शनिवार, 26 सितंबर 2015

सुर-२६९ : "सदाबहार अभिनेता देव आनंद...!!!"


जीवन से भरपूर
जिंदादिल कलाकार
कम ही आते
फ़िल्मी दुनिया में
ऐसे अलहदा अदाकार
जिनसे होता
कला का सम्मान
तभी तो उनके
चले जाने के बाद भी
गूंजता रहता उनका नाम
कुछ ऐसा ही
हासिल किया था
अभिनेता ‘देवानंद’ ने
अभिनय जगत में मुकाम
कि अब तलक भी
जिंदा हैं उनका हर काम
आज जन्मदिन पर
करते उनको दिल से प्रणाम
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मित्रों...,

मैंने सब कुछ किया और चाहा कि एक सार्थक जीवन जीऊं,
और वही जीवन सार्थक हैं जिससे किसी को ठेस न लगे
आशावादी दृष्टिकोण मेरा मूल मंत्र हैं,
फिर भी सोचता हूँ कि जब तक जीना हो सकारात्मक सोच रखूं
यदि आपके विचार नकारात्मक हैं तो...
आप मृतक के समान हैं ।
________ ‘देव आनंद’

ये बात केवल वही व्यक्ति कह सकता हैं जिसने कि जीवन के वास्तविक मायने को आत्मसात कर लिया हो और हिंदी सिने जगत के एकमात्र सदाबहार अभिनेता ‘देवानद’ को तो ‘जिंदगी’ से बेइंतेहा प्यार था तभी तो अपनी आत्मकथा को भी उन्होंने ‘रोमांसिंग विथ लाइफ’ नाम दिया जो स्वतः ही उनके जीवन के प्रति नजरिये को स्पष्ट करता हैं कि उन्होंने केवल साँसे लेकर उसे व्यतीत नहीं किया बल्कि हर एक पल का हृदय से लुत्फ़ लिया, हर एक क्षण को अंतर से भरपूर जिया जिससे उनका व्यक्तित्व भी उतना ही खुशनुमा, ऊर्जावान और सम्मोहक बना जिसने फ़िल्मी दुनिया में आते ही अपनी अदाओं का ऐसा जादू चलाया कि देखने वाला उनका मुरीद बन गया और उनके निभाये हर किरदार, हर गीत, हर चलचित्र को सुपरहिट किया वो समय जबकि हिंदी सिनेमा जवान हो रहा था ऐसे में उस दौर में पदार्पण हुआ एक से बढ़कर एक बेजोड़ अभिनय प्रतिभाओं का जहाँ ‘सोहराब मोदी’, ‘पृथ्वीराज कपूर’, ‘मोतीलाल’, ‘अशोक कुमार’, ‘बलराज साहनी’ जैसे दिग्गज तो पहले से मौजूद थे ही पर, अब ‘दिलीप कुमार’, ‘राज कपूर’ और ‘देव आनंद’ सरीखे अनूठे सजीले फनकारों ने भी जोरदार दस्तक दी थी और सभी ने अपने अलग अंदाज और अपनी अलग अभिनय शैली से अपना पृथक नाम बनाया तभी तो कड़े संघर्ष एवं प्रतिस्पर्धा के बाद भी इस ‘त्रिकोण’ के हर एक ‘कोण’ का अपना स्वतंत्र मुकाम था जिसकी वजह से इतना समय गुजर जाने के बाद भी आज तक उनका उनकी वजह से ही स्मरण किया जाता हैं

‘धर्मदेव आनंद’ का जनम आज ही के दिन २६ सितंबर १९२३, को अविभाजित भारत के ‘पंजाब’ में स्थित ‘गुरदासपुर’ नामक स्थान पर एक भरे-पूरे परिवार में हुआ जो कि अब पाकिस्तान का हिस्सा हैं वे तीन भाइयों के बीच के थे बडे का नाम ‘चेतन आनंद’ तो छोटे का ‘विजय आनंद’ था और उनको बचपन में प्यार से ‘चिरु’ पुकारा जाता था बचपन तो उनका संघर्ष में ही बीता पर, परिवार के साथ रहकर जो भी शिक्षा मिली उससे बाद में इन तीनों भाइयों ने ही सिने युग में अपना अलग-अलग नाम व पहचान बनाई क्योंकि सभी का आत्मविश्वास मजबूत और सबके भीतर मुश्किलों से लड़ने का जुझारूपन था जिसने प्रारंभिक असफलता के बावजूद भी उनको वही सफलता दिलवाई जिसके वे हकदार थे । फ़िल्मी दुनिया में उनक आगमन तो १९४६ में ‘प्रभात बैनर’ की ‘हम एक हैं’ फिल्म से हो गया था जो मनमाफ़िक सफलता अर्जित कर न सकी लेकिन दो साल की अथक मेहनत व लगातार के प्रयासों ने आख़िरकार उनको अपनी मंजिल का सही रास्ता मिल गया जब उस समय के शीर्षस्थ कलाकार ‘अशोक कुमारजी’ ने सिफ़ारिस कर उनको १९४८ में ‘बॉम्बे टाकिज’ की फिल्म ‘जिद्दी’ दिलवा दी और जब वो प्रदर्शित हुई तो उसने सफलता के ऐसे झंडे गाड़े कि फिर ‘देव’ को जैसे पंख लग गये और वो एक के बाद एक आने वाली फिल्मों अफसर, बाज़ी, काला बाज़ार, टैक्सी ड्राईवर, पेइंग गेस्ट, बंबई का बाबु, असली-नकली, सी.आई.डी., तेरे घर के सामने, नौ दो ग्यारह, इंसानियत, सज़ा, काला पानी, हम दोनों, गाइड, हरे राम हरे कृष्णा से वे  सफलता के आसमान पर पहुँच गये जिसमें उनकी अपनी दिलकश अदाओं, सहज अभिनय और आकर्षक व्यक्तित्व का हाथ था जिसकी वजह से उनको ‘सदाबहार’ अभिनेता का ख़िताब मिला जो आज भी उन्हीं के पास बरकरार हैं ।

उन पर ही फिल्माये गीत...

जीवन के सफर में राही, मिलते हैं बिछड़ जाने को
और दे जाते हैं यादें तन्हाई में तडफाने को... ॥

को गुनगुनाते हुये उनको जन्मदिवस की शुभकामनायें देते हुये मन से नमन करती हूँ... वे कल भी सदाबहार थे आज भी और कल भी रहेंगे... सबके प्रिय ‘देव आनंद’... :) :) :) !!!
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२६ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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