सोमवार, 25 मई 2015

सुर-१४५ : "संवेदनशील अभिनेता और इंसान... सुनील दत्त...!!!"

सिर्फ़...
अभिनय ही नहीं
हर नेक काम किया
देश-समाज को भी उन्होंने
अपने कर्मों का योगदान दिया
तभी तो आज हमने उनको याद किया
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मित्रों...,

‘स्टार ऑफ़ द मिलेनियम’ और ‘एंग्री यंग मेन’ के नाम से जाने वाले जीते-जागते अभिनय संस्थान ‘अमिताभ’ बच्चन ने एक बार अपनी सोशल साईट के प्रोफाइल पर एक स्टेट्स लिखा था कि---“मैं ऐसा मानता हूं कि रुपहले पर्दे पर एंग्री यंग मैनका किरदार सर्वप्रथम ‘महबूब खान’ ने अपनी फिल्म मदर इंडियामें पेश किया था और ‘बिरजू’ के इस किरदार को इस फिल्म में ‘सुनील दत्त’ ने बेहद ही खूबसूरती के साथ निभाया था अतः ‘एंग्री यंग मैनके खिताब के असली हकदार वो नहीं बल्कि ‘सुनील दत्त’ हैं

जितनी साफ़गोई से उन्होंने इस सच्चाई को न सिर्फ़ उज़ागर किया बल्कि दुनिया के सामने स्वीकार भी किया वो स्वतः ही ये ज़ाहिर करता हैं कि आज जिस अभिनेता की पुण्यतिथि पर हम उसे याद कर रहे हैं उसने सभी के जेहन में अपनी गहरी छाप छोड़ी हैं यूँ तो उसके अभिनय के अनेक रंग हैं लेकिन ‘बिरजू’ ने जिस तरह से इतिहास रचा वो आज भी हिंदी सिनेमा में मील का पत्थर माना जाता हैं । इस एक फिल्म ने विश्व परिदृश्य पर जिस तरह से अपनी उपस्थिति दर्ज की उसकी वजह से उसने देश-विदेश में अपनी न सिर्फ़ धूम मचा दी बल्कि कीर्तिमान का परचम भी लहरा दिया और आज भी अनेक कलाकार उस तरह के किरदार को अभिनीत करने का स्वपन देखते हैं क्योंकि जिस दौर के लोग और फिल्मों  की हम बात कर रहे हैं हैं उन्होंने ही तो ‘हिंदी सिनेमा’ की उस बुलंद ईमारत जिसे कि आज हम ‘बॉलीवुड’ कहते हैं की आधारशिला रखी और फिर अत्याधुनिक तकनीकों एवं सर्वसुविधा युक्त साधनों के अभाव के बावज़ूद भी अपने अथक परिश्रम और नवीनतम प्रयोगों से उसकी एक-एक ईट रखी जिसकी वजह से आज भी वो उतनी ही मजबूती से टिकी हुई हैं । जिसने आज तरक्की तो बहुत ज्यादा कर ली और कमाई के नाम पर भी बॉक्स ऑफिस पर नित नये रिकॉर्ड भी बनते रहते और आज के ये हीरो-हीरोइन चंद दृश्य जिसमें कि आधे से अधिक काम तकनीशियन द्वारा ही अंजाम दे दिया जाता के लिये करोड़ों की रकम वसूल करते लेकिन फिर भी न ही आज के कलाकार न ही आज की फ़िल्में ही उन पुराने अदाकारों और फिल्मों के मुकाबला कर पाते अब तो किसी भी फिल्म के रिलीज़ के चंद घंटे बाद ही उसके ‘हिट’ या ‘फ्लॉप’ होने की घोषणा हो जाती और महज़ दो-तीन दिन में उसकी आय का एक नया कीर्तिमान भी बन जाता जबकि पहले तो फ़िल्में सालों-साल चलती और अपने प्रदर्शन से सिल्वर जुबिली, गोल्डन जुबिली, प्लेटिनम जुबली मनाती थी ।

६ जून, 1929 को झेलम जिले के खुर्द गांव में जन्मे ‘बलराज रघुनाथ दत्त’ उर्फ ‘सुनील दत्त’ बचपन से ही अभिनेता बनने की ख्वाहिश रखते थे परंतु उन्हें सफलता एकदम से ही हासिल नहीं हुई बल्कि एक लंबे समय तक संघर्ष की कड़ी राहों पर चलना पड़ा यहाँ तक कि ‘साउथ एशिया’ के सबसे पुराने रेडियो स्टेशन ‘सीलोन’ की हिंदी सेवा में बतौर अनाउंसर काम भी किया तब जाकर कहीं जाकर उनकी शुरुआत १९५५ में उनकी प्रथम प्रदर्शित फिल्म रेलवे प्लेटफार्मसे हुई जो कि सफल न हो सकी पर, जैसा कि होता हैं कि मंजिल तक पहुंचने के लिये पहला कदम जरूरी होता और जिसके पीछे-पीछे दूसरे कदम रखने से ही वो हासिल होती हैं इस तरह उन्होंने फ़िल्मी दुनिया में पदार्पण कर दिया और अन्य लोगों को अपने काम से प्रभावित किया लेकिन ये केवल पहला पड़ाव था जिससे गुजर कर ही अंतिम पायदान तक जाना था तो वो भी रुके नहीं और इसके बाद जिस किसी फिल्म में उन्हें जो भी भूमिका मिली उन्होंने उसे स्व्व्कर कर पूरी ईमानदारी से अपना काम किया पर वक़्त से पहले किस्मत से ज्यादा किसी को मिला हैं न किसी को मिलता तो उनका भी वो सुनहरा समय अभी आया न था वैसे वो आता भी किस तरह जब पहले से ये तय था कि उनकी तकदीर का ताला तो एक कालजयी कृति मदर इंडियासे ही खुलेगा । ये उस समय की एक ऐसी फिल्म थी जिसमें ‘सुनील दत्त’ ने अपने किरदार के लिये जोखिम लिया था क्योंकि जो रोल उन्होंने चुना था वो नकारात्मक था पर, उन्हें अपने आप पर पूरा विश्वास था तभी तो इस फिल्म में उन्होंने उसे उतनी ही विश्वसनीयता से अदा किया और उसी फिल्म में उनकी माँ का अभिनय करने वाली महान अदाकारा ‘नर्गिस’ से शादी करने का भी एक महत्वपूर्ण फैसला किया जिसे उतनी ही शिद्दत से निभाया भी पर, उन दोनों के अलग-अलग मज़हब होने के कारण जब उनसे उनके होने वाले बच्चों के धर्म के बारे में सवाल किया तो वे बड़ी सहजता से बोले, “मेरे बच्चे हिंदू या मुस्लिम की नहीं, बल्कि इंसान की संतान होंगे" इस तरह उन्होंने आज से पचास-साठ बरस पहले ही समय से आगे चलना शुरू कर दिया था इस तरह वो आज भी कई सिने कलाकारों के लिये प्रेरणा स्त्रोत हैं

उसी समय में उन्होंने अभिनय के अलावा १९६३ में प्रदर्शित होने वाली अपनी फिल्म फिल्म ये रास्ते हैं प्यार के के माध्यम से फिल्मों के निर्माण क्षेत्र में भी कदम रख दिया था और फिर निर्देशन में भी अपने हाथ आजमाते हुये वर्ष १९६४ में उन्होंने फिर एक बार जोखिम लेते हुये एक अनूठी फिल्म बनाने का निर्णय लिया जिसने किसी फिल्म में सबसे कम कलाकार होने का ‘गिनीज बुक’ रिकॉर्ड बनाया क्योंकि ये पूरी फिल्म अतीत को जीते एकमात्र किरदार के इर्द-गिर्द ही घुमती हैं जिसे उन्होंने ने ही अभिनीत किया था केवल अंतिम दृश्य में नर्गिस नजर आई थी । उन्होंने कभी भी किसी नायिका प्रधान या मल्टी स्टारर फिल्म में काम करने से कोई ऐतराज़ नहीं किया क्योंकि उन्हें अपने काम पर भरोसा होता था तभी तो वे उनके सबके बीच भी अपनी उपस्थिति उतने ही जोरदार तरीके से दर्ज कराने में सफल हो जाते थे इस तरह अपने रास्ते पर चलते हुये उन्होंने लगभग सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय करते हुए हर तरह के किरदार निभाये जिनकी वजह से उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के अलावा फ़िल्मी दुनिया में योगदान के लिये ‘दादा साहब फाल्के रत्न अवार्ड’ के साथ-साथ ‘पदमश्री पुरस्कार’ से भी सम्मानित किया गया

उनके जीवन में एक और महत्वपूर्ण पड़ाव आया जब उनकी पत्नी ‘नर्गिस’ का अचानक ही कैंसर की बीमारी की वजह से देहांत हो गया तो उसने उनके अंदर की मानवीयता को और भी अधिक जगा दिया और फिर उन्होंने समाज को इस खतरनाक बीमारी के प्रति जागरूक बनाने का पुनीत संकल्प लिया और इस तरह अपनी पत्नी की याद में 'नर्गिस दत्त फाउंडेशन' की स्थापना की और उसके बाद से ही अब उनका रुझान सामाजिक कार्यक्रमों अधिक होने लगा और समाज सेवा के इस काम को बड़े स्तर पर करने के लिये उन्होंने ‘राजनीति’ के क्षेत्र में भी अपना कदम रख दिया और कांग्रेस का दामन थाम कर पांच बार (1984, 1989, 1991, 1999 और 2004) लोकसभा चुनाव जीते और 2004 में ‘यूपीए’ की सरकार में उन्हें खेल एवं युवा मंत्रालय सौंपा गया । उनके अंदर एक अत्यंत संवेदनशील  मासूम इंसान था जो समाज एवं देश के प्रति अपने फर्ज़ को समझता था इसलिये शायद, उन्होंने पदयात्रा का अभूतपूर्व नेक काज भी किया जिसकी वजह से हमें भी उनको करीब से देखने का अवसर मिला... तो आज उनकी पुण्य तिथि के इस दुखद अवसर पर उस लोकप्रिय नेता, अभिनेता, निर्माता-निर्देशक और उससे भी उपर एक जज्बाती इंसान को ये हैं मेरी शब्दांजलि... :) :) :) !!!   
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२५ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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