मंगलवार, 14 मार्च 2017

सुर-२०१७-७३ : हर किसी को नहीं मिलता भाई-बहन का अनमोल रिश्ता...!!!

साथियों... नमस्कार...


हमारी संस्कृति में हर एक रिश्ते को पर्याप्त स्नेह ही नहीं समुचित मान-सम्मान भी दिया जाता हैं जिसका परिचायक होते हैं वे विशेष दिवस जो इन रिश्तों को समर्पित होते हैं फिर चाहे वो माता-पिता, पति-पत्नी या फिर भाई-बहन का नाता क्यों न हो सबको ही विशेष रूप से समान दर्जा दिया जाता हैं जिससे कि हम उनकी महत्ता को समझ सके क्योंकि इन खास दिनों में ही हमें इनके होने या न होने की अहमियत समझ आती जब ये हमें नसीब होते या नहीं होते...

जरूरी नहीं कि हर भाई की एक प्यारी बहन हो ही या हर बहन को प्यार करने वाला एक भाई मिले जिसकी कमी शिद्दत से तभी महसूस होती जब ये अवसर आते तब लगता कि काश, हमारे पास भी हमारा ऐसा कोई साथी होता जिसके साथ बचपन से ही हमारा अटूट बंधन होता और जब ये दिन आता तो हम उसे और प्रगाढ़ बनाने रस्मों का निर्वहन करते...

ये पर्व जो रिश्तों को समर्पित होते हमारे मन में उस उस संबंध के प्रति लगाव तो पैदा करते ही साथ-साथ उसको अधिक मजबूत भी बना देते क्योंकि यदि मन में कोई कटुता कभी आ भी जाती तो इसके बहाने उसे दूर करने का सुनहरा मौका मिल जाता शायद, इसलिये ऐसे त्योहारों को परंपरा का हिस्सा बना दिया गया जिससे कि रिश्तों की डोर कभी किसी वजह से कमजोर भी पड़ जाये तो इस दिन सारे मन-मुटाव को दरकिनार कर फिर से उसे कस लिया जाये तभी तो जब भाई-बहन का कोई उत्सव आता तो परदेस में ब्याही बहना से मिलने भाई दौड़ा चला आता या कभी बहन ही उसके पास आ जाती जिससे कि वे मिलकर इसे सार्थक बना सके...

ऐसा ही हैं ये एक ही कोख से जन्मे खून के रिश्तों या कभी मन से अपना लिये नेह के नातों को समर्पित त्यौहार 'भाई दूज' जो होली के दूसरे दिन मनाया जाता जब एक बहन भाई के माथे पर गुलाल का टीका लगाकर उसकी आरती उतारती और उसकी मंगलकामना करती और फिर दोनों एक-दूसरे को मिठाई खिला प्रेम से सौग़ात देते तो इस पावन पर्व की सभी को बहुत-बहुत हार्दिक शुभकामनाएं... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१४ मार्च २०१

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