शनिवार, 12 सितंबर 2015

सुर-२५४ : "जीवन हैं तो गेजेट्स हैं... गेजेट्स जीवन नहीं...!!!"

कोई साथ नहीं
कोई गम नहीं
गर, पास हैं...
मेरा ‘मोबाइल फोन’
तन्हाई का अहसास न होता
जब बतियाने को
कोई अंजाना साथी होता
या फिर खेलने, गाना सुनने
या कोई मूवी देखने में
वक्त का पता न चलता
कभी-कभी तो
‘शोपिंग’ भी यही हो जाती
बैठे-बैठे दिन-रात में
और रात, दिन में बदल जाती
भूख लगती तो
एक ‘आर्डर’ पर ‘डिश’ सामने आ जाती
किसी की परवाह नहीं
दुनिया की भी खबर नहीं
पर, जिस दिन ‘बेट्री’ की तरह
जिंदगी की रसद खत्म हो जाती
तब ये बात समझ में आती
कि ‘लाइफ’ कोई ‘बेट्री’ नहीं
जो दुबारा चार्ज हो जाती
‘मोबाइल’ फोन भी तो नहीं
जो फिर से रिपेयर हो जाती       
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मित्रों...,

माँ सोने से पहले कमर में आई तो देखा कि ‘रिया’ अभी भी ‘मोबाइल’ में सर झुकाये कुछ करने में लगी थी और वो उसे पीने के लिये जो गर्मा-गर्म दूध देकर गयी थी वो ठंडा होकर यूँ ही रखा था तो उनका दिमाग खराब हो गया और वो चिल्ला पड़ी... तुमने फिर से नियम तोड़ा आखिर, ऐसा क्या हैं इस कमबख्त फोन में कि तुमको न तो खाने-पीने का होश और न ही दिन-रात की खबर जब देखो तब इसे हाथ में पकड़े न जाने क्या-क्या करती रहती हो तुम्हारी जिद पर पापा ने ये इसलिये दिलाया था कि तुम्हें पढाई के कारण ‘हॉस्टल’ में रखा था लेकिन जिस वजह से इसे लिया वो तो पीछे छुट गयी और मैडम जी सब कुछ छोड़-छाड़ कर सिर्फ़ इस मशीन की साथी बन गयी पता हैं तुम्हें कब से तुम अपने रिश्तेदारों से भी ढंग से नहीं मिली अब तो तुम लोग क इस मोबाइल प्रेम की वजह से कोई घर आना भी नहीं चाहता जिसे देखो वही इससे चिपका रहता ये सब चीजें जीवन को सहज बनाने के लिये हैं लेकिन तुम लोगों ने तो उसे और मुश्किल बना दिया तरह-तरह के रोग भी गले लगा लिये पर, इसे न छोड़ा... माँ को लंबा लेक्चर देते देख ‘रिया’ ने झट लाइट ऑफ की और चादर ओढ़कर सो गयी तो उसे ऐसा करते देखा माँ बोली ऐसा न हो कि सारी रात चादर के अंदर से उसे ही देखती रहो लाओ इसे मुझे दो और बेफिक्र होकर सो जाओ तो उनकी बात सुनकर ‘रिया’ ने मन मसोसकर फोन माँ के ह्वाले किया और चुपचाप सो गयी

जब से माँ ने सुना था कि ‘रिया’ की सहेली ‘अमीषा’ मोबाइल के कारण चोटग्रस्त हो गयी थी क्योंकि वो बेख्याली में किसी से बात करती चली जा रही थी कि एकदम से कोई गाडी आई और उसका एक्सीडेंट हो गया तब से वे बेहद सतर्क हो गयी थी और ‘रिया’ का ख़ास ध्यान रहने लगी थी उन्हें तो इसे चलाना नहीं आता था पर, खबरें पढ़-सुनकर ही वो चिंतित हो जाती कभी कोई लड़की इसकी वजह से किसी बुरे आदमी के झांसे में आ गयी तो कोई इसके कारण अपराधी बन गया और किसी ने किसी का शोषण किया अतः वे नहीं चाहती थी कि उनकी बेटी उस सुविधा का अतिशय इस्तेमाल कर उन लोगों की फेहरिस्त में आये इसलिये वे बार-बार उस पर नजर रखती और उसे सतर्क करती रहती पर, आजकल के सभी बच्चों को जब इसका गुलाम देखती तो सोच में पड़ जाती कि ये पीढ़ी समझती क्यों नहीं कि ‘अति सर्वत्र वर्ज्यते’ किसी पुराने जमाने का सूत्र नहीं बल्कि आज भी उतनी ही महत्वपूर्ण हैं पर, इनको तो जितना समझाओ उतना ही बिगड़ते क्योंकि ये सोचते हैं कि हम तो पुराने जमाने के लोग ये सब नहीं समझते जबकि ये अटल सत्य हैं कि हर नई पौध अपनी पिछली संतति से आगे ही होगी हम भी थे पर, इसका मतलब ये तो नहीं कि हम ये सोचे कि हम ही सबसे आधुनिक हैं और हमारे बाद कोई हमसे आगे न जायेगा अरे, परिवर्तन तो प्रकृति का नियम हैं लेकिन संतुलन के साथ, सबके साथ सामंजस्य बिठाकर न कि अपने आपको सबसे अलग कर जैसा कि आजकल सब करते हैं ।

जो भी साधन विकसित होते हैं वो हमारी सब हमारी सुविधा और जमाने के साथ-साथ हम सबको आगे बढाने के लिये होते हैं न कि उनमें खोकर अपना आप मिटाने के लिये कहने को तो इन यंत्रों ने समस्त विश्व के लोगों को एक सूत्र में बाँध दिया, एक पटल पर लाकर एक साथ खड़ा कर दिया... सारी दूरियों को मिटा दिया लेकिन यूँ लगता कि इसने भले ही दूर के लोगों को करीब कर दिया हो लेकिन करीब के लोगों को तो बड़ा दूर कर दिया अब तो किसी के साथ एकदम पास बैठकर भी नजदीकी का अहसास नहीं होता जबकि कभी मीलों दूर के फासले में भी परदेस में बैठा कोई दिल के एकदम करीब महसूस होता था । लोगों को इसके प्रति सचेत करने के लिये एक जागरूकता अभियान उन्होंने शुरू कर दिया था जिसकी शुरुआत अपने घर से की थी और अपनी बेटी के लिये सभी यंत्रों के उपयोग का समय निर्धारित कर दिया था साथ ही जब सब लोग खाने या किसी आयोजन के लिये एकत्रित हो तो उस समय मोबाइल को प्रतिबंधित कर बिना किसी नेटवर्क के दिल की तरंगों से जुड़ने का प्रयास करने का आग्रह करती जिसके सिग्नल कभी न तो कमजोर होते न ही टूटते या किसी मशीन पर निर्भर करते इसलिये जब आज उसने अपनी बेटी को उनकी आज्ञा के बिना इस तरह नियम का उल्लंघन करते देखा तो गहरी सोच में डूब गयी कि बिना किसी नुकसान के हम क्यों नहीं जाग्रत होते ???
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१२ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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