मंगलवार, 19 मई 2015

सुर-१३९ : "लघुकथा : विपत्ति-काल" !!!


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मित्रों...,



जैसे हमाम में सब नंगे होते हैं वैसे ही अकाल के कारण आने वाली कयामत के दिन सब भूखे होते हैं । मृत्युभय अमीरी-गरीबी का भेद मिटा देता हैं जब दुनिया के रेगिस्तान में आपका काफिला, रसद, रुतबा सब छुट जाता हैं तब सिर्फ 'मृग मरीचिका' ही आपको जिलाती हैं।

जब आदमी भूख-प्यास से मर रहा हो तो भले ही वो कितना रईस हो या जीवन भर 'हाइजिन' का राग अलापता रहा हो... गंदे से गंदा पानी पीने या खाने से भी परहेज नहीं करता बशर्तें उससे उसकी जान बचती हो । सबको इंसानियत और बचपन में पढ़े भूले बिसरे नैतिक सबक एकाएक याद आने लगते हैं और सब एक साथ दुआ में हाथ उठा देते हैं जिसे सुनकर एक बार फिर परमात्मा सृष्टि को बचा लेता हैं केवल प्राकृतिक आपदा में ही ऐसा असर हैं कि जब वो सब पर एक साथ आये तो सबको एक सूत्र में बांध देती हैं ।
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१९ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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