गुरुवार, 2 मार्च 2017

सुर-२०१७-६२ : क्षेत्र कोई हो अपने दम पर... विजय परचम लहराती नारी... ०१ !!!

साथियों... नमस्कार...


‘मार्च’ का  महिना आते ही ‘अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस’ की सुगबुगाहट शुरू हो जाती क्योंकि अब इसे इस नाम से भी बेहतर जाना जाता साथ ही वित्तीय वर्ष की समाप्ति भी इस मास को ख़ास बनाता और इस तरह इन दोनों महत्वपूर्ण बातों की वजह से इसकी ख़ासियत को अन्य महीनों की तुलना में कुछ ज्यादा ही आँका जाता तो जरुरी कि ऐसे में हम भी इनका आंकलन सिर्फ एक दिन की बजाय एक सप्ताह तक करें तो उसी को मद्देनजर रखते हुये प्रतिवर्ष की तरह इस साल भी ‘नारी दिवस’ को समर्पित एक सात दिवसीय श्रृंखला की शुरुआत आज करने जा रही हूँ जिसे शीर्षक दिया हैं... “क्षेत्र कोई हो अपने दम पर, विजय परचम लहराती नारी...” इसे ये नाम देने की एक खास वजह हैं कि अभी ‘भारत’ ने १०४ उपग्रह भेज कर जिस तरह से देश-विदेश ही नहीं अंतरिक्ष में ग्रह-नक्षत्रों के बीच खुद को भी एक ‘सुपर स्टार’ की तरह स्थापित किया वो तो हम सबके लिये हर्ष व गर्व के क्षण हैं ही लेकिन उस महानतम उपलब्धि के वैज्ञानिक दल में महिलाकर्मियो ने जिस तरह से अपनी उल्लेखनीय उपस्थिति दर्ज की उसने फिर एक बार ये सिद्ध कर दिया कि यदि स्त्रियों की काबिलियत को पुरुषों के समान हर तरह की सुविधा एवं मौके दिये जाये तथा उनके बीच असमानता की लकीर मिटा दी जाये तो फिर वे जमीन ही नहीं आसमान पर भी कारनामे कर दिखा सकती हैं बस, जरूरत हैं चारदीवारी को हटाकर उसे उड़ने खुला आसमान दिया जाये तो वो भी सीमाओं को तोड़कर इतिहास रचेगी...

बात सिर्फ इतिहास की नहीं हैं उसमें तो कई महिलाओं के नाम अंकित जिन्होंने अपने अकेले के दम पर ही अपनी शख्सियत कायम की परंतु अन्य भी कई क्षेत्र ऐसे जहाँ पर कि केवल पुरुषों का वर्चस्व बना हुआ था उसने वहां भी न केवल सेंध लगाई बल्कि अपने लिये अच्छी-खासी जगह भी बनाई याने कि अब हम पहले की तरह ये नहीं कह सकते कि फलां क्षेत्र या कार्य सिर्फ आदमी ही कर सकता हैं क्योंकि अब उसने हर एक क्षेत्र एवं हर काम को ज्यादा बेहतरीन तरीके से कर ये साबित कर दिया कि वो भी उतनी ही काबिल हैं केवल कमी हमारे नजरिये या सोच की हैं जो हमने उसके जेहन में ये भरना शुरू कर दिया कि फलां काम या फलां जगह उसके लिये मुनासिब नहीं पर, जब उसने खुद ही झिझक तोड़कर कदम बढ़ाने की जुरर्त की तो नतीजा उसकी उम्मीदों से भी ज्यादा बढ़कर निकला कि उस समय तक भी उसके मन में कहीं न कहीं सदियों से भरी दकियानूसी बातें भरी हुई थी पर, जब उसने सब तरह के पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर हर तरह की नारी प्रधान प्रचलित सामाजिक धारणाओं से दो-दो हाथ किये तो जाना कि ऐसा कुछ नहीं हैं शारीरिक रूप से क़ुदरत ने भले ही उसे कोमल बनाया हैं लेकिन ताकत उसमें कहीं ज्यादा हैं तभी तो वो असहनीय दर्द सह अपनी जान की कीमत पर भी शिशु को जनम देती और उसका यही दूसरा जन्म उसे हर तरह का जोख़िम लेने की हिम्मत देता हैं केवल उसे ही खुद को इस बात के लिये तैयार करना पड़ता हैं कि यदि उसने कुछ करने का ठान लिया तो उसे उसके सिवा कोई दूसरा रोक नहीं सकता हैं...

ये भी एक भ्रामक विचार जो औरतों के दिमाग में कूट-कूट कर भर दिया गया कि, “नारी न मोहे नारी के रूपा” याने कि एक औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन होती तो इस जंजीर को भी यदि वो काट दे या खुद एक औरत आगे कदम बढ़ाती अपनी ही हमजात के पैरों को बिच्छू की तरह न पकड़ ले तो फिर किसी भी स्त्री को कीर्तिमान बनाने से कोई नहीं रोक सकता जिस तरह एक माँ अपनी बेटी के लिये सहायक बन उसके कदम से कदम मिलाती उसी तरह यदि सभी औरतें भी एक-दूसरे की सहयोगी बन जाये तो फिर वे साथ-साथ अपने लक्ष्य को हासिल कर सकती तो इस श्रृंखला का यही उद्देश्य कि प्रत्यके क्षेत्र में मकाम बनाने वाली महिलाओं को इंगित कर उनकी उपलब्धियों का बखान किया जाये जिससे कि अन्य महिलाओं को भी प्रेरणा मिले और वे भी अपनी उन अदृश्य बेड़ियों को काट आगे बढ़ सके जो उसकी राह रोकती... तो प्रस्तुत हैं प्रत्येक क्षेत्र में विजयी नारियों की ये गाथा... आज इस श्रृंखला की पहली कड़ी आप सबके समक्ष इस उम्मीद के साथ कि आप सब इसे पसंद और प्रोत्साहित करेंगे... :) :) :) !!!        
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०२ मार्च २०१७

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