सोमवार, 21 सितंबर 2015

सुर-२६३ : "छोड़ गयी ये जहाँ... सुरों की सम्राज्ञी 'नूरजहाँ'...!!!"

चले जाते
छोड़ जहाँ कलाकार
पर, सौंप जाते
अपनी कला की विरासत
जो होती सदाबहार
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मित्रों...,

सुरों की सम्राज्ञी का ख़िताब हासिल करने वाली ‘नूरजहाँ’ आज भी अपनी खनकती हुई सुमधुर आवाज़ के कारण संगीत प्रेमियों के दिलों की धड़कन बनी हुई हैं और उनके गाये हुये एक से बढ़कर एक तराने अपनी मधुरता के कारण बेक़रार हृदय का करार बन उन पर मरहम लगाने का काम कर रहे हैं तभी तो उनके जाने के इतने बरसों बाद भी उनका स्थान रिक्त पड़ा हुआ हैं क्योंकि वे तो बाली उमर से ही अविभाजित भारत के बाशिंदों को अपना मुरीद बना चुकी थी फिर भले ही वो उनका दिल तोड़ दूसरे मुल्क में चली गयी लेकिन स्वर लहरियों ने कब किसी आदेश को माना हैं और कब सरहद की दीवारों ने उनका रास्ता रोका हैं तो बस, उनके अपने वतन को छोड़ कर जाने के बाद भी मधुरतम गानो के शौकीनों ने उस गायिकी से अपना नाता न तोड़ा और ढूंढ-ढूंढ कर उनके गाये नगमों को न सिर्फ़ सुना बल्कि उस आवाज़ में उस दर्द को भी महसूस किया जो किसी अपने के बिछड़ जाने के बाद किसी चाहने वाले को होता हैं सच, अपनी जड़ों से काटकर पेड़ को किसी ओर जमीन पर लगा देने पर भले ही उपर से वो हरा-भरा नजर आये लेकिन उसके अंतर में चुभा शूल तो उसे पीड़ा देता रहता हैं जिससे निकली आह को भी हम गान समझ उसके दर्द में अपने दर्द को समो अपने सीने के बोझ को हल्का कर लेते हैं कुछ ऐसा ही हुआ ‘नूरजहाँ’ के साथ भी कि उनके जाने के बाद भी हम उस सुर को भूल न पाये और जब-जब भी उस आवाज़ ने हमें पुकारा तो हर सीमा पार कर रूह-रूह से मिल आई और आँख में नमी की बाढ़ आ गयी जिसने दिल के जख्मों को कुछ राहत तो जरुर दी पर, एक फ़ांस-सी भी कहीं भीतर तक चुभी हुई महसूस हुई जो अब तलक भी तड़फती हुई रूहों का सहारा बनी हुई हैं

इसलिये तो पाकिस्तान जाने के बाद जब वे भारत के दौरे पर आई तो उनके अंतर की वेदना के अल्फाज़ों में कुछ यूँ अभिव्यक्त हुई---

आप को ये सब तो मालूम है, ये सबों को मालूम है कि कैसी नफ़सा-नफ़सी थी जब मैं यहाँ से गई मेरे मियाँ मुझे ले गए और मुझे उनके साथ जाना पड़ा, जिनका नाम ‘सय्यद शौक़त हुसैन रिज़वी’ है । उस वक़्त अगर मेरा बस चलता तो मैं उन्हें समझा सकती, कोई भी अपना घर उजाड़ कर जाना तो पसन्द नहीं करता, हालात ऐसे थे कि मुझे जाना पड़ा। और ये आप नहीं कह सकते कि आप लोगों ने मुझे याद रखा और मैंने नहीं रखा, अपने-अपने हालात ही की बिना पे होता है किसी-किसी का वक़्त निकालना, और बिलकुल यकीन करें, अगर मैं सबको भूल जाती तो मैं यहाँ कैसे आती?”

आज ही के दिन याने कि २१ सितम्बर, १९२६ ई. को अखंड भारत में पंजाब के 'कसूर' नामक स्थान पर एक मुस्लिम परिवार में इस स्वर साधिका का जनम हुआ था चूँकि उनके पिता एक संगीतकार थे तो ज़ाहिर हैं कि जींस में मिली सरगम की धुनों ने उनकी रगों पर अपना कब्जा कर लिया और पूरे घर में गूंजती वाद्य यंत्रों की तानों ने उनको बालपन से ही मौशिकी का बेमिसाल फ़नकार बना दिया और बाल कलाकार के रूप में अपनी अदाकारी एवं गायिकी से उन्होंने लोगों को अपना दीवाना बना दिया फिर आई १९४२ में ‘खानदान’ जिससे ‘बेबी नूरजहाँ’ लाखों दिलों की धडकन अभिनेत्री ‘नूरजहाँ’ बन गयी और उनके गाये गीत “तू कौन सी बदली में मेरे चाँद हैं आ जा....” तथा “मेरे लिये जहाँ में न चैन हैं  न करार हैं...” आज भी उसी तरह अपना जादू बरक़रार रखे हैं और फिर तो जो सिलसिला शुरू हुआ तो एक के बाद एक अनगिनत गानों की झड़ी ही लग गयी... जब उन्होंने गाया कि “आंधियां गम की यूँ चली बाग़ उजड़ के रह गया....” तो लगा मानों किसी का कीमती खजाना लूट गया हो... इसी तरह जब अभिनय सम्राट ‘दिलीप कुमार’ के साथ आवाज़ से आवाज़ मिला उन्होंने ये तान छेड़ी कि “यहाँ बदला वफ़ा का बेवफ़ाई के सिवा क्या है, मोहब्बत करके भी देखा मोहब्बत में भी धोखा है, कभी सुख है कभी दुख है अभी क्या था अभी क्या है, यूँ ही दुनिया बदलती है इसी का नाम दुनिया है...” तो हर किसी के लब पर यही स्वर उभर आये जिसने उसके मन की पीड़ा को खुलकर सबके सामने ला दिया और जब पुनः युगल स्वर में उन्होंने ये सुर लगाया “हाथ सीने पे जो रख दो तो क़रार आ जाये, दिल के उजड़े हुए गुलशन में बहार आ जाये... तो हर बेचैन दिल को मानो करार मिल गया और फिर तो उनकी आवाज़ ने जब भी जो कुछ भी गाया वो अमर बन गया ।

जब उनकी अपनी अलग आवाज़ में ये स्वर कानों में पड़ता हैं आजा तुझे अफ़साना जुदाई का सुनाये, जो दिल पे गुज़रती है वो आँखों से बताये... तो हम उस अफसाने को सुनने बेकरार हो जाते जो आँखों को देखें बिना भी आवाज़ से ही झलकता हैं उफ़... गहन पीड़ा से सधी हुई थी उस स्वर साधिका की आवाज़ और उससे निकला हर तराना एक अनमोल नगीना चाहे वो क्या यही तेरा प्यार था, मुझको तो इन्तज़ार था हो या फिर तुम आँखों से दूर हो, हुई नींद आँखों से दूर... और ऐसे में आई ‘अनमोल घड़ी’ तो मील का पत्थर बन गयी और उसमें उनका गाया हर एक नगमा “आवाज दे कहाँ है, दुनिया मेरी जवां हैं....”, “जवाँ है मोहब्बत हसीं हैं समां...” और “मेरे बचपन के साथी' मुझे भूल न जाना देखो देखो हंसे न जमाना...” सदा-सदा के लिये अमर हो गया और फिर देश छोड़कर जाने से पहले जब उन्होंने ये गाया तुम भी भुला दो, मैं भी भुला दूँ, प्यार के पुराने गुज़रे ज़माने...” तो लगा कि वो जाते-जाते हम सबको अपना पैगाम यूँ देकर जा रही हैं... आज उनके जन्मदिवस पर उनके ही गाये इस गीत से उनको पुष्पांजलि अर्पित करते हैं---

“आ इंतजार हैं तेरा, दिल बेक़रार हैं मेरा
आजा न सता ओर, आजा न रुला ओर
आजा के तू ही हैं मेरी तकदीर का तारा... :) :) :) !!!”  
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२१ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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