मंगलवार, 21 मार्च 2017

सुर-२०१७-७९ : विश्व काव्य दिवस बताता... कविता में इतिहास समाया...!!!

साथियों... नमस्कार...


'कविता' एक ऐसा शब्द जिसमें शब्दों और भावों की ऐसी सरिता बहती हैं जहाँ पाठक ख़ुशी-ख़ुशी गोते लगाता हैं और जितनी भी बार वो जितने गहरे उतरता हैं उतनी ही बार नवीन अर्थों के मोती हाथ आते हैं लेकिन तभी जब वो गहन अनुभवों की कंदरा में से स्वतः ही फूटती हैं या फिर किसी हृदय विदारक दृश्य को देखकर झरने की तरह निकल पड़ती हैं तब उसकी अनुभूति का वो कोमल अहसास सामने वाले को भी उसी तरह महसूस होता हैं भावना के जिस धरातल पर उतरकर कलमकार ने उसे अभिव्यक्त किया यूँ बोले कि जब लिखने वाला अपने मनोभावों को ज्यों का त्यों पन्नों पर उतार देता हैं जैसा कि उसने देखा या जो उसने अपने अंतर में अनुभूत किया फिर उसका वो शाब्दिक वर्णन पढ़ने वाले को किसी चित्र की भांति सजीव दिखाई देने लगता और जब कलम किसी भी वाकये या किसी भी अहसास को इस तरह हूबहू व्यक्त करने में सक्षम हो तो फिर निसंदेह उससे निकली रचना कालजयी बन जाती कि उसमें महज़ अल्फ़ाज़ नहीं वास्तविकता की गाथा कैद होती जिसे पढ़कर उस काल का अंदाज़ा लगाना भी सहज हो जाता तो इस तरह से एक कविता जो अपने भीतर सच्चाई को समेटी हो उसे महज़ 'कविता' कहना उसका सही मूल्यांकन नहीं दर्शाता कि वो उस कालखंड का परिचायक बन हमें उस दौर से परिचित करवाती और इस तरह से वो इतिहास की परिवाहक बन जाती जिसमें अतीत का वर्णन उबाऊ न होकर रोचक और स्मरणीय बन जाता कि जहाँ गद्य को याद करना कुछ मुश्किल होता वहीँ पद्यमय उल्लेख सरस व लय में होने की वजह से तुरंत जेहन में बैठ जाता इसलिये बचपन से ही बच्चों को कहानी की जगह कविता या पोएम ही रटवाई जाती जिसे वो एक-दो बार सुनकर ही दोहरा देता कि उसकी तुकबंदी उसे नन्हे-मुन्नों के लिए गाह्य बना देती...
हम सब भी यदि अपने बचपन में जाये तो उस समय की अनेक छोटी-बड़ी कवितायेँ एक-एक कर याद आती जायेगी जो हम अक्सर खेलते समय या पढ़ते वक़्त गाते थे तब तो हमारी नानी-दादी और बुआ व मम्मी सब हमें कभी कोई कविता सुनाकर खाना खिलाते तो कभी कोई गीत सुनाकर मनाते और कभी कोई लोरी सुनाकर सुलाते और इस तरह सुबह से लेकर रात तक हम किसी न किसी कविता के साथ होते जो कभी 'शब्द' तो कभी किसी 'शख्स' के रूप में हमें मिलती इसलिये उसका साथ हमें बड़ा भाता और इस तरह हमारा उससे प्रथम परिचय होता जो उमर के साथ-साथ बढ़ता ही जाता केवल उसका जायका बदल जाता जहाँ पहले 'चंदा मामा दूर के' या 'मछली जल की रानी हैं' जैसी मासूम कवितायेँ अच्छी लगती तो वहीँ किशोर अवस्था या यौवन के अंगड़ाई लेते ही रूमानी शायरी, गीत-ग़ज़ल आदि मन को भाने लगते और वहीँ उम्र ढलने पर संजीदा गाने या दुःख-दर्द भरे नगमें और भजन आदि से राहत महसूस होती... इस तरह से देखें तो हम पाते हैं कि हमारी पैदाइश से लेकर अंतिम यात्रा तक कविता हमारे साथ होती हैं और यही वजह कि उससे हमारा जुड़ाव भी गहरा होता और जितनी कविताएँ, उतनी ही यादें हमारे जीवन का हिस्सा बनती हैं जिनके इर्द-गिर्द हम खुद को बड़ा हल्का व मानवीय भावों से भरपूर पाते और जब ये भाव छलकते तो शब्दों में काव्य बन झलकते तभी कहा जाता कि कवि होने से पहले कवि हृदय होना जरूरी कि जिसके अंदर नाज़ुक जज्बात होंगे वही उन्हें व्यक्त करने का हुनरमंद भी होगा तो यही इस 'काव्य दिवस' का उद्देश्य भी कि हम अपने अंतर के कवि और कविता को किन्हीं भी हालातों में मरने न दे फिर हमारा जीवन भी एक कविता बन जायेगा तो फिर बोरियत या नीरसता का कहीं कोई नामो-निशान भी न रहेगा... तो यही हो प्रयास हमारा कि बने कविता जीवन हमारा... इसी मनोकामना के साथ सबको 'विश्व कविता दिवस' की ढेर सारी शुभकामनाएं... :) :) :)

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२१ मार्च २०१७ 

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