साथियों... नमस्कार...
जीना यहां, मरना यहां... अंतरिक्ष के
सिवा जाना कहाँ... कुछ ऐसी चाहत बसी थी 'करनाल' में
जन्मी भारतीय बेटी 'कल्पना
चावला' के
मन में तो उसने अपनी ख़्वाहिश को अमली जामा पहनाने पूरा दम-ख़म लगा दिया वो भी उस
प्रदेश में रहकर जहां बेटी का जन्म लेना ही आसान काम नहीं होता उस पर कुछ बनने का
सपना देखना मानो समाज के तथाकथित ठेकेदारों की उस पुरातन सोच को ठेंगा दिखाना
लेकिन 'कल्पना' तो
पैदा ही हुई थी उड़ान भरने के लिये तो पंख न होने पर भी उसने खुद के हौंसलों को कम
नहीं पड़ने दिया कि वो जानती थी ये काम महज़ ख़्वाब देखने या पंख लगाने मात्र से संभव
नहीं होगा इसके लिये 'एस्ट्रोनॉट' बनाना
पड़ेगा और उसके लिये जो मार्ग तय हैं उस पर ही चलना होगा चाहे फिर कितनी भी
मुश्किलें या बाधा राह में आये चलते जाना हैं तो बस, लक्ष्य की प्राप्ति तक रुकना
नहीं इस सूत्र को अंतर में उतार उसने अपनी यात्रा शुरू कर दी जो उनकी अंतिम यात्रा
तक जारी रही...
'अंतरिक्ष' ही
उनका जीवन था तो उन्होंने सिवाय उसके फिर न तो कुछ सोचा और न ही अपने ध्येय से कम
पर संतोष किया जिसकी वजह से वे भारत की एक छोटी जगह से अमरीका और फिर वहां से
अंतरिक्ष तक पहुंची और ये हमारा दुर्भाग्य कि एक दिन ऐसी गयी कि फिर वापस नहीं
लौटी लेकिन देश की लड़कियों को ये संदेश देकर गयी कि मुश्किल नहीं हैं कुछ भी अगर, ठान
लीजिये... 'फेमिनिज्म' या
'स्त्रीवाद' केवल
जोर-जोर से चिल्लाना या फिर आधुनिक वस्त्र पहनकर 'माय चॉइस' का
नारा बुलंद करना हैं बल्कि अपनी काबिलियत के बूते पर कुछ ऐसा अपना वजूद बनाना कि
दूसरी महिलाओं के जीवन में भी सकारात्मक परिवर्तन आये और वो भी आगे बढ़े याने कि
अपने जीवन से दूसरी लड़कियों के जीवन को भी कुछ इस तरह से छूना हैं कि उनकी ज़िंदगी
का दायरा बढ़े और वो छोटी सोच वाले सामाजिक बंधनों से मुक्त होकर कुलांचे भर सके न
कि आप नारी स्वतंत्रता की खोखली दुहाई देते रहे जिससे किसी को कोई लाभ न पहुंचे
ऐसे लोगों को 'कल्पना
चावला' जैसी
सफलतम स्त्रियों की जीवन गाथा से प्रेरणा लेना चाहिये जिन्होंने संकीर्ण मान्यताओं
को अपनी करनी से विस्तृत किया ताकि अगली पीढ़ी उसमें घुटने से बच सके तो सलाम 'कल्पना' को
जिसकी वजह से चंद ही सही नारियों की ज़िंदगी में सकारात्मक परिवर्तन आया... :) :)
:) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१७ मार्च २०१
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