सोमवार, 13 मार्च 2017

सुर-२०१७-७२ : 'होली' यही सिखाती, आपस में न बैर करना...!!!

साथियों... नमस्कार...



'होली' रंगों का ऐसा इंद्रधनुषी पर्व है जिसमें इंसान बच्चा बनकर इस तरह से जाने-अनजाने सब लोगों के साथ घुल-मिल जाता हैं कि उसमें जात-पात का भेदभाव ही नहीं वो सारी झूठी पहचान भी खो जाती हैं, जिन्हें अमूमन वो अपनी वास्तविक शख्सियत समझ मानवीयता के अपने मज़हब को विस्मृत कर देता लेकिन 'होली' उसे इस भ्रमजाल से निकाल रंगों से लिपे-पुते चेहरों के आईने में उस इंसान के दर्शन कराता जो वो अपनी पैदाइश के समय था...

जब वो दुनिया में आया तो न तो उसका कोई नाम था और न ही कोई धर्म लेकिन उसके परिजनों द्वारा उसे जो पहचान दी गयी उसकी वजह से वो खुद को किसी खास कौम का बंदा समझने लगा और दूसरी जाति के लोगों को अपने से अलग ही नहीं अपना बैरी भी मानने लगा जिसके कारण साम्प्रदायिकता के अर्थ को भी बदल दंगों की वजह बना दिया परंतु 'होली' उसे वापस बच्चा बना देती जहाँ रंगों के पीछे छिपे सब लोग उसे एक जैसे लगते...

यही एक ऐसा त्यौहार जो नफ़रत ही नहीं भेदभाव के झीने पर्दे को भी बीच में से हटा उसकी जगह इंसानियत का रंगीन चादर ओढा देता जिसके भीतर सब एक हो जाते... उसके इस अनेकता में एकता के भाव को ग्रहण कर सके यदि हम सब तो फिर ये अपने रंग में हम सबको रंगकर 'मानव' बना दे... एक रंग बना दे... इसी भावना के साथ मेरे सभी मित्रों को रंगोत्सव की रंगीन शुभकामनायें... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१३ मार्च २०१

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