सोमवार, 18 मई 2015

सुर-१३८ : "अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस... देता विरासत सहेजने का संदेश...!!!

हर
युग की
जरुर होती
कुछ ख़ासियत
होते कुछ अलहदा
यादगार नमूने
जिन्हें बचाये रखना
चाहता हर कोई
ताकि आने वाली पीढ़ी
जान सके गुज़रा ज़माना
जो फ़कत बन गया फ़साना
गर, न हो मुमकिन
उसके लिये संग्रहालय बनाना
तो, होगा बड़ा ही मुश्किल उसे बचाना
इसलिये बने जागरूक हम सभी
वो बेशकीमती धरोहर न मिटे कभी
'अंतर्राष्ट्रीय धरोहर दिवस' का ये संदेश
हमें सब तक हैं पहुँचाना...
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मित्रों...,

आज हम अपना या दुनिया का जो भी इतिहास पढ़ते हैं यदि उसके साथ प्रमाणिकता साबित करने वाले अवशेष भवन, खंडहर, मूर्ति, पाण्डुलिपियाँ, रत्न, शिलाचित्र किताबें, मुद्रा या किसी भी अन्य रूप में हमारे सामने न हो तो हमें उसे समझना कितना कठिन हो साथ ही उस कालखंड को जानना भी उतना सहज न रह जाये क्योंकि आज जो कुछ भी हम विश्वासपूर्वक अपने प्राचीन युग के बारे में कह पाते हैं उसमें बहुत बड़ा योगदान इन ऐतिहासिक वस्तुओं का हैं जो हमें अपने आपको ही खोजने के दरम्यां खुदाई या किसी अन्वेषण में प्राप्त हुई जिसने उस समय के बारे में हमको महत्वपूर्ण जानकारियां उपलब्ध कराई और ये सब मुमकिन हुआ उन शोधकर्ताओं की वजह से जिन्होंने हर बाधा को पार करते हुये न सिर्फ ये सब ज्ञानवर्धक चीजें ही जुटाई बल्कि इनकी पड़ताल कर उस दौर का विस्तृत वर्णन भी लिख दिया और हमारी इन पुरातन धरोहरों को सहजने का उल्लेखनीय काम भी किया तभी तो आज हम आदिम युग से वर्तमान तक की सभ्यता, संस्कृति, भाषा, परिवेश, रहन-सहन, खान-पान, मुद्रा, परिधान आदि के बारे में हर बात जानते हैं यदि ये सब न होता तो जरा सोचकर देखें कि हम किस तरह से जान पाते कि हम किस तरह धीरे-धीरे असभ्य से सभी बने अपने आपको परिष्कृत किया अपने आपको समय के साथ-साथ बदला कभी ‘चकमक’ पत्थर से अग्नि को पैदा करने के अलावा, कंकरों से गणना करने का काम किया तो कभी पेड़ की छालों से अपने जिस्म को ढाकना सीखा तो कभी जानवरों को भुनकर खाने की जगह फसल उगाने की शुरुआत की तो कभी जंगल में रहने की बजाय घर बनाने के बारे में सोचा और हमारे पूर्वज भी इतने समझदार कि उन्होंने अपने समय की इन सारी मूल्यवान जानकारियों को किसी शिलालेख या चर्मपत्र या भित्तिपत्र में लिखवा दिया जिससे कि आगे आने वाली पीढ़ी भी इस बदलाव को जान सके बस, समझा लो इसी तरह उन्होंने इन अनमोल विरासत को संजोने का आगाज़ कर दिया जिसे फिर सुरक्षित रखने के लिये ‘संग्रहालय’ बनाने का विचार किया गया जैसा कि हम सब जानते है कि ‘संग्रहालय’ वास्तव में ऐसी इमारत या स्थान होता जहाँ पर कि किसी विषय विशेष या व्यक्ति से संबंधित हर तरह के सामान, दस्तावेज और कीमती धरोहर को सहेजकर के साथ-साथ सार्वजानिक प्रदर्शन हेतु भी रखा जाता हैं

ये केवल उन चीजों को ही संग्रहित करने का काम करते जिनका कि ऐतिहासिक महत्व होता लेकिन इसके अतिरिक्त हमारे घर-परिवार में भी तो ऐसी कई वस्तुयें होती जो हमारे खानदान की जड़ों से जुडी होती और हमारी लापरवाही से कहीं गुम हो जाती अतः उनके संरक्षण के बारे में भी सोचना हमारा ही दायित्व हैं शायद, इसी उद्देश्य को ध्यान में रखते हुये १९८३ में सयुंक्त राष्ट्र ने १८ मई को ‘अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस’ मनाने का निर्णय लिया ताकि लोग हर वो मूल्यवान चीज़ जो कि किसी ख़ास जानकारी से ताल्लुक रखती या आने वाले समय में महत्वपूर्ण बन सकती हैं उसके प्रति सजग बने और उसे सहेजने का प्रयास करें जिससे कि नई पीढ़ी भी उससे परिचित हो सके और इतने प्यारे मकसद से इस दिन को मनाने की आधारशिला रखी गयी । इस दिन को और अधिक रोचक बनाने के लिये 'अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद' हर साल एक विषय का चयन भी करता है जिससे कि जन-सामान्य के मन में इसके प्रति उत्सुकता जगायी जा सके और संग्रहालय के सभी बड़े जानकार उसके अनुरूप संग्रहणीय धरोहरों को एक साथ एक जगह भी प्रदर्शित करें साथ ही ऐसी व्यवस्था हो कि संग्रहालय देखने आने वाले लोगों को संग्रहालय विशेषज्ञों से मिलाया जा सके एवं उस तरह की सामग्री भी मुहैया करायी जा सके जो संग्रहालय की चुनौतियों से अवगत कराये क्योंकि 'अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय परिषद' के अनुसार, "संग्रहालय में ऐसी अनेक चीज़ें सुरक्षित रखी जाती हैं, जो मानव सभ्यता की याद दिलाती हैं तथा संग्रहालयों में रखी गई वस्तुएं प्रकृति और सांस्कृतिक धरोहरों को प्रदर्शित करती हैं” । अब तो भारत में भी 'अंतरराष्ट्रीय संग्रहालय दिवस' बड़े जोर-शोर से मनाया जाता और आज के दिन अनेक तरह के कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते हैं जिनका मुख्य उद्देश्य आम जनता, छात्रों एवं शोधार्थियों को विभिन्न संग्रहालयों में उपलब्ध समृद्ध सांस्कृतिक विरासत की जानकारी देना है 'भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग' के तहत देश में ४० से अधिक संग्रहालय हैं जिनमें आज के दिन 'भारत सरकार' के द्वारा निःशुल्क प्रवेश दिया जाता है फिर भी शायद ही लोग इसे वहां जाकर व्यतीत करते हो अतः उन सबको ये पता होना चाहिये कि जितना भी हम अपने आपको जानेंगे उतना ही हम अपने देश व समाज के करीब भी होंगे और अपने गौरवशाली अतीत को भी जान सकेंगे ।

अब इस आधुनिक युग में हम किताबों या इंटरनेट के माध्यम से ही देश-विदेश के संग्राहलयों को देखने के आदि हो चुके हैं अतः ऐसे में इस दिवस की महत्ता और भी अधिक बढ़ जाती हैं ताकी कम से कम आज के दिन तो हम उन जगहों पर जाकर उन प्राचीन वस्तुओं को देखकर उस समय की कल्पना कर उसे महसूस कर सकें... जिस अनुभूति से हम बहुत दूर होते जा रहे हैं शायद, इसलिये अब हर अहसास को जीने के लिये कोई न कोई दिन मुकर्रर किया जा रहा हैं जिससे कि भले ही एक दिन ही सही हम सब जो अपनी जड़ों तो छोड़ों अपनी धरा से भी बहुत दूर होते जा रहे हैं अब तो शायद, जमीन पर ही हमारे कदम न पड़ते हो हवा में जो उड़ते रहते लेकिन जब भी कोई ऐसा दिन आता तो उसके बहाने ही सही हम उसके महत्व को समझ तो पाते... तो फिर आज ‘अंतर्राष्ट्रीय संग्रहालय दिवस’ में सब बिना ‘टाइम मशीन’ के ही अपने गुज़रे हुये समय में पहुँच जाये... चार कदम अपने आस-पास मौजूद किसी ऐसी जगह में तो जाये... और खुद को उस समय में पाये... इस तरह से ये दिवस मनाये... सबको इस दिन की अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!  
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१८ मई २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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