रविवार, 27 सितंबर 2015

सुर-२७० : "भगत सिंह का नाम... न भूलेगा हिंदुस्तान...!!!"


जिसकी कलम ने
कभी लिखना भी चाहा
‘इश्क़’ शब्द तो
लिखा गया ‘इंकलाब’
कि उसकी रगों में तो
घुल गया था
वतन का प्यार
जो फिर स्याही बन  
उतरने लगा इबारतों में
और कर गया बयाँ
उसकी अनकही दास्तां
जिससे अंजान था ये सारा जहां 
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मित्रों...,

आज के दिन २७ सितंबर, १९०७ को धन्य हो गयी ये धरा जिस पर जन्मा भारत माता का वो लाल जिसने अपनी उस माँ के लिये देकर अपने प्राणों का बलिदान किया त्याग महान जिसकी वजह से आज भी शहीदों की फेहरिस्त में सबसे आगे हैं उसका नाम जिसे हम सब कहते शहीद-ए-आज़म ‘भगत सिंह’ जिसको देशभक्ति विरासत में मिली थी क्योंकि उसके पिता 'सरदार किशन सिंह' एवं उनके दो चाचा 'अजीतसिंह' तथा 'स्वर्णसिंह' भी अपने देश के लोगों को विदेशी के हाथों की कठपुतली बना देख न सिर्फ़ दुखी थे बल्कि उनको आज़ाद करने की खातिर अंग्रेजों से लड़ाई भी मोल ले रहे थे जिसके कारण उनको हिरासत में ले लिया गया था पर, जिस दिन ये पैदा हुये उसी दिन उन सबको रिहा कर दिया जिसे देखकर उनकी दादी ने उसे 'भागां वाला' (अच्छे भाग्य वाला) कहा जिससे कि कालांतर में उनका नाम ‘भगत सिंह’ पड़ गया और बाल्यकाल से ही उनको अपने परिवार में अपने वतन को अपनी जान से अधिक मानने का जज्बा मिला जिसने उनके भीतर देशप्रेम का सैलाब ला दिया शायद,  तभी तो खिलोनों से खेलने की वय में उसने खेतों में अनाज की जगह बंदूक उगाने की सोची जिससे कि वो अपनी मातृभूमि को करा सके आज़ाद उन जालिमों से जिन्होंने धोखे से मासूम हिंदुस्तानियों का बना लिया था अपना ग़ुलाम और उनसे लेते थे अपना मनचाहा काम जिसे देख खौलता था हर सच्चे सपूत की रगों में दौड़ने वाला लहू कि किसी भी तरह चाहे जान देकर भी क्यों न हो उसे तो मातृ ऋण चुकाना हैं, अपनी भारत माता को फिरंगियों के चंगुल से छुड़ाना हैं और हर तरह से अपना फर्ज़ निभाना हैं ।

धीरे-धीरे जब वे बडे हुये तो बड़ी-बड़ी क्रांतिकारी संस्थाओं के सदस्य बन बडे-बडे कामों में अपना सहयोग देने लगे और जब १९१९ में जब वे केवल १२ बरस के थे उसी समय हुआ वो दिल दहला देने वाला जघन्य हत्याकांड जिसने अनगिनत निर्दोष मासूम देशवासियों के रक्त से लिखा इतिहास का सबसे दर्दनाक अध्याय जब ये पूरा देश ‘रोलेट एक्ट जिसे कि ‘काला कानून’ का नाम दिया गया था के विरोध में जगह-जगह आंदोलन कर रहा था और जिसके लिये १३ अप्रैल को ‘जलियांवाला बाग़’ में सब एकत्रित होकर सभा कर रहे थे तभी एक बेरहम ज़ालिम अंग्रेज अफसर ने असंख्य बेकुसूर लोगों पर गोलियों की धुंआधार बारिश कर उस जिंदा जमीन को कब्रिस्तान में बदल दिया तब इस हृदयविदारक घटना को सुनकर ‘भगतसिंह’ लाहौर से अमृतसर आये और उस जगह पर शहीद होने वाले तमाम शहीदों के प्रति श्रध्दांजलि व्यक्त कर उस रक्तरंजित मिट्टी को एक कांच की शीशी में भरकर रख लिया जो उनको सदा ये स्मरण कराती रहे कि उनको अपने इन सभी निर्दोष असहाय लोगों की दर्दनाक मौत और इस भूमि का अपमान करने वालों से इंतकाम लेना है उस समय भले ही वो किशोर थे लेकिन उनके कोमल हृदय पर उस समय के हालात ने बड़ा गहरा प्रभाव डाला जिससे कि उन्होंने अपनी कम उमर को नहीं बल्कि उससे भी बडे अपने इस्पाती हौंसलों से अपने आपको एक मजबूत फ़ौलादी व्यक्तित्व में ढाला जिसे कि किसी का भी भय नहीं था उसे तो किसी भी तरह से केवल अपनी भारतमाता को स्वतंत्र कराना था फिर चाहे उसके लिये उसे अपनी जान ही क्यों न देना पड़े तो जिसने पग-पग पर ऐसे करुण दृश्य देखे हो जिनसे कि आँख ही नहीं आत्मा भी नम हो जाये फिर वो भला किस तरह से अपने कदमों को रोकता जब तक कि उनमे चलने का दम हो इसलिये वो अनवरत अंतिम साँस चलता रहा ।

यदि केवल सालों से नापा जाये तो ‘भगत सिंह’ ने कोई बड़ा जीवन नहीं जिया लेकिन हर साल के हर दिन में इतना कुछ किया जितना कि सौ साल जीने पर भी कोई शायद ही कर पाये इसलिये भारत के इतिहास में उनका नाम स्वर्ण अक्षरों में अंकित हैं जो कभी भी धूमिल नहीं हो सकता कि महज २३ साल की छोटी-सी जिंदगी में २३ मार्च १९३१ को फांसी के फंदे पर झूल गये पर अपने देश के हर एक नौजवान को कर्तव्य का वो सबक दे गये जिसे पढ़कर कोई भी अपना जीवन सार्थक बना सकता... तो आज उस महान क्रांतिकारी के अवतरण दिवस पर उसको कोटि-कोटि प्रणाम... जिसने हम सबके लिये किया आत्म बलिदान... :) :) :) !!!
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२७ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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