मंगलवार, 1 सितंबर 2015

सुर-२४४ : "बेशक करो इकतरफा प्यार... पर, न करो गले पर वार...!!!"


‘चाहना’
किसी को बुरा नहीं
‘मानना’
अपना भी बुरा नहीं
पर, जबरन
उस पर हक जताना
या उसको अपना बनाना
ये हो सकता हैं
कुछ भी मगर...
‘प्यार’ तो हर्गिज़ नहीं
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मित्रों...,

‘चाहत’ का भाव हर एक प्राणी के भीतर होता हैं और वो जन्म लेते ही इस अहसास से परिचित हो जाता हैं ये और बात हैं कि धीरे-धीरे इसके मायने और दायरे बदलते जाते हैं तभी तो बचपन में किसी प्रिय खिलोने के बिना न रहने वाला बच्चा बड़ा होते ही उस जगह पर किसी और को रख लेता हैं और जैसे-जैसे उसकी उमर बढ़ती हैं उसकी अपनी चहेती वस्तु के प्रति दीवानगी का ग्राफ भी उसके मिजाज के अनुसार उपर ही उपर चढ़ता जाता हैं जो गर, संयम व मर्यादा की जंजीरों से बंधा न हो तो किसी आवारा कुत्ते की तरह हद से बाहर हो जाता और किसी निर्दोष को उसके पागलपन का शिकार बनना पड़ता ये और बात हैं कि अक्सर उसे अपनी उस जेहनी बीमारी का पता ही नहीं होता या दूसरों के द्वारा उसे ‘सनकी’ या ‘पागल’ की संज्ञा दिये जाने पर वो भी खुद को वही समझने लगता या कभी-कभी तो हर सीमा से परे वो केवल खुद को ही इस दुनिया का बेताज बादशाह और हर चीज़ को अपनी मिल्कियत समझता जिसकी वजह अक्सर उसका वो माहौल होता जो उसकी उन हरकतों को बढ़ावा देता जिसके कारण दिन-ब-दिन इस तरह की मनमानी करते-करते उसकी हिम्मत कटी पतंग की तरह आसमान को छूती जाती और उपर उड़ने की मियाद खत्म होने पर ही वो नीचे जमीन पर आती पर, इस तरह उसका पतन होने पर अंजाम तो तय हैं ही फिर भी जो बिंदास हर बंधन से परे उड़ रहा हवाओं में उस पर फिर किसका जोर चलता सिवाय हवाओं के जो अपनी रवानी के संग उसे भी अपने संग बहाती ले जाती और इस उड़ने के चक्कर में वो भूल जाता कि फिर जब यही हवा थमती तो उसकी सांसो की डोर को भी काट देती लेकिन इसे याद रख पाना या सोच पाना ही अगर उसके वश में होता तो क्या वो इस अंजाम को हासिल होता लेकिन उसने तो पल-पल उसको  चेताने वाली अंतरात्मा की आवाज़ को सदैव नकार दिया तो फिर किस तरह से बच सकता था

आजकल अमूमन देखने-सुनने में आता हैं कि एकतरफा प्रेम में प्रेमी अपने अलावा किसी और के बारे में न तो सोचता और न सुनना ही पसंद करता बल्कि वो तो अपने आपको और अपनी भावना को ही सर्वोपरि मानकर उसे पाना चाहता जिसे उसने अपना मान लिया इसमें अगले की रजामंदी से कोई सरोकार नहीं होता इसलिये तो कभी-कभी वो मुहब्बत की दहलीज़ को पार कर उसे अपनी जद के कारागार में बंद कर लेता या जबरन उसे अपना बना लेता अपने इश्क़ को मुक्कमल मानकर जिसका खामियाजा सिर्फ़ और सिर्फ़ उस मासूम को भुगतना पड़ता जिसे या तो उस प्रेम का पता ही न होता या फिर उसने इस तरह की हरकत की उम्मीद न की होती पर, सामने वाला तो बस, हर हाल में जिसे पसंद करता उस पर अपना हक जताने उसे अपना बनाने की हर तरह से कोशिश करता जिसके लिये यदि उसे अपने ही उस प्रियतm को मार देना भी पड़े तो गुरेज नहीं करता ऐसा भी पढ़ने में आया जबी किसी एकतरफा प्रेम ने किसी को सरेआम तेजाब डालकर जला दिया तो कभी उसको रुसवा कर दिया तो कभी उसकी जान ले ली या फिर कभी उसे उठवा लिया ये विचार किये बिना कि उसकी इच्छा या सपने क्या हैं क्यों ??? सिर्फ़ इसलिये कि वो उसको चाहता हैं ये किस तरह का प्रेम जो किसी को हर हाल में अपना बनाकर ही अपने प्रेम को पूर्ण समझता फिर चाहे उसे वो कैद कर ही क्यों न रख ले लेकिन ये भूल जाता कि प्रेम पैदा नहीं किया जा सकता यदि नहीं हैं तो वो फिर नहीं ही रहेगा लेकिन जबरदस्ती करने वालों को तो अपनी जिद के सिवा किसी की परवाह नहीं उसकी भी नहीं जिसे अपनी जान से ज्यादा चाहने का दावा कर उसकी ही जान ले लेता... उसके बाद भी जो फासला उनके बीच था वो उसी तरह कायम रहता... काश, इसे समझ ले इकतरफा प्यार  करने वाले तो कुछ जाने बच सकती हैं... मुहब्बत जिंदा रह सकती हैं... क्या नहीं... :) :) :) ???
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०१ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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