बुधवार, 13 मई 2015

सुर-१३३ : "लघुकथा : टेलीपैथी...!!!"


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मित्रों...,


जहाज ने सुदूर क्लांत उदास पक्षी को देखा तो बोला---

ऐ प्रिय खग...

यदि तुमने सब कुछ देख लिया हो

तुम्हारी उड़ने की लालसा खत्म हो गयी हो

तुमने अपनी आज़ादी से वो पा लिया हो जिसकी वजह से मुझे छोड़ा था

और... तुमको ये अहसास हो गया हो कि तुम्हारा निर्णय गलत था तो मेरे प्रियतम तुम वापस आ जाओ तुम्हारा ये जहाज अब तलक तुम्हारी बाट जोह रहा हैं ।

उसी रात ‘सुधा’ ने देखा कि तीन साल पूर्व अपने अंधे लक्ष्य की खातिर उसके वर्षों पुराने प्रेम को ठुकराकर जाने वाला ‘चंदर’ अपने घर वापस आ गया हैं ।

उसने बस इतना ही कहा, अचानक... तुमने कैसे जाना कि मैं तुम्हें याद कर रही हूँ... पुकार रही हूँ ?

चंदर बोला, इन हवाओं ने आकर कानों में बताया ।

और... दोनों उसी तरह खिलखिलाये जैसे बरसों पहले प्रेम का इज़हार कर मासूमियत से एक दूजे का हाथ थामकर कभी हंसे थे ।
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१३ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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