मंगलवार, 7 मार्च 2017

सुर-२०१७-६६ : क्षेत्र कोई हो अपने दम पर... विजय परचम लहराती नारी... ०६ !!!

साथियों... नमस्कार...


‘भारत’ की आज़ादी के बाद भी महिलाओं की स्थिति में ज्यादा परिवर्तन नहीं आया जबकि उसे पाने में उन्होंने भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी परंतु भारतीय महिलाओं की उन्नति के इतिहास में कुछ नये अध्याय जुड़ने बाकी थे, जो यूँ ही लिखे जाने तो संभव नहीं थे अतः इसके लिये उसका कुछ अनोखा व अभूतपूर्व करना जरूरी ही नहीं बल्कि अपनी निश्चित परिपाटी को बदल उसमे ऐसा परिवर्तन लाने की भी आवश्यकता थी जो मिसाल बन सके क्योंकि मिसालें ही दी जाती तो ‘महिला सशक्तिकरण’ को सार्थकता देने भारतीय नारियों ने ये जान लिया कि अपनी नाज़ुक कलाइयों से केवल खुद को सजाने-संवारने या घर की साज-सज्जा करने या फिर उनसे कड़छी-बेलन पकड़ने की बजाय कानून की पिस्तौल थामकर ‘रिवाल्वर रानी’ बनने की जरूरत हैं और वो भी ऐसी कि जिसे देश याद करें, जिसे देखकर दूसरी नारियां भी अपनी योग्यता को इस क्षेत्र में भी परख सके कि ये वो जगह जहाँ ‘महिलाओं का प्रवेश अघोषित निषेध’ माना जाता था पर, उसके अंदर भी वो साहस व सामर्थ्य जिसे हथियार बनाकर वो अपने अधिकारों की जंग लड़ सकती तो उसने उन सभी कार्यक्षेत्रों में अपनी शक्ति आजमाई जिसे एक तरह से सिर्फ पुरुषों के लिये ही आरक्षित माना जाता था तो एक-एक कर उसने उन सभी को लक्ष्य साधकर निशाना बनाया और अपनी पूरी ताकत से उस क्षेत्र में अपनी स्थायी जगह बनाकर बेमिसाल फतेह भी पाई तो इसका परिणाम कि अब शायद, ही कोई ऐसा स्थान शेष जहां पर कि ‘महिला’ दिखाई न देती हो क्योंकि अब वो जान गयी कि उसे पुरुषों ने जान-बूझकर ही कुछ ‘वर्किंग प्लेसेस’ से दूर रखा ताकि वो कमतरी के अहसास में ही जीती रहे लेकिन कब तक???

एक दिन तो उसे इस भ्रमजाल से बाहर निकलना ही था आखिर कब तक वो उसके बनाये नियमों के कठघरे में ही बंद रहती या उसके द्वारा निर्धारित मापदंडो के अनुसार खुद को महज़ खुबसूरत अप्सरा की भांति सजाती-संवारती रहती तो जिस दिन उसने सामने रखी ‘ड्रेसिंग टेबल’ पर से सौंदर्य-प्रसाधनों को हटाकर उसकी जगह किताबें सजाई और आईने की जगह अख़बार की सुर्ख़ियों में अपना नाम देखना शुरू किया उसी दिन वो ये रहस्य जान गयी कि वो सिर्फ़ सजावट की वस्तु या कोई गृहस्थन मात्र नहीं उसके वज़ूद के भी कई आयाम हो सकते हैं जब वो ‘एक’ होकर भी अपनों व परायों के लिये एक साथ अनेकों काम बखूबी संभाल सकती तो फिर उसी ऊर्जा से वो खुद के लिये ऐसा कुछ नहीं कर सकती क्या जिससे उसको नाम-पहचान मिले या फिर वो मम्मी, चाची, मामी, दादी, नानी, मुन्ने की माँ के नाम से ही जानी जायेगी, कब शादी कर दूसरे का सरनेम अपने नाम से लगाकर अपनी पृथक पहचान गंवाती रहेगी कभी तो उसे अपने स्वतंत्र अस्तित्व के साथ जीने का गौरव प्राप्त होगा जहाँ उसके साथ किसी रिश्ते का ‘टैग’ नहीं और न ही माथे या गले में किसी के नाम की पट्टी होगी वो दुनिया में अपनी काबिलियत से पहचानी जायेगी उसकी इस ललक ने उसके सोच-विचार की दिशा को नये रास्तों की तरफ मोड़ना शुरू किया जिसका नतीजा कि उसने बंधे-बंधाये ढर्रे या निश्चित लीक से हटकर कुछ नया व अनोखा करने की तरफ अपने कदम बढ़ा दिये तो ऐसे कई रास्ते मिलते गये जहाँ पहले किसी भी महिला ने कदम नहीं रखे थे तो इस राह पर चलकर उसने जिस मंजिल पर अपना पड़ाव बनाया वो मील का पत्थर बन गया जिसे देखकर दूसरी महिलाओं ने फिर इस मार्ग पर चलने का तय किया क्योंकि बहुत-सी मंजिलें ऐसी होती जिनके कोई तयशुदा पथ नहीं होते कई बार तो उस तक पहुंचने की कोई राह नजर ही नहीं आती ऐसे में कुछ वापस लौट जाते तो कुछ नये रास्ते बना लेते और जो ऐसा करते उनके ही नाम इतिहास में आते...

‘प्रशासनिक सेवा’ एक ऐसी ही मुश्किल मंजिल थी जिसकी डगर बड़ी कठिन थी पर, जिसने अफ़सर बनने की शपथ ले ली फिर उस मार्ग में आने वाले कांटे या कंकड कब उसके जख्मी पाँव को आगे बढ़ने से रोक सके तो कुछ ऐसा ही कारनामा कर दिखाया ‘किरण बेदी’ ने १९७२ में जब वे देश की प्रथम महिला आई.पी.एस. बनी जब उसके पूर्व कोई भी लड़की पुलिस महकमे में आने या अधिकारी बन पुरुषों की तरह वर्दी पहनकर अपराधियों के बीच समय व्यतीत करने या देर रात तक ड्यूटी करने के बारे में सोच भी नहीं सकती थी पर, उन्होंने न केवल इस पदभार को ग्रहण किया बल्कि इस तरह से अपने दायित्वों का निर्वाह किया कि आज भी लोग उनके कार्यकाल की घटनाओं का ब्यौरा देते जब एक बार उन्होंने ‘परिवहन अधिकारी’ के रूप में कार्य करते हुये तत्कालीन प्रधानमन्त्री ‘इंदिरा गाँधी’ की गाड़ी को ‘नो पार्किंग जोन’ में खड़े किया जाने पर क्रेन से उठवा दिया उस वक्त उनका नाम ‘किरण बेदी’ की जगह ‘क्रेन बेदी’ पड़ गया ऐसे ही अनेक हैरतंगेज किस्से उनके साथ जुड़े जिसने उन्हें देश ही नहीं विदेशों में भी ख्याति व सम्मान दिलवाये इसके बाद ‘अन्ना राजम’ ने देश की प्रथम आई.ए.एस. होने का गौरव हासिल किया फिर तो सिलसिला ही निकला पड़ा जब महिलाओं ने सिविल सर्विसेज में आने का फैसला किया तो अब ‘यू.पी.एस.सी.’ एवं ‘पी.एस.सी.’ जैसी प्रतियोगी परीक्षाओं में उनकी ही संख्या व रैंक लड़को से उच्च होती इस त्तरह ‘नारी शक्ति’ ने अपने कौशल व विलक्षण दक्षता से इस अभेद्य किले को भी जीत लिया... :) :) :) !!!                           
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०७ मार्च २०१

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