शुक्रवार, 25 सितंबर 2015

सुर-२६८ : "कुर्बान करो जान... न कि ईमान...!!!"

‘मज़हब’
सबका अपना
लगता सबको प्यारा
न करो कभी
भूले से भी बुराई इसकी
कि इसे तो ख़ुद हमने बनाया
और फिर इंसान को
अलग-अलग हिस्सों में बांटा
जिसे रब ने एक समान
पंचतत्वों को मिला जिलाया
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मित्रों...,

अम्मी... अम्मी... आज ‘बकरीद’ हैं न तो इस बार आप हम उसकी बलि नहीं देंगे...
प्लीज... प्लीज... आप मेरी बात मानोगे न वरना मेरे सब दोस्त मुझे स्कूल में चिढ़ायेंगे...
प्लीज अम्मी मान जाओ न...

नन्ही ‘रुबीना अपनी अम्मी ‘शाहिदा’ को लगातार पिछले दो दिनों से यही बोल-बोल कर परेशान कर रही थी और वो उसके नाज़ुक मन को ठेस पहुंचाये बिना उसकी बात का जवाब देने का प्रयास कर रही थी लेकिन उसके सवाल कुछ ऐसे थे कि वो समझ ही नही पा रही थी कि आखिर इत्ती-सी बित्ते भर की गुड़िया को वो किस तरह से उन बातों के उत्तर दे जिन्हें दे पाने में बडे-बडे बुद्धिमान और धर्म के जानकार भी कान पकड़ लेते पर, वो तो माँ थी और नहीं चाहती थी कि उसकी कोई जिज्ञासा अधूरी रह जो उसे परेशान करती रहे इसलिये आज उसे इत्मिनान से अपनी गोद में बिठा वो बोली, मेरी जान पूछो जो भी तुम्हारे मन में आ रहा हैं

तब वो अपनी मीठी आवाज़ में बोली, अम्मी आज तो सब हमारे स्कूल में हमें चिढ़ा रहे थे कि तुम लोग गंदे हो जो निर्दोष जानवर को मार कर त्यौहार मनाते हो तो बोलो न अम्मी हम उनसे क्या बोले हमें समझ नहीं आता कि हम क्यों उनको मारते हैं... बोलो न...???

शाहिदा ने खुद क संयत किया और बोली, बेटी यदि जानवर को खाने से कोई गंदा होता तो फिर तो सारी दुनिया के आधे से ज्यादा लोग वही कहलायेंगे और ये जो हम अपने घर में बनाते खाते वो तो हम अपने अल्लाह का हुकुम मनाते हैं तो ‘रुबीना’ बोली, अल्लाह का हुक्म वो क्या हैं अम्मी ???

तब उसकी अम्मी ने उसको वो कहानी सुनाई जो उसने अपनी माँ से सुनी थी कि एक बार पैगंबर ‘हजरत इब्राहिम’ को अल्लाह की तरफ़ से फरमान मिला कि जो भी चीज़ तुझे सबसे प्यारी हो उसे मेरे लिये कुर्बान कर दो तब ‘हजरत साहब’ ने बहुत सोचा तो उनको अपने इकलौते बेटे ‘इस्माइल’ की याद आई जिसे वो सबसे ज्यादा चाहते थे अतः खुदा के हुक्म के अनुसार उसको ही कुर्बान करने का मन बना लिया जिसे सुनकर इस्माइल भी बड़ा खुश था कि उसे अपने खुदा की भेंट चढ़ाया जायेगा इसलिये वो उस दिन का इंतजार करने लगा

जब वो दिन आया तो उसकी जगह पर एक दुंबा (भेड़ की नस्ल का एक पशु) कुर्बान हो गया और इस तरह से अल्लाह ने इस्माइल को बचा लिया और हजरत साहब की तरफ से ये कुर्बानी कबूल कर ली बस, तब से ही हम इस परंपरा को निभाते हैं बेटा, धर्म को माना जाता हैं उस पर प्रश्नचिन्ह नहीं लगाया जाता क्योंकि हम इतने काबिल नहीं कि उसे बदल सके हम तो केवल उसके आदेशों का पालन करना चाहिये ।

तब ‘रुबीना’ बोली तो अम्मी इस बार आप हमारी बलि दे देना पर, उसकी नहीं हम सबके चिढ़ाने से से तंग आ गये हैं ये सुन शाहिदा ने झट उसे सीने से लगा लिया तो वो बोली अम्मी, हम भी आपकी सबसे प्यारी चीज़ हैं न तो फिर अल्लाह हमारी जगह भी किसी को भेज देगा आप परेशान न हो

उसकी मासूमियत पर निहाल होकर वो बोली, बेटी यदि वक्त पड़ा और हमें ऐसा करने मजबूर होना ही पड़ा तो हम अपने देश की भलाई और धर्म को बचाने के लिये ऐसा जरुर करेंगे लेकिन अभी तो हमें वही करना होगा जो हम करते हैं और हाँ, अपने दोस्तों को कह देना कि चिढ़ाने की जरूरत नहीं इस देश में सबको अपने-अपने मजहब को मानने का अधिकार हैं और हमारे जैसे रिवाज़ हैं हम वैसा ही करेंगे और आप के यहाँ जैसी परंपरा हो आप वैसा करो बेटी, हर धर्म में कुछ अच्छा तो कुछ बुरा होता पर, किसी का मजाक उड़ाना उसको आहत ज्यादा गंदी बात हैं न कि कोई पर्व मनाना तो चले तैयारी करें ईद मनाने की जाओ पहले सबको ईद की मुबारकबाद बोलकर आओ... क्या बोलोगी... तो ‘रुबीना’ बडे अंदाज से बोली... कुर्बानी का पर्व ईद सबको बहुत-बहुत मुबारक हो... और दोनों हंस पड़ी... :) :) :) !!!     
   
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२५ सितंबर २०१५
© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
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