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मित्रों...,
‘सौम्या’ तन्हाई में अपने घर
के बगीचे में बैठी खुद को बहुत एकाकी महसूस कर रही थी क्योंकि पास कोई नहीं था जिससे
वो अपने मन की बात कह सके ऐसे में वो आँखें मुंद कर बैठ गयी तो उसे अपने आस-पास की
सभी ध्वनियाँ साफ़-साफ़ सुनाई देने लगी जिसने कुछ लम्हे के लिये उसे हर गम से दूर कर
दिया पर जब अचानक सब कुछ थमा तो वो फिर से खुद को अकेला समझने लगी पर, तभी ऐसा क्या
हुआ कि उसे लगा कि कोई कभी होता ही नहीं ‘अकेला’... ???
देखें जरा---
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एकला चालो रे...
स्वर लहरियां
धीमे-धीमे उतर रही थी
कानों के रास्ते रगों
और फिर दिल में
और एकाएक लगा झटका
जब खामोश हो गई
रेडियो से आती गाने की आवाज़
बंद हो गई हर ध्वनि
शेष रह गये मैं और मेरा जेहन
तब हुआ ये अहसास
कि गर कोई न हो साथ
न साथी न रिश्तेदार
न ही कहने को अपना कोई
न ही हो दुनिया का झमेला
या लोगों का मेला
फिर भी ये इक सच हैं
कोई नहीं होता कभी अकेला
क्योंकि संग होता सदा ही
कभी यादों तो कभी
अनगिनत ख्यालों का रेला ।।
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वाकई ये भी तो एक पहलू हैं
सोच का कि मानो तो साथ कोई नहीं पर, महसूस करो तो सारा जग साथ लगता हैं न... :) :)
:) !!!
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२९ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह “इन्दुश्री’
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