गुरुवार, 7 मई 2015

सुर-१२७ : "लघुकथा---मरणोपरांत...!!!"


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मित्रों...,


अभी उसने हाथ में कलम उठायी थी कि तभी उसका बालसखा कमरे में आया और बोला, आज तो 'फेसबुक' पर तूने कमाल का आर्टिकल लिखा हैं... पढ़कर आनंद आ गया । लिखने वाले ने निर्विकार भाव से कहा, बस एक तू ही ऐसा कहता हैं और कोई तो तारीफ नहीं करता और घर पर भी सराहना या प्रोत्साहन के दो बोल बोलना तो दूर कोई हमें किसी काबिल भी नहीं समझता देखा नहीं कितने कम लाइक या कमेंट्स आते हैं ।

उसका दोस्त बोला... लगता तू अपनी लिखी बातें ही भूल जाता.... यार, तू ने ही तो एक बार लिखा था... "हमारे देश की एक खासियत और हैं कि यहाँ जीते जी नहीं मरने के बाद पूजा जाता हैं"।

और... कमरा दोनों दोस्तों के ठहाकों से गूंज उठा ।
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०७ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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