शनिवार, 18 मार्च 2017

सुर-२०१७-७६ : पाने अपना अलग मुक़ाम... लीक से हटकर करना होगा काम...!!!

 साथियों... नमस्कार...


'वैशाली' सुबह-सुबह अलार्म की आवाज़ से जगी तो जल्दी से किचन में जाकर चाय बनाई तब वापस आकर 'रोहित' को जगाया और फिर दोनों जल्दी-जल्दी अपने सुबह के कामों को निपटाने में लग गये क्योंकि दोनों को एक साथ ही 10 बजे निकलना होता पहले 'रोहित' उसे उसके ऑफिस ड्राप करता फिर अपने काम पर निकलता और शाम को पुनः वो उसे लेकर घर आता तो वो चाय-नाश्ता बना रात के खाने की तैयारी में जुट जाती जबकि रोहित अपने दोस्तों के पास चला जाता और उसके आने के बाद खाते-पीते बतियाते रात बारह बजे के बाद ही दोनों सो पाते और फिर अगले दिन कोल्हू के बैल की तरह उसी दिनचर्या की पुनरावृत्ति होती जिसमें किसी भी अन्य काम के लिए कोई गुंजाईश नहीं थी और जब से 'सोशल मीडिया' 'ऑनलाइन शॉपिंग का चलन आया वे बाहर जाना भी भूल गये मोबाइल से ही सारा काम कर लेते जिसकी वजह से कहीं भीतर कुछ घटता जा रहा था और जीवन सीमित दायरे में सिमट कर रह गया था तो आपसी रिश्तों में प्रेम की ऊष्मा भी कम होती जा रही थी जिसका अहसास उन्हें तब हुआ...

जब उनकी मुलाकात अपने कॉलेज के जमाने के युगल दोस्त 'सारा-मिहिर' से हुई तो उनकी जिंदादिली व ताज़गी से वे हैरत में पड़ गये क्योंकि अपनी मशीनी ज़िंदगी में उनका व्यवहार इतना कृत्रिम हो चुका था जीवन की असलियत से नाता टूट ही गया था ऐसे में जब उनको स्टार्टअप के जरिये खुद का बिजनेस स्थापित करने के बाद समाज हित में सलंग्न देखा तो लगा कि भले अपनी नौकरियों में उन्होंने बड़ी तरक्की कर ली हो घर में सुख-सुविधा की हर वस्तु जुटा ली हो तथा बच्चों को विदेश पढ़ने भेज दिया हो लेकिन, जब खुद की स्थिति अपेक्षाकृत दूसरों से अधिक संपन्न हो तब सिर्फ अपने लिये न जीते हुए अपनों से नीचे वालों के स्तर को भी बढ़ाने का प्रयास ही जीवन को सार्थकता देता और "जीना इसी का नाम हैं" को चरितार्थ करता...

उन दोनों से लंबी बात कर उन्होंने जाना कि किस तरह उन दोनों ने अपनी बंधी-बंधाई लाइफ स्टाइल से उन सभी निरर्थक कामों से थोड़ा-थोड़ा वक़्त चुराते हुये वो सब किया जो वो चाहते थे तब रोहित और वैशाली को लगा कि उनके मन में भी बहुत कुछ करने के अरमान थे लेकिन अपनी जीवन शैली में वे इन कदर फंसे कि तयशुदा ढर्रे के सिवाय कुछ भी अलग करने का समय कभी निकाल नहीं पाए जबकि यदि वे कभी कोशिश करते तो वीकेंड पर जो लेट नाईट पार्टीज या दोस्तों के साथ मस्ती करते या हॉलीडेज पर आराम फरमाते या घुमाने चले जाते उन सब से ही कुछ पल अपनी शौक के लिए निकाल सकते थे पर, हमेशा व्यस्तता का रोना ही रोते रहे कभी उस बंधन को तोड़ने हाथ बढ़ाया ही नहीं बेमन से सब करते रहे पर, ये न सोचा कभी कि ऐसे ही जीवन बीत जायेगा और वो सब अधूरी ख्वाहिशें जो भीतर दबी पड़ी कचोटेती रहेगी हमेशा और मृत्यु के बाद क्या हो क्या पता तो आज ही तयशुदा दिनचर्या के चक्रव्यूह को तोड़कर बाहर निकले अन्यथा कल इतनी भी शक्ति शेष न रहेगी कि कदम भी आगे बढ़ा सके और अगले ही दिन दोनों ने नाईट स्कूल लगा कचड़ा बीनने वाले बच्चों, निरक्षर बड़े-बूढ़ों को निःशुल्क पढ़ाना शुरू कर दिया जिन्हें रोज देखकर ये ख्याल मन में आता था पर, इसके कारण उनकी निश्चित लाइफ स्टाइल में बाधा आयेगी वे देखकर अनदेखा कर देते लेकिन आज जान गये कि 'पाना हैं अगर, अपना अलग मुकाम, तो करना ही होगा लीक से हटकर काम'... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१८ मार्च २०१

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