सोमवार, 20 मार्च 2017

सुर-२०१७-७८ : विश्व गौरैया बनाम ख़ुशी दिवस...!!!

साथियों,

नमस्कार...


आज २० मार्च को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 'गौरैया दिवस' ही नहीं 'ख़ुशी दिवस' भी मनाया जाता हैं जो सोचने पर मजबूर करता हैं कि नन्ही-नन्ही चिड़ियों की तरह छोटी-छोटी खुशियां भी जीवन से विलुप्त होती जा रही हैं जिन्हें बचाने के लिये समस्त संसार में एक पूरा दिन ही उनको समर्पित कर दिया गया लेकिन क्या ऐसा करने मात्र से उनका सरंक्षण हो जायेगा या फिर हमें जमीनी स्तर पर भी ठोस प्रयत्न करने पड़ेंगे क्योंकि जिस तरह सभी सरकारी योजनायें महज़ कागज़ पर सिमट कर रह जाती ऐसे ही इस तरह के दिवस आने पर भी सभी बड़े-बड़े सामाजिक संगठनों द्वारा तरह-तरह के आयोजन किये जाते कुछ ख़ास लोगों को आमंत्रित कर उनके उद्बोधन कराये जाते और अगले दिन वही ढाक के तीन पात याने कि बात चाहे किसी दिन विशेष की हो या किसी योजना को क्रियान्वित करने की उनका पेपर वर्क तो बहुत तगड़ा होता और न जाने कहाँ-कहाँ से आंकड़े जुटाकर उनकी सत्यता पर भी प्रमाणिकता की मोहर भी लगा दी जाती लेकिन जब हक़ीक़त में उनको परखा जाता तो कमी नजर आती उस पर आश्चर्यजनक तथ्य कि इस बात का ज्ञान होने पर भी इसी ढर्रे पर इस तरह के सभी आयोजन किये जाते जो दर्शाते कि शायद, सरकार को भी लोगों द्वारा इनके वास्तव में अमल में लाये जाने की बजाय किसी भी तरह विश्व पटल पर इनकी सफ़लता को ज़ाहिर करने में अधिक रुचि होती तो बस, वो भी जगह-जगह से प्राप्त तस्वीरों, खबरों व रिकार्ड्स को ही सत्य मानकर आगे बढ़ जाती जिसकी वजह से अक्सर ये दिवस अपने निर्धारित उद्देश्य को प्राप्त नहीं कर पाते यदि इन सब दिखावों के समारोह या झूठी जानकारियों को एकत्रित न कर समय-समय पर उनकी वास्तविकता की जाँच की जाये तो निसंदेह इनके औचित्य सिद्ध हो सकेंगे ।

ज्यादा दिन नहीं हुए जब 'गौरैया' हर घर-आंगन का हिस्सा थी जिनका घरों में इतना अधिकार था कि एक कोना इनके नाम ही होता था जहाँ ये प्रतिवर्ष आकर न सिर्फ अपने छुटकू-मुटकू को जन्म देती थी बल्कि यही उनको चुग्गा चुगाती व उड़ना भी सिखाती थी और इनकी उपस्थिति की वजह से गृह मालिक भरी दुपहरी में भी अपने घरों की खिड़कियां खुली रखते कि वे कभी-भी आ-जा सके यहाँ तक कि पंखें भी नहीं चलाते कि कहीं उनको चोट न पहुंचे या वे घायल न हो जाये साथ ही वे लोग इनके दाना-पानी का इंतज़ाम भी करते थे इस तरह के सह-जीवन ने ही मनुष्य को प्रकृति से जोड़ रखा था और इस नाते को तोड़कर उसने तकनीक संग हाथ मिलाया जिससे सुविधाएँ तो शायद, कम मिली पर, परेशानियां कुछ अधिक बढ़ गयी जिनमें प्रथम नंबर तो 'स्वास्थ्य' का है जिसे शास्त्रों ने पहला सुख माना हैं पर, हम उससे वंचित हो रहे जिसके कारण खुशियां भी हमारा दामन छोड़ती जा रही तो उसके लिये भी एक दिन मुकर्रर कर दिया गया पर, क्या खुशियां भी किसी दिन विशेष की मोहताज हैं कि जब दिन आया तो खुश हो लिये इसलिये जरूरी कि अब हम सचेत होकर प्रकृति के नजदीक आकर हर बात, हर शय ही नहीं अपने हृदय में छिपी ख़ुशी ढूंढे तब पहले की तरह खुशियों के लिये किसी पर निर्भर होने की जरूरत न रहेगी ।

'गौरैया' और 'ख़ुशी' दिवस का एक साथ होना अपने आप में ये संकेत हैं कि हमने ही सहजता से प्राप्त इन नन्ही-मुन्नी खुशियों को खुद से दूर कर दिया हैं तो अब हमें ही इन्हें फिर से वापस लाना हैं ताकि हमारी आने वाली पीढियां हमें इस बात के लिए न कोसे कि हमने अपने स्वार्थ में अंधे होकर कुदरत का स्वयं के लिये ही दोहन कर लिया और उनके लिये कुछ भी न छोड़ा... तो महज दिन नहीं मनाये बल्कि जो कुछ भी शेष हैं उसकी सुरक्षा का भी प्रबंध करे नहीं तो एक दिन अपने बिछाये इंटरनेट के इस जाल में हम खुद भी पंछियों की तरह घुटकर दम तोड़ देंगे... इस चेतवानी के साथ ही आप सबको इन दिनों की सचेत शुभकामनायें... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२० मार्च २०१७ 

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