रविवार, 3 मई 2015

सुर-१२३ : "व्यंग्य : मैं भी एक औरत फेकुंगा...!!!"


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मित्रों...,

(आज ‘विश्व हास्य दिवस’ पर विशेष...)


आज तिहाड़ जेल में बंद एक कैदी की कालकोठरी के सामने आकर एक अपराधी नतमस्तक हो गया और बोला--- गुरुवर मेरे अहोभाग्य कि आपके दर्शन कर अपने आपको कृतार्थ कर सका न जाने कब से ये नजरें आपके दीदार के लिये तरस रही थी और आज आखिर मेरी मनोकामना पूरी हो ही गयी

कालकोठरी में बंद कैदी मूक अपने सामने खड़े इस अपराधी को देख रहा था उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था कि ये कौन हैं और उसकी इन बातों का अर्थ क्या हैं ???

तभी वो आगे बोला, मेरे आदर्श, मेरे गुरु मैं पहले आपको अपना परिचय दे दूँ फिर आगे बताता हूँ क्या मैं कहना चाहता हूँ... बंदे का नाम जानकर क्या करेंगे बस, आपके चरणों की धूल हूँ जिसने एकलव्य की भांति आपको अपना गुरु मान अंधभक्ति की इसलिये आज आपके पास तक पहुँच सका

शायद आपने भी सुना हो ज्यादा पुरानी बात नहीं अभी २९ अप्रैल को ही ‘मोगा’ में इस ख़ाकसार ने एक साथ दो औरतों जिसमें से एक तो बच्ची थी को चलती बस से बाहर फेंक दिया और इस तरह आपकी शिक्षा का न सिर्फ मान रखा बल्कि आपकी नाक को और ऊंचा कर दिया आप जानते नहीं जब से आपने १६ दिसंबर को चलती बस से एक लड़की को फेंका था तब से ही हम आपके फेन बन गये थे और आपकी पूजा शुरू कर दी थी सच, गुरुदेव आपकी इस हरकत ने तो हम जैसों को एक नयी दिशा दे दी कि इस तरह रातो-रात फेमस हुआ जा सकता हैं लेकिन हम का करें अपनी गुरुभक्ति दिखाने का मौका ही बड़ी देर से मिला तो हमने भी देर नहीं की और आपसे एक कदम बढ़कर ही काम किया गुरूजी जितनी पब्लिसिटी आपको मिली और सब नेतन लोगों ने भी अपने बयान में जिस तरह आपको ही सपोर्ट किया तो हमारा मनोबल और भी अधिक बढ़ गया और फिर जब आपकी डाक्यूमेंट्री फ़िल्म बनी तो हमसे रहा न गया बस, अब आप हमें गुरुमंत्र दे दियो कि किस तरह हम भी आपकी तरह अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फेमस हो सकते हैं        
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०३ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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