शुक्रवार, 3 मार्च 2017

सुर-२०१७-६२ : क्षेत्र कोई हो अपने दम पर... विजय परचम लहराती नारी... ०२ !!!

साथियों... नमस्कार...


कार्यक्षेत्र के दृष्टिकोण से यदि ‘महिला सशक्तिकरण’ की बात की जाये तो प्रथम स्थान पर ‘शिक्षा’ को ही रखा जायेगा क्योंकि यही एक ऐसा दरवाजा हैं जिसके खुलते ही अन्य सभी प्रतिबंधित क्षेत्रों के ताले स्वयमेव ही खुल जाते हैं कि ‘ज्ञान’ हर समस्या की चाबी हैं शायद, यही वजह रही कि महिलाओं को प्रारंभ से ही इससे दूर रखने का प्रयास किया गया जिसके पीछे हवाला उन सभी तर्कों या दलीलों को दिया गया जिसकी अवमानना समान्यतः किसी के लिये भी नामुमकिन होती क्योंकि जन्म से ही ‘धर्म’ उसकी रगों में भर दिया जाता और उसे जीन के लिये ‘ऑक्सीजन’ से भी ज्यादा जरुरी बताया जाता इसलिये ही इसकी वजह से भी कई लोगों की जानें जाती कि ये उसकी सांसों के लिये अधिक आवश्यक बन जाता और यही वो सबसे बड़ी आड़ हैं जिसकी ओट में रख नारियों की चेतना में यह कूट-कूट कर भर दिया गया कि पढ़ाई-लिखाई उसके लिये बनी ही नहीं ये केवल मर्दों का काम कि उन्हें शिक्षित होकर घर-बाहर की जिम्मेदारी संभालनी पड़ती यह भी अकेले उसका ही काम निर्धारित कर उसे सिर्फ ‘शिक्षा’ ही नहीं बल्कि एक-साथ कई जगहों से वंचित कर दिया गया याने कि एक ही अस्त्र से हर कार्यक्षेत्र को धाराशायी कर दिया दूसरे शब्दों में बोले तो कीलक कर दिया वो भी उन धर्मग्रंथो का सहारा लेकर जिन्हें ख़ुद पुरुषों ने ही लिखा तो इसका उसके अंतस में इतना गहरा प्रभाव पड़ा कि पीढ़ी दर पीढ़ी ये उसके जींस में प्रवाहित होता गया जिसकी वजह से एक लम्बे अरसे तक नारी विकास से दूर रही जिसे वेद-शास्त्रों के सिवा किसी भी पुस्तक को पढ़ना पाप बताया तो उसने भी इसे सत्य मान शिरोधार्य कर लिया...

लेकिन ‘असत्य’ आखिर कब तक उसे बांधकर रखता तो जैसा कि नियति में तय था वही हुआ और जिन किताबों या ज्ञान से उसे दूर रखा गया आख़िरकार उसने उसे अपने मस्तिष्क की सामर्थ्य के दम पर हासिल कर उत्किलित कर ही लिया जिसका नतीजा ये निकला कि उसने वो सारे सच जान लिये जिससे उसे दूर रखने का प्रयास किया गया तो जिस तरह आँखों पर बंधी पट्टी खुलने से रंग-बिरंगी दुनिया व उसके नयनाभिराम दृश्य मन को मोह लेते उसी तरह ‘ज्ञान दीपक’ जलने से उसके अंतर में ऐसा प्रकाश फैला जिसने सदियों का अंधकार दूर कर दिया और उन सभी क्षेत्रों में दखल दिया जहाँ उसकी आवाजाही भी अकल्पनीय थी भले उसे ये समझने में बहुत वक्त लगा कि ये सब एक साज़िश का हिस्सा कि वो ज्ञान न प्राप्त कर सके क्योंकि पुरुष को नारियों की शक्ति का बेहतर तरीके से इल्म था और ये वो जान गया था कि यदि उसे शिक्षित किया गया तो तस्वीर का रुख एकदम से पलट जायेगा कि वो इतनी हुनरमंद कि एक साथ घर-बाहर दोनों को सुनियोजित तरीके से संभाल सकती जिसे आज हम सचमुच साकार रूप में देख ही रहे हैं कि किस तरह वो एक ही समय में एक से अधिक कामों को न केवल समुचित तरीके से निपटाती बल्कि अथक परिश्रम करती जिससे कि अपनी ऊर्जा का भरपूर उपयोग कर सके इस तरह इस एक रहस्य ने उज़ागर होकर मानो उसकी सोई हुई समस्त शक्तियों को जागृत कर दिया जिसकी वजह से उसे ‘सुपर वीमेन नाम मिला...
     
आज ‘शिक्षा’ के माध्यम से स्त्री सिर्फ ‘शिक्षा’ ही नहीं बल्कि सभी जगह धमाल कर रही जबकि कभी उसके लिये केवल इस दर को खोला गया था और उसके दिमाग में ये भरने की पुरजोर कोशिश की गयी कि इसके अतिरिक्त अन्य सभी कार्यक्षेत्र उसके लिये मुनासिब नहीं तो इस धारणा को तोड़ने में भी थोड़ा समय लगा लेकिन जब ये दीवार टूटी तो फिर उसके पीछे छिपे हुये वे सभी क्षेत्र भी नजर आने लगे जिन्हें कभी उसके लिये प्रतिबंधित माना गया था... वैसे भी जब से लड़कियों को पढ़ाया जाने लगा तो परीक्षा परिणाम में भी वे अव्वल रहती और कार्यक्षेत्र में उनकी परफोर्मेंस लड़कों की तुलना में ज्यादा ठीक मानी जाती तो सारे वहमों की उसने धज्जियां उड़ा दी कि वो कुछ नहीं कर सकती यदि कभी प्रयत्न भी किया तो ज्यादा से ज्यादा शिक्षिका मात्र बन सकती पर, शिक्षा के पर लगाकर वो आसमान की ऊँचाइयाँ ही नहीं छू रही बल्कि उसके परे भी जा रही आखिर, उसकी देह भी तो उसी  पंचतत्वों से बनी जिससे पुरुषों की बनाई गयी थोड़ी-बहुत जो असमानता हैं, वो प्राकृतिक जो उसकी कमतरी इंगित नहीं करती बल्कि उसे आदमियों से भिन्न दर्शाती... तो उसे शारीरिक रूप से अलग भले समझे लेकिन किसी काम से विलग न करें... वो सक्षम उतनी, जितनी ईश्वर की बनाई दूसरी कृति... तभी तो कोई भेदभाव न करती प्रकृति... :) :) :) !!!        
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०३ मार्च २०१७

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