गुरुवार, 9 मार्च 2017

सुर-२०१७-६८ : लघुकथा : ‘माँ बिना मायका’

साथियों... नमस्कार...


भैया कहते हुये, ‘तुहिना’ ने जैसे ही कमरे में कदम रखा तो तुरंत उसके भाई ‘स्निग्ध’ ने उसकी तरफ देखा पर, उसकी नजर पलंग पर बैठी भाभी पर अटक गयी जो शायद, रो रही थी उसके कदम वहीँ ठिठक गये और उसने प्रश्नवाचक नजरों से भाई की तरफ देखा तो वो बोले, छोटी ये तूने क्या कह दिया अपनी भाभी से कि, ‘माँ के जाते ही मायका खत्म, अब तो भाई-भाभी भी बदल जायेंगे’ देख तेरी भाभी को कितना बुरा लगा वो कह रही कि माँ के होने से ही ये ‘मायका’ हैं तो बिना माँ के क्या इसका नाम बदल जायेगा ?

माना, माँ नहीं रही तो क्या हुआ बहन या सहेली जो समझे वैसी भाभी तो हैं पर, तूने ये कहकर उसको हर्ट कर दिया जो इस सोच के साथ इस घर में आई थी कि पुरानी मान्यताओं को तोड़ इस घर की बहु ही नहीं बेटी बनकर रहेगी तो इस नाते से उसने तेरे साथ हमेशा बराबरी का व्यवहार किया फिर आज तेरे मुंह से ये जो ये बात निकली तो उसे लगा कि उस धारणा को बदलना आसान नहीं ‘तुहिना’ ने बढकर भाभी को गले लगा लिया और उसे लगा कि माँ बिना भी मायका हो सकता हैं     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०९ मार्च २०१

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