रविवार, 12 मार्च 2017

सुर-२०१७-७१ : “धर्माग्नि में जल हर अ-शुभ, शुभ हो जाता...”

साथियों... नमस्कार...


भारतीय संस्कृति में हर एक पर्व का आध्यात्मिक ही नहीं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से भी महत्व हैं जिसका अहसास बीतते समय के साथ और भी अधिक होता जा रहा जब चारों तरफ अशुभ बढ़ता जा रहा... ऐसे में धर्म से परे होकर किये गये अपने इन अ-धार्मिक कृत्यों को शुभ में परिवर्तित करने का यही एक मार्ग शेष रह जाता कि हम अपनी परंपराओं को निकट से समझने का प्रयास करें जिसका जरिया बनते हैं हमारे ये पर्व जो अपने पीछे छूपी कथाओं से हमारा मार्गदर्शन करने के साथ-साथ हमें आत्मावलोकन करने का अवसर भी प्रदान करते... इसके अलावा ये हमें अपनों के महत्ता का अहसास भी कराते कि हम कितना भी सफल हो जाये या कितने भी साधन संपन्न हो लेकिन यदि एकाकी हैं तो फिर इनके होने का कोई अर्थ न होगा क्योंकि अपनों के बिना कोई भी ख़ुशी या उत्सव अधूरा लगता तो इस तरह से ये त्यौहार हमें सामाजिकता का पाठ भी पढ़ाते और हमारे आपसी संबंधों को अधिक प्रगाढ़ बनाते... याने कि एक पर्व के साथ अनेक संदेश निहित होते जिनके अर्थ उनको समझने पर ही ज्ञात होते और वैसे भी हमारे महोत्सव किसी विशेष ऋतू व किसी उद्देश्य से जुड़े होते तो रंगों का ये पर्व ‘होली’ जो कि आज रात ‘होलिका दहन’ से शुरू हुआ उसके साथ ही हम ऋतू परिवर्तन के अनुकूल खुद को ढाल लेते और अगले दिन सुबह रंगों से एक-दूसरे को रंगकर अपनी ख़ुशी का इज़हार करते और फिर ‘भाई-दूज’ से लेकर रंग-पंचमी तक इसे मनाते तो इस पंचदिवसीय महोत्सव के प्रथम दिवस ‘होलिका दहन’ की आप सभी मित्रों को बहुत-बहुत बधाई व अनंत शुभकामनायें... :) :) :) !!!          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१२ मार्च २०१७

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