सोमवार, 28 सितंबर 2015

सुर-२७१ : "पीढ़ियों का स्वर... लता मंगेशकर....!!!"


बन गयी
संगीत का पर्याय
हर जगह देती सुनाई
बीत गये दशक कई
पर, अब तक भी
सुन उसकी मधुर तान  
हमारी पीढियां जवां हो रही
और...
आगे भी अनेक 
उसे सुनकर जागेगी
उसकी लोरीयों से सोयेंगी
कि हवाओं में चहुँ ओर बिखरी हैं
उसकी ही स्वर लहरियां
जो गूंजेगी अनंत काल तक
न बिसरा पाएंगी इसे कई सदियाँ 
कि ‘सरस्वती’ की वीणा पर
नित बनती-बिगडती रहती धुन कई 
कोई एक लेकर मानव आकार   
बन जाती स्वर साधिका ‘लता मंगेशकर’
-----------------------------------------------●●●
          
___//\\___ 

मित्रों...,

यूँ तो कुदरत की हर एक शय में संगीत हैं और मौन को साध आँखों को बंद कर उसको सुना जा सकता हैं लेकिन इन सबके बीच सुर-स्वर की देवी माँ शारदे की मानस पुत्री ‘लता मंगेशकर’ भी हम सबके बीच उपस्थित हैं जिसे खुली आखों से देखा व सुना जा सकता और सरगम के हर एक सुर को महसूस किया जा सकता जो हम सबके लिये ईश्वर का एक वरदान हैं कि हम सब संगीत के सात सुरों के अतिरिक्त प्रत्यक्ष रूप से मौज़ूद उस जीवंत आठवे सुर को न केवल सुन सकते बल्कि देख भी सकते वाकई अपनी अभूतपूर्व अलौकिक गायन क्षमता से उन्होंने जो कीर्तिमान बनाये और जिस तरह से संगीत को नये आयाम दिये उसे आंक पाना हम जैसे साधारण मुरीदों के बस की बात नहीं जो केवल उनकी आवाज़ के दीवाने हैं और सुर-ताल की वो समझ नहीं रखते जिसकी कसौटी पर उनको जानने वाले तक उनके बारे में कहते समय दांतों तले ऊँगली दबा लेते हैं कि वो एक ऐसी स्वर साधिका जो कभी स्वप्न में भी बेसुरी नहीं होती तो फिर हकीकत में किस तरह उनसे किसी तरह की गलती की उम्मीद की जा सकती हैं क्योंकि उन्होंने तो जनम ही संगीत साधना के लिये लिया और आजीवन उसके ही लिये काम रही और अपना सर्वस्व उसको ही समर्पित कर दिया एक सच्चे उपासक की तरह जिसे कि अपनी तपस्या के सिवा कुछ भी नजर नहीं आता तभी तो उनके स्वरूप में भी किसी योगिनी के दर्शन होते जो आँख मूंद सारी दुनिया को भूलकर अपनी स्वर साधना में रत हैं जहाँ कला स्वयं ही कलाकार के रूप में ढल जाती और जीती-जागती मानवीय मूर्ति बन जगत के लोगों को उस दिव्य रूप से साक्षात्कार करा जाती जिसकी कल्पना तक से वो अंजान हैं पर, ‘लता मंगेशकर’ को देखने के बाद हर तरह की शंका मिट जाती कि यदि संगीत को किसी मानवीय आकृति में ढाला जाये तो निसंदेह वो उन्ही की काया में उतर जायेगी क्योंकि गायक-गायिकायें तो इस दुनिया में अनगिनत हैं लेकिन किसने इस तरह से अपना संपूर्ण जीवन संगीत को समर्पित किया कि सिवा उसके किसी दूसरी चीज़ के बारे में सोचना तो दूर नाम तक नहीं लिया बस, अथक अनवरत शुद्ध गायन किया जिसने हर सुनने वाले को अपना दीवाना किया

वो एक जमाना जबकि फ़िल्मी दुनिया में पार्श्व गायन का नया-नया चलन आया था और कई तरह की नई-नई आवाजें लोगों के कानों में रस घोल रही थी तो ऐसे में ‘लता’ की पतली आवाज़ एक सुखद बयार की तरह आई जिसे उस वक़्त तो उस तरह से स्वीकारा नहीं गया पर, एक दिन तो वो होना था जिसके लिये वे आई थी तो धीरे-धीरे उसने अपना रास्ता बनाया और फिर ऐसे सबके दिलों में समाई कि फिर आज तक भी निकल नहीं पाई वो तो नर्गिस, नूतन, मधुबाला, साधना, माला सिन्हा, आशा पारेख, योगिता बाली, रेखा हेमा मालिनी, टीना मुनीम, जीनत अमान, परवीन बॉबी, श्रीदेवी, जयाप्रदा, माधुरी दीक्षित, ऐश्वर्या रॉय, काजोल, प्रीती जिंटा से होती हुई... गीत, गज़ल, ठुमरी, मुजरा, कव्वाली लोरी गाती हुई नायिकाओं की हर एक पौध को शीर्ष पर पहुंचाती रही और इस तरह हर जमात में अपनी धाक जमाती रही वाकई सोचो तो आश्चर्य होता कि नायिकाओं की इतनी अलग-अलग पीढ़ी को उन्होंने उनके ही रंग-ढंग में आवाज़ दी जिसे सुनकर कभी भी नहीं लगा कि पर्दे पर जो कमसिन लड़की नजर आ रही उसके लिये गाने वाली कोई उसकी दादी की उमर की गायिकी हो सकती हैं उनकी इसी खासियत ने उनको सिर्फ़ नायिकाओं ही नहीं बल्कि हर एक निर्माता-निर्देशक से लेकर हर एक संगीतकार की पहली पसंद बनाया तभी तो हर कोई अपनी फिल्म में उनको लेने कतार में खड़ा रहता था और जब उन्होंने देखा कि इस तरह से नई प्रतिभाओं को आगे आने का अवसर नहीं मिलेगा तो पहले पुरुस्कारों से अपने आपको पीछे खिंचा और फिर गायन से भी और अब तो एकांतवास में केवल माँ सरस्वती को ही अपनी वाणी के सुमन चढ़ा स्वर भक्ति करती... आज उनके जन्मदिवस पर उनको अनंत शुभकामनाये... वो इसी तरह बरस दर बरस इसे मनाती जाये... :) :) :) !!!           
_________________________________________________________
२८ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
--------------●------------●

कोई टिप्पणी नहीं: