शनिवार, 2 मई 2015

सुर-१२२ : "भक्त प्रहलाद की आस्था का चमत्कार... श्रीनृसिंह अवतार...!!!"

वैशाख शुक्ल
चतुर्दशी तिथि आई
साथ नृसिंह जयंतीलाई
प्रकृति में ख़ुशीयां छाई
चारों तरफ रौशनी जगमगाई ।
.....
भक्तों ने आरती गाई
झूम-झूमकर घंटियाँ बजाई
भक्त प्रह्लादकी अमर गाथा सुनाई
जिसने दैत्य कुल की कीर्ति बढ़ाई
सबको सहर्ष इस दिन की ढेर सारी बधाई ॥
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मित्रों...,

भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भागवद्गीतामें स्वयं अपने श्रीमुख से कहा हैं कि---

प्रह्लादश्चास्मि दैत्यानांअर्थात मैं दैत्यों में प्रह्लाद हूँ

जो स्वयं अपने आप में भक्त शिरोमणि बालक प्रह्लादकी अपूर्व तपस्या साधना और भक्ति का प्रमाण हैं कि प्रभु खुद भी यदि राक्षस कुल में जन्म ले तो प्रह्लादही बनना चाहेंगे जिसने कि अपनी अनवरत श्रद्धा से न सिर्फ अपने वंश का गौरव बढ़ाया बल्कि आगे आने वाली अपनी पीढ़ी को भी तार दिया हम सभी ने अपने बचपन में इस नन्हे सुकुमार भगवत भक्त की कथा सुनी या पढ़ी हैं कि प्राचीन काल में कश्यपनाम के एक महान ऋषि थे जिनकी दितिनाम की एक पत्नि थी और उनके दो पुत्र हुए जिनमें से एक का नाम 'हरिण्याक्ष' तो दूसरे का 'हिरण्यकशिपु' रखा गया परंतु दोनों ही भाई की प्रवृति राक्षसी थी इसलिये जब हिरण्याक्षने पृथ्वी को नुकसान पहुंचाना चाहा तो भगवान विष्णु’ ‘वराह  अवतार' लेकर आये और उसका वध कर दिया तब अपने भाई की इस दर्दनाक मौत से उसके भाई हिरण्यकशिपुका बेहद क्रोध आया और उसने अपने भाई की मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सदैव अपराजित रहने का वरदान प्राप्त करने की ठानी जिसके लिये उसने हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या की और सृष्टि रचयिता ब्रह्माजीको अपनी साधना से प्रसन्न कर उनसे अजेय होने का वरदान मांग लिया जिसे पाकर उसका अहंकार बहुत अधिक बढ़ गया और उसने सीधे स्वर्ग पर चढ़ाई कर वहाँ रहने वाले सभी देवताओं और लोकपालों को खदेड़ वहां पर अपना शासन स्थापित कर लिया और इस तरह वो सपूर्ण ब्रम्हांड का अधिपति बन गया क्योंकि उसे प्राप्त अपराजित रहने के वर के कारण सभी देवता लाचार थे उसकी इस विजय ने उसके दंभ को कई गुना बढ़ा दिया इतना कि वो अपने आप को ही जगत देवता समझने लगा फिर क्या जब पाप का बोझ बढ़ता हैं अधर्म का राज्य होने लगता हैं प्रजा अन्याय से घबराकर हाहाकार करने लगती हैं तो इस धरती को पाप से मुक्त कराने भगवान स्वयं दानव को मारने धरती पर आते हैं ।

इस कथा में भी यही हुआ और राक्षस के घर भक्त ने जन्म लिया जब हिरण्यकशिपुकी पत्नी कयाधुने एक पुत्र को जन्म दिया जिसका नाम 'प्रह्लाद' रखा गया परंतु इतने बड़े राक्षस कुलमें पैदा होने के बावज़ूद भी बालक प्रह्लादके भीतर किसी भी तरह का दुर्गुण या किसी भी तरह का कोई ऐब नहीं था बल्कि वो तो  बाल्यकाल से ही अपना सारा जीवन सृष्टि पालक चतुर्भुज विष्णुकी आराधना को समर्पित कर चुका था इसलिये पूर्ण विश्वास के साथ उनका नाम जप और अपने पिता के दुष्कृत्यों का विरोध करता रहता यहाँ तक कि उनके अपने पिता ने उन पर अनंत अत्याचार किया उनको मारने की हर संभव कोशिशें की लेकिन जिसके सर पर स्वयं भगवान का वरद हस्त हो उसे फिर कौन मार सकता हैं या झुका सकता हैं तभी तो भगवान-भक्ति से 'प्रह्लाद' का मन हटाने और उसे अपने जैसा बनाने के लिये हिरण्यकशिपुने हर संभव प्रयत्न किये  तथा हर नैतिक-अनैतिक हथकंडे को अपनाया पर फिर भी वो उस मासूम अबोध बालक प्रह्लादको उसके भक्ति पथ से विचलित न कर सके तो उन्होंने उसकी जान लेने की कोशिशें प्रारंभ कर दी लेकिन ईश्वर कृपा से वे हर बार अपने पिता के अपनाये गये प्रयास से बच जाते थे जिसके कारण अब अन्य लोग भी उसकी देखा देखी भगवान विष्णुकी पूजा करने लगे थे जिसने हिरण्यकशिपुकी क्रोधाग्नि को और अधिक भड़का दिया ।

तब एक दिन भरे दरबार में उन्होंने प्रह्लादसे कहा---"तू जो कहता हैं कि तेरा भगवान तो हर स्थान पर हैं क्या ये सच हैं?" जिसे सुनकर प्रह्लादने बड़े ही कोमल स्वर में कहा कि---"हाँ पिताजी प्रभु तो हर जगह विद्यमान हैं।" सुनते ही हिरण्यकशिपुका पारा चढ़ गया और वो एक खंबे की तरफ इशारा कर गुस्से में बोले "अगर ऐसा हैं तो फिर तो वो जरुर इस खंबे में भी होगा ?" ‘प्रह्लादने प्रसन्न भाव से मुस्कुराकर हाँ में उत्तर दिया जिससे हिरण्यकशिपुने उसे भगवान समझ खंभे पर ही जोर से आघात किया और तभी  खंभे को चीरकर श्रीनृसिंह भगवानप्रकट हो गए और हिरण्यकशिपुको पकड़कर अपनी जाँघों पर रखकर उसकी छाती को नखों से फाड़ उसका वध कर दिया तथा श्रीनृसिंहने प्रह्लादकी भक्ति से प्रसन्न होकर उसे अमर होने का वरदान देते हुये कहा कि आज के दिन जो भी मेरा व्रत करेगा, वह समस्त सुखों का भागी होगा एवं पापों से मुक्त होकर परमधाम को प्राप्त होगा अत: तब से ही वैशाख शुक्ल चतुर्दशी को नृसिंह जयंतीके रूप में मनाया जाता है ।

कहते हैं कि आज के दिन निम्न मंत्र का जाप करना चाहिए-

ॐ नृम नृम नृम नर सिंहाय नमः

जिससे हमारे समस्त दुखों का निवारण होता है तथा भगवान नृसिंहकी कृपा प्राप्त होती है तो सभी प्रेम से बोले भक्त शिरोमणि प्रह्लाद अम्र रहें... श्रीनृसिंह भगवान् की जय... :) :) :) !!!
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०२ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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