बुधवार, 30 सितंबर 2015

सुर-२७३ : "एकालाप --- तेरे मेरे बीच में...!!!"

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मित्रों...,



परदेस गये पिया की बरसों तक खबर न मिलने पर आख़िरकार ‘मेघा’ को ये सोचने पर मजबूर होना ही पड़ा कि जो साथी उसके बिना एक पल भी रहने को तैयार न था बल्कि उसे छोड़कर जाने तक में उसे सख्त ऐतराज़ था और तब उसके समझाने पर ही माना था... आज वही ‘रागेश’ उसे भूलकर न जाने किधर चला गया अब तो न ही उसका कोई संदेश या खबर ही आती और वो भी उसका पता कर-कर परेशान हो गयी... उसे लगने लगा कि जब उसके दिल की धड़कन और रूह की पुकार तक उस तक न पहुंची तब कोई बात भला किस तरह पहुंचेगी ये वो समझ न पा रही थी... और इस प्रश्न का जवाब खोजती रहती हर पल कि एक दिन यूँ ही बैठे-बैठे ख्यालों में उसे जैसे पता चल गया कि इसकी वजह क्या हैं---
      
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उसे
पुकारती हैं
हर नजर
हर धडकन मेरी
जुबां भले ही
चुप रहने मजबूर
मगर, फिर भी
अंतर की गहराइयों में
एक सदा गूंजती
उसका ही नाम दोहराती
पर, न कभी भी
उसको कोई खबर होती
न जाने किस शय का
अभेद्य साया हैं
मेरे और उसके दरम्यां
जिससे टकराकर हर आवाज़
वापस मुझ तक ही लौट आती हैं
जब आ जाये कोई और
किसी के भी दिल में तो फिर
कितना भी पुकारो नाम लेकर
या दो कितनी भी आवाजें उसको
पर, कोई भी सदा उस तक नहीं जाती हैं ।।
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हाँ... शायद यही कारण हैं... हम दोनों के बीच ‘कोई’ आ गया हैं तभी तो उन तक मेरे मन की बात पहुँच ही नहीं पाती फिर ये कागजों पर लिखी इबारत किस तरह से पहुचेगी... उफ़... ऐसा क्यों होता कि कोई दो दिलों के बीच आकर उनके संपर्क में अवरोध पैदा कर देता... :( :( :( ???
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३० सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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