसलिये जरूरी हैं कि अपने आँख-नाक-कान को खुले ही न रखा जाये बल्कि अपने आपको हमेशा ‘स्मार्ट’ या ‘डेरिंग’ कहलाने की जगह कभी ‘बुद्दू’ या ‘डरपोक’ सुनने का आदि भी बना लिया जाये गर, उससे हमारी जिंदगी संवरती हैं... आजकल सबसे ज्यादा आदमी अपने झूठे ‘ईगो’ में ही बर्बाद होता हैं जिससे वो किसी भी हालत में समझौता नहीं करना चाहता फिर भले ही उसे पतन का ही  समाना क्यों न करना पड़े... लेकिन झुकना गंवारा नहीं... जो उसके वजूद को घास की तरह हर तूफ़ान में बचाने की क्षमता रखता... :) :) :) !!!          
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१४ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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