शनिवार, 5 सितंबर 2015

सुर-२४८ : "कान्हा का जन्मदिवस... मनाते भक्तजन...!!!"


सोलह कला पूरण
श्रीकृष्ण भये संपूरण
करने जग उद्धार 
लिया मानव अवतरण
आई ‘श्रीकृष्णजन्माष्टमी’
छूकर प्रभु पावन चरण
करें सर्वस्व अपना समर्पण
भोग-विलास त्याग कर
रहें सदा उनकी शरण
केवल नाम प्रभु का लेकर
सफल हो जाता मरण     
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मित्रों...,

आज सबके प्रिय माखनचोर यशोदानंदन ‘कान्हा’ का जन्मोत्सव हर तरफ बडे हर्षोल्लास से मनाया जा रहा हैं हर किसी ने अपने प्यारे लड्डू गोपाल के लिये सुंदर-सुंदर झांकियां सजाकर तरह-तरह की तैयारियां की हैं और जैसे ही रात के बाढ़ बजेंगे तो सभी लोग मिल-जुलकर उनको प्रेम से जगायेंगे और फिर पंचामृत से स्नान कर रेशमी वस्त्र पहनायेंगे विविध आभूषणों से श्रृंगार कर माथे पर चंदन तिलक लगा उसे अक्षत-भस्म से सजा सर पर मोर-मुकुट लगायेंगे फिर हाथों में छोटी-सी बांसुरी थमाकर माखन-मिश्री का भोग लगाकर उनकी स्तुति गायेंगे और अंत में समवेत स्वर में करतल ध्वनि के समेत आरती गायेंगे जिसकी गूंज से सारा ब्रम्हांड सकारात्मक ऊर्जा से भरकर वातावरण में उसी कार्यात्मक तरंगों को प्रसारित कर देगा जिसके प्रभाव से सुप्त पड़ गयी मानव शक्ति क्रियात्मक ऊर्जा से भरकर पुनः जागृत हो नवीन उत्साह से अपने कर्म क्षेत्र में प्रवृत हो जायेगी क्योंकि ये दिन एक कर्मयोगी के अवतरण का परम पावन दिवस हैं जिसने अपने स्वयं के जीवन दर्शन के द्वारा समस्त प्राणियों को सतत कर्म करने की प्रेरणा देते हुये उसे मोक्षदायिनी श्रीमद्भागवद्गीता रूपी संदेशात्मक धर्मग्रंथ में बंद कर आने वाली पीढ़ी के लिये एक ऐसा अद्भुत चमत्कारिक चिराग छोड़ गये हैं जिसके स्पर्श मात्र से आदमी के अंतर चक्षु खुल जाते हैं और यदि किसी ने उसे मन से ग्रहण कर लिया तो फिर वो खुद कर्म का साकार रूप धारण कर लेता हैं तभी तो जगत पालक विष्णु के इस ‘कृष्णावतार’ का हे कोई दीवाना हैं जिसका संपूर्ण जीवन चरित्र बालपन से लेकर अंत तक इतनी विविधताओं से भरा हैं कि उसमें हर किसी को अपने जीवन के लिये कोई न कोई प्रेरक तत्व मिल ही जाता हैं जिससे वो अपने जीवन को सही दिशा में मोड़कर सार्थकता प्रदान कर सकता हैं

भले ही वो अपने आचरण से ‘महामानव’ बन गये लेकिन उन्होंने कभी भी किसी के साथ ऐसा बर्ताव नहीं किया जिससे कि उसे उनके सामने अपना आप तुच्छ नजर आये तभी तो जब उनके बाल सखा सुदामा दीन अवस्था में चावल के दानों की सौगात लेकर उनके समक्ष गये तो उन्होंने दौड़कर उसे न सिर्फ़ सीने से लगाया बल्कि बडे स्नेह से उनके पाँव पखार उनको अपने आसन में बिठाकर उनसे उनके सारे हाल-चाल पूछ उनके जाने बिना ही उनके मन का हाल जान लिया और उनके अपने घर पहुंचने से पहले ही ऐसा चक्कर चलाया कि जहाँ कभी उनकी झोपडी थी वहां अपने आप आलीशान महल बन गया इसी तरह जब भी किसी भक्त ने विपदा में घबराकर उनको पुकारा तो वे अपना राज-पाठ और सुख त्याग कर उसकी सहायता करने दौड़ पड़े और जिसे उन्होंने अपनी शरण में ले लिया फिर उसे किसी तरह की फ़िक्र ने परेशान नहीं किया क्योंकि जिसके सखा भगवान् स्वयं हो उसे फिर किस और की जरूरत नहीं सिर्फ़ मन से उनको याद करना हैं और सारे बिगड़े काम स्वतः ही बन जाते हैं और यदि किसी तरह का संकट आता भी है तो वो उसे सहन करने की शक्ति प्रदान कर उसकी परीक्षा लेते हैं और जब उसके मन में अपने लक्ष्य के प्रति तीव्र इच्छाशक्ति का प्रवाह पाते हैं तो फिर उस पर ऐसी कृपा बरसाते हैं कि वो दूसरों के लिये भी प्रेरणा स्त्रोत बन जाता हैं तो ऐसे पारसमणि जन-जन के प्रिय नंद के लाला के अवतरण दिवस पर समस्त भक्तजनों को हृदय से बधाई और अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!        
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०५ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री

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