शनिवार, 19 सितंबर 2015

सुर-२६१ : "चिंतन --- जीवनसाथी !!!"


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मित्रों...,

सोच रही हूँ आख़िर ‘जीवनसाथी’ के सही मायने क्या होते हैं ???

जो केवल जीते-जी साथ निभाये वही या जो जीवन के बाद भी साथ न छोड़े या जो जीवन से सदा जुड़ा रहे... बहुत सोचा और अंतर से कुछ यूँ जवाब आया---

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उसकी
वजह से ही
हर बार मुझे
नया जीवन मिला
उसके बिना निष्प्राण थी
मेरी ये माटी की देह
उसने ही समाकर मुझमें
निर्जीव से सजीव बना दिया
मैंने भले ही बदल लिया
अपना रूप ओं रंग
पर, उसने मुझे हर हाल में
पहचान अंगीकार किया
ऐसे बनी वो मेरी
एक नहीं... सात भी नहीं...
जनमों-जनम की साथी
जी हाँ मेरी प्रिय रूह ही तो हैं
मेरी जीवनसाथी...
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सच... यही तो हैं जिसने कभी साथ न छोड़ा बल्कि यूँ समझो कि इसके बिना तो मेरा वजूद ही न होता तो ऐसे में इसके सिवा और किस को सच्चा जीवनसाथी कह सकती हूँ... :) :) :) !!!
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१९ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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