बुधवार, 1 मार्च 2017

सुर-२०१७-६१ : "कद नहीं शख्सियत मायने रखती... तभी तो चींटी भी हाथी से नहीं डरती...!!!"

साथियों... नमस्कार...


जहाँ काम आये सुई क्या करें तलवार ?

इससे छोटी-सी सुई की ही नहीं हर उस छोटी चीज़ की महत्ता प्रकट होती जिसे अमूमन उसकी लघु आकृति की वजह से उतनी तवज्जो नहीं दी जाती लेकिन जब काम पड़ता तो अहसास होता कि जो काम ‘सुई’ से हो सकता वो ‘तलवार’ से नहीं किया जा सकता याने कि हमें काम के अनुसार सामान की आवश्यकता पडती लेकिन बात सिर्फ वस्तु की नहीं व्यक्ति की भी हैं अक्सर हम छोटे नजर आने वाले लोगों को हेय दृष्टि से देखते क्योंकि उस वक़्त हम उसका मुल्यांकन उसकी काबिलियत नहीं उनके ‘कद’ या ‘पद’ से करते लेकिन कभी-कभी ऐसा समय आता कि वही व्यक्ति जिसे कि छोटा समझ नकार दिया था हमारे लिये बेहद जरूरी हो जाता कि उसके बिना हमारा कार्य रुक जाता कुछ ऐसा ही होता कीट-पतंगो और जानवरों के साथ भी कि उनकी बाहरी आकृति से उनका आकलन किया जाता जबकि देखा जाये तो सबसे मेहनती ‘नन्ही चींटी’ होती जो दिखने में नगण्य होती पर, अपने वजन से दस गुना भार भी अपने दम पर ढोती और यदि वही विशालकाय हाथी की नाक में घुस जाये तो उसे भी जमीन पर धराशायी कर धूल चाटने पर मजबूर कर देती और इसी की तरह छोटी दिखने वाली मक्खी हो या मच्छर या चूहा इनके आतंक से कौन परिचित नहीं जिनके आगे बड़े-बड़े इंसान भी परेशान हो जाते और कभी-कभी तो मौत की कगार पर पहुंच जाते याने कि ये छोटी दिखने वाली चीजें घातक भी हो सकती...

ये तो फिर भी वो सब चीजें जिन्हें हम देख सकते तो कहीं न कहीं इनसे बचाव भी कर सकते लेकिन उन अदृश्य या अति-सूक्ष्म जीवाणु और विषाणुओं का क्या करें जो हमें अपनी आँखों से दिखाई भी नहीं देते पर, मनुष्य के समूहों तक को नष्ट करने की क्षमता रखते जिनसे बचना या सुरक्षा केवल तभी संभव जबकि उनकी पूरी जानकरी या उनके विषय में पर्याप्त ज्ञान हो यही कारण कि जब कभी हम उनकी गिरफ्त में आते तो खुद को एकदम असहाय पाते और तब ही ये महसूस करते कि जो दिख रहा केवल वही नहीं बल्कि जो दिखाई नहीं दे रहा वो भी हमारे लिये नुक्सानदायक हो सकता फिर भी ये सब जानते-बूझते भी हम उनकी अहमियत नहीं समझ पाते जिसका खामियाज़ा भविष्य में भुगतना पड़ता क्योंकि अपनी आँखों पर पड़े अहं के चश्मे से भी कई बार हमें वो दृष्टिगोचर नहीं होता जो हमारे नजर के दायरे में नहीं आता पर, इसका तात्पर्य ये कतई नहीं कि उसका वज़ूद हैं ही नहीं बेशक हमारी आँखें उसे देख नहीं पा रही पर, ये जरूरी नहीं कि उसकी दृष्टि से हम बच जाये तभी तो अक्सर पैरों के नीचे जहरीला सांप या बिच्छू आ जाता जो हमारी अनभिज्ञता का फायदा उठा हमें डंस लेता कभी-कभी इस जगह उसी तासीर का व्यक्ति भी छिपा हो सकता जो बदले की भावना से हम पर नजर रख रहा हो कि हम चूके और वो हम पर वार करें तो सदा यही करें कि किसी को भी उसके ‘कद’ या ‘पद’ से नहीं बल्कि उसकी शख्सियत से नापे... दिखावे पर न जाकर भीतर झाँकने वाली नजर भी रखे जो उसके योग्यता का वास्तविक आंकलन कर सके... न कि बाहरी रूप-रंग पर ही अटक कर रह जाये... :) :) :) !!!   
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०१ मार्च २०१७

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