सोमवार, 7 सितंबर 2015

सुर-२५० : "चिंतन... मजबूरी या असुरक्षा...???"


अपनी नियति को
बदलना चाहा तो बहुत
पर, नाकाम रही
हर एक कोशिश उसकी
जो न चाहते हुये भी
वो रह न सकी अकेली
और फिर एक दिन जाकर
उसी मंजिल से मिली
जो किस्मत में थी लिखी ।।
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मित्रों...,

जब मालतीने सुना था कि एक जानी-मानी खुबसूरत और अनब्याही नंबर एक की दावेदार कही जाने वाली अभिनेत्री ने न केवल अपनी उम्र से भी दोगुने से ज्यादा बडे साथ ही दो बच्चों के पिता से शादी की तो उसे बड़ा अजीब बल्कि कहे कि असंगत लगा था  मगर, ये फ़िल्मी लोग तो ऐसा करते ही रहते हैं तो ये सोचकर उसने उसे अधिक गंभीरता से नहीं लिया लेकिन जब आज उसे पता चला कि किसी न्यूज़ चैनल पर काम करने वाली एक मशहूर महिला रिपोर्टर ने अपने पूर्व पति को तलाक दिये बिना ही अपने से अधिक वय के लगभग उसके पिता जैसे व्यक्ति से न केवल पूर्व में अपने संबंधों को स्वीकार किया बल्कि जैसा कि उसने उस वक़्त ज़ाहिर किया था कि वो आने वाले दिनों में उनके साथ घर भी बसाना चाहती हैं उसी के अनुसार उसने कल विधिवत उस पर मुहर लगाकर उसके नाम के साथ अपना नाम जोड़ बकायदा उसकी अर्धांगिनी बन गयी ये सुनकर वो सोचने पर मजबूर हो गयी कि आखिर इसके पीछे वो कौन-सी वजह होगी जो इतनी आधुनिक, सर्वसुविधा संपन्न, आज़ादख्याल, खुबसूरत और सबसे बड़ी बात कि पूरी तरह से आत्मनिर्भर महिलायें भी ऐसे कदम उठाती हैं ???

उसकी परेशानी की मुख्य वजह ये थी कि उसके जीवन के किसी पड़ाव में उसे भी ऐसा ही कदम उठाना पड़ा था लेकिन उसके पीछे कारण उसकी पारिवारिक मजबूरी और सामाजिक असुरक्षा थी क्योंकि एक तो वो गरीब घर की दूसरे न तो अधिक पढ़ी-लिखी या सुंदर ही थी ऐसे में जब एक बड़ी उम्र के खाते-पीते परिवार के 3 बच्चों के पिता जो कि आर्थिक रूप से भी बडे संपन्न थे के विवाह का प्रस्ताव उसके घर आया तो न चाहते हुये भी उसे अपने छोटे भाई-बहिनों और परिवार की खातिर इसे स्वीकार करना पड़ा क्योंकि उनके पास कोई और विकल्प था ही नहीं लेकिन ये सब आधुनिक नारियां जो ऐसा कर रही हैं उसके पीछे कौन-सी मजबूरी हो सकती हैं ???

यदि वो कहें कि प्रेमतो बात गले नहीं उतरती क्योंकि प्रेमका दूसरा नाम त्यागऔर समर्पणही सुनती आई हैं वो लेकिन यहाँ तो एक-दूसरे को किसी भी तरह हासिल करने की, उसे अपना बनाने की होड़ लगी हैं तभी तो किसी और का बसा-बसाया घर तोड़कर भी अपना बसाया जा रहा हैं क्या इसे ही प्यारकहते हैं

यदि हाँतो यस किस तरह का प्यार हैं जो अपनी मुहब्बत की दुनिया बनाने खातिर किसी और की बनी हुई दुनिया उजाड़ देता हैं और यदि इसे मज़बूरीकहे तो वो कौन-सी मजबूरी होगी जिसने उन्हें ऐसा करने विवश किया कि जो खुद पूरी तरह से सक्षम हैं, खुद कमाकर खा रही हैं बल्कि चार लोगों की बिठाकर खिला सकती हैं वो ख़ुशी-ख़ुशी इस तरह का कदम उठाती हैं... न... न... ये भी ऐसा करने की कोई ठोस वजह नहीं हो सकती ।

ऐसे में उसे मानना पड़ा कि नारी लताके समान असहाय, निर्बल और पराश्रित्त हैं जो खुद को बिना सहारे के शायद, खड़ा ही नहीं कर सकती और यही असुरक्षा का भाव उसे किसी मजबूत दरख्त जैसे आदमी के कंधों पर अपना भार डालने मजबूर करता हैं ।

अपने में और उन सभी में उसे यही एक समानता नज़र आ रही थी और आज इसे अपने निर्णय पर कोई पछतावा नहीं था क्योंकि जब इतनी स्वतंत्र खुदमुख्तार, स्वयंसिद्धा नारियां ऐसा कर सकती हैं तो उसे तो ये करना ही था और फिर वो पूरी तरह निश्चिन्त हो आराम से बैठकर टी.वी. देखने लगी ।             
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०७ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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