गुरुवार, 23 मार्च 2017

सुर-२०१७-८१ : भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव... बने जंग-ए-आज़ादी के तीन शेर... !!!

साथियों... नमस्कार...


२३ मार्च १९३१ की सुबह हर उस हिंदुस्तानी के हृदय को टीस पहुंचाती हैं जिसे अपनी मातृभूमि और अपने देश के शाहीदों की कुर्बानी का जरा-सा भी अहसास हैं कि किस तरह गुलामी की त्रासदी से आकंठ डूबा हर एक भारतीय उससे निजात पाने अपनी जान की कीमत पर भी फिरंगियों से टक्कर लेने तैयार था वो भी उम्र के उस मोड़ पर जबकि जीवन प्यारा लगता हैं लेकिन जब सांसें बंधक हो और आज़ाद पर भी पहरा हो तो फिर बचपन हो या जवानी कुछ भी मन को नहीं भाता कुछ ऐसा ही महसूस होता था उस दौर के नौजवानों को भी जो अपने ही घर में परतंत्रता की बेड़ियों में खुद को असहाय महसूस कर रहे थे तो फिर उन सलाखों से खुद को स्वतंत्र कराने उन सबने मिलकर युवा शक्ति और ऊर्जा को एक ही लक्ष्य की दिशा में लगा दिया जिसमें समझौता किसी भी स्थिति में स्वीकार न था...

ऐसा नहीं कि उस वक़्त केवल यही तीन युवा सक्रिय थे और केवल इन्हें ही अपने देश से अधिक प्रेम था बस, इनके भीतर का जज्बा इन्हें हर तरह का खतरा उठाने प्रेरित करता था जिसके कारण इन लोगों ने वो कारनामें कर दिखाये जो इनसे पहले कोई दूसरा न कर सका वो भी अपने अंजाम को जानते हुए भी कि यदि पकड़े गये तो फांसी के फंदे से कोई भी न बचा पायेगा इन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ अपना मोर्चा जारी रखा और गिरफ्त में आने पर भी किसी तरह का भय इन्हें अपने पथ से डिगा न सका बल्कि इनके हौसलों को देखकर उल्टे अंग्रेजी सरकार को इनसे खतरा महसूस हो रहा था तो उन्होंने निर्धारित तिथि से पूर्व ही इन तीनों शेरों को फांसी पर लटका दिया जो इनके प्रति उनके खौफ़ को दर्शाता हैं कि ब्रिटिश शासन को ये समझ आ गया था कि यदि इन्हें छोड़ दिया गया तो उन्हें समय से पूर्व ही भारत को आज़ाद करना पड़ेगा वैसे वो ये जान ही चुके थे कि हिंदुस्तानियों को अब अधिक दिनों तक कैद में रखना मुश्किल होगा लेकिन जब तक वे इस फरमान को रोक सकते थे उन्होंने वो प्रयास किया तभी तो १९३१ की इस काली सुबह के बाद १५ अगस्त १९४७ की आधी रात में आज़ादी का सूरज उगा जिसकी किरणों में अनगिनत बलिदानियों के रक्त की लालिमा समाई थी...

इन तीन शेरों ने युवावस्था में अपने साहस से जिस तरह अंग्रेजों का मुकाबला किया और हंसते-हंसते मौत को गले लगाया उस हृदय विदारक दृश्य ने हर किसी को ग़मगीन कर दिया और उसी बलिदान का परिणाम कि हम आज न सिर्फ स्वतंत्र हैं बल्कि उनकी शहादत को भी भूल नहीं पाये जो आज के युवाओं के लिये प्रेरणादायक और झकझोर करने वाली हैं कि जिस आयु में वे अपने समय व ऊर्जा को फ़िज़ूल गंवाते उस अवस्था में ये तीनों अपनी भूमिका अदा कर दुनिया से रुखसत कर गए... शहीद दिवस पर भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव को मन से नमन और ये शब्दांजली... कोटि-कोटि प्रणाम... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२३ मार्च २०१७

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