रविवार, 20 सितंबर 2015

सुर-२६२ : "अंतरात्मा की आवाज़... करो न उसे इंकार...!!!"

करें जब
कोई भी काम
अंदर से एक आवाज़
आती तो हैं
ये ओर बात हैं कि
सबको देती न हो सुनाई
पर, कठिन घड़ी में
हमको समझाती तो हैं 
लेकिन, अक्सर हम
कर देते उसको अनसुनी
पर, जिसने भी सुनी उसकी बात
उसे न फिर हरा सके हालात
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मित्रों...,

‘दिव्यंका’ ने घर में किसी को भी बिना बताये यहाँ तक कि अपने दोस्तों से भी मशविरा किये बिन उसके शहर में ही बनने वाली एक फिल्म के ऑडिशन के लिये आवेदन तो कर दिया ये सोचकर कि जब उसकी मूवी रिलीज़ होगी तो सब आश्चर्यचकित रह जायेंगे पर, न जाने क्यों हमेशा उसे लगता कि वो कुछ गलत कर रही हैं इसकी वजह शायद, ये थी कि उसका मन अनमना था पर, वो समझ नहीं पा रही थी कि जब वो अपनी पसंद का काम करने जा रही हैं तो फिर भी उसे अच्छा क्यों नहीं लग रहा हैं ???

उसने सोचने की बहुत कोशिश की पर, कारण समझ न पाई बस, अंदर से कोई तो आवाज़ आ रही थी जिसे वो लगातार अनसुना कर रही थी ऐसे में उसने अपनी ख़ुशी को तरजीह देते हुये वही काम किया जो वो चाहती थी न कि वो जिसे उसके अंदर बैठा डर करने से मना कर रहा था और जिस दिन उसे ऑडिशन के लिये कॉल आई वो किसी को भी कुछ भी कहे बिना चुपचाप उस जगह चली गयी पर, वहां जाकर उसे लगा कि उसने गलत किया क्योंकि वहां का माहौल एकदम मूवी के लिये होने वाली शूटिंग के विपरीत था तो भीतर से किसी ने कहा कि उसे यहाँ से लौट जाना चाहिये पर, उसने जानने की कोशिश की तो उसे कहा गया कि उसका भेजा गया विडियो और पोर्टफोलियो इतना शानदार था कि उसे बिना स्क्रीन टेस्ट के ही चुन लिया गया हैं और कल से उसे शूटिंग पर आना हैं अचानक इतने बडे ऑफर को पाकर वो विस्मित रह गयी पर, जब डायरेक्टर ने उससे कॉन्ट्रैक्ट साइन करवा साइनिंग अमाउंट पेश कर दिया तो उसने भीतर घुमड़ते संशय भरे विचारों को जोर से हटा दिया और उसकी देह के अंदर कोई जो उसे ऐसा करने से मना कर रहा था उसे धता बता दिया और अगले दिन आने का वादा कर चली गयी

सारी रात उसे नींद न आई वो तो केवल आने वाले जीवन के सपनों में खोई खुद को एक स्थापित नायिका के रूप में देख अपने ही आप में मगन हो रही थी इसलिये जब कोई भीतर से उसे कहता कि यार, ये तू क्या कर रही हैं या क्या करने जा रही हैं या एक बार तो सबको बता दे न सही ज्यादा लोग लेकिन कम से कम अपनी प्रिय सहेली को ही सही इसमें शामिल कर ले तो वो झुंझला जाती कि जब इतनी आसानी से उसका बरसों पुराना ख्वाब पूरा होने जा रहा हैं तो उसका मन उसे डरा क्यों रहा हैं मन में कोई भी नकारात्मक ख्याल आखिर आ ही क्यों रहा हैं ???

हूँ... ये बेकार के विचार भी न बड़ा तंग करते हैं... वो काबिल हैं तभी तो उसका अभिनय देखें बिना ही न सिर्फ़ उसका चयन कर लिया गया बल्कि उसे उसका मेहनताना भी पेशगी के तौर पर दे दिया गया तो ऐसे में कुछ भी सोचने की जरूरत क्या उसे तो अब सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान देना हैं और जो स्क्रिप्ट आज उसे दी गयी उसे पढ़कर उसकी तैयारी करना हैं अंततः ये तय कर वो सो गयी और जब सुबह उठी तो तरोताजा होकर शूटिंग स्थल पर पहुंची तो वहां एक सेट लगा हुआ था जहाँ उसके एक दो शॉट लिये गये और इस तरह अगले एक सप्ताह तक चला तो उसे लगा कि वो भी कितनी मूर्ख थी जो इतने अच्छे ऑफर को ठुकराने जा रही थी जबकि यहाँ तो सभी कितने अच्छे हैं और कोई फालतू बात तक नहीं करता फिर धीरे-धीरे उसने महसूस किया कि अब उसके भीतर का डर भी खत्म हो चुका हैं कहीं से कोई आवाज़ नहीं आती और अगले दिन सुबह-सुबह जब वो वहां पहुंची तो डायरेक्टर ने उसे कहा कि आज शूटिंग शहर के पास बने एक पार्क में हैं तो वो जाकर उनकी गाड़ी में बैठ जाये सबको तुरंत निकलना हैं फिर शाम होने से पहले वापस भी आना हैं तो वो सीधे बाहर खड़ी गाडी में बैठ गयी और थोड़ी देर में सभी गाड़ियाँ और लोग लोकेशन के लिये रवाना हो गये और रास्ते में गाडी रुकने पर उसने कोल्ड ड्रिंक मंगाकर पी और चलती गाड़ी में हवा के झोंको से उसे पलकें भारी लगने लगी तो उसने आँखें मूंद ली और जब उसकी आँखें खुली तो उसने खुद को उस जैसी कई दूसरी लडकियों के साथ जहाज पर पाया और जब उसने सब कुछ जानने का प्रयास किया तो पता चला कि उसे और अन्य सभी लडकियों को बेच कर उनकी तस्करी की जा रही हैं तो  उसे सुन वो बेहोश हो गयी क्योंकि वहां उसकी आवाज़ सुनने भले ही कोई मौजूद हो भी लेकिन मदद करने कोई नहीं था और उसे बार-बार याद आ रहा था कि आज भी सुबह उसका दिल अजीब-सा धडका तो था लेकिन उसने इसे भी दरकिनार कर अंजान लोगों पर विश्वास किया

अब जबकि वो अपने स्वार्थ के हाथों में फंसकर बर्बाद हो चुकी थी तो उसे समझ में आ गया था कि जो उसे रोक रही थी, बार-बार चेता रही थी वो कोई और नहीं उसकी अपनी ही ‘अंतरात्मा’ थी जिसे उसने हमेशा नकारा तो फिर उसने भी उसे समझाना छोड़ दिया था पर, आज उसे उन सभी संकेतों के गूढ़ अर्थ समझ आ चुके थे जिनके माध्यम से उसे जगाने के कई प्रयास किये गये थे पर, उसने उन सभी को ही नज़रअंदाज़ कर अपनी मनमानी की तो सजा तो मिलनी ही थी ऐसे में उसने यही तय किया कि भले ही वो अपनी सबसे बड़ी हितैषी को पहचानने में चूक गयी पर, अब अपनी जिंदगी गंवाकर पाई इस सीख को वो सबको देकर जायेगी जिससे कि सभी ये जाने कि उसका मार्गदर्शक तो उसके अंदर ही बैठा हैं और वो उसे बाहर ढूंढता फिर रहा हैं तभी तो धोखा खाता हैं लेकिन जिसने उसने जान-पहचान लिया फिर उसे किसी भी मार्ग पर कोई दुविधा नहीं होती काश, कि उसने अपने उस सच्चे साथी को चुप न कर दिया होता तो वो बच सकती थी सच... अक्सर हम ये गलती कर जाते और उसे खामोश कर देते जिससे कि वो हमें टोंकना छोड़ देती लेकिन इसमें हमारी ही हानि होती तो वो सबको बतायेगी कि वो ऐसा न करें... ये स्वर अनसुना रह जाने पर फिर मौन हो जाता तो जब भी कभी लगे कि अंदर से कोई बोल रहा हैं तो उसे जरुर सुने और खुद निर्णय न ले सके तो किसी अनुभवी की मदद ले लेकिन उसे चुप रहने न कहे... गर, उसने तान ली चुप्पी की चादर तो फिर सो जायेंगे अंतरवीणा के तार भी... :) :) :) !!!                    
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२० सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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