बुधवार, 8 मार्च 2017

सुर-२०१७-६७ : क्षेत्र कोई हो अपने दम पर... विजय परचम लहराती नारी... अंतिम क़िस्त... !!!

साथियों... नमस्कार...


आज वो दिन आ ही गया जिसके उपलक्ष्य में ये श्रृंखला लिखी जा रही थी याने कि ‘विश्व महिला दिवस’ जिसकी अलग-अलग कड़ियों में हमने ये जानने का प्रयास किया कि विभिन्न कार्यक्षेत्रों में महिलाओं ने किस तरह से अपनी धाक जमाई जिनमें कुछ तो ऐसे हैं जिन्हें कि महिलाओं के लिये लगभग प्रतिबंधित माना गया था लेकिन जैसी कि उसकी आदत वो कोई भी काम पूरी तन्मयता के साथ कर उसमें अपना सर्वश्रेष्ठ देने का प्रयास करती तो उसने वही किया जिसके कारण हर जगह वो अव्वल नंबर पर नजर आती, वो भी तब जब उसे दोयम दर्जे पर रखा जाता जो स्वयमेव ये सिद्ध करता कि जिस दिन उसे समकक्ष समझकर उसके साथ वैसा ही बर्ताव किया जायेगा बिना किसी भेदभाव के जैसा किसी एक विशेष लिंग के साथ किया जाता तो उस दिन वो अपनी संपूर्णता के साथ उभरकर इस तरह से अपनी काबिलियत का प्रदर्शन करेगी कि दुनिया के बाकी हिस्सों में जिस तरह से दिखाई देती क्योंकि अभी न केवल उसको कोख़ में ही जीने दिया जाता और न ही धरती पर ही उसके साथ न्याय किया जाता फिर भी वो इतने विरोधों व दबाबों के बावजूद भी वो अपनी इच्छाओं को मरने नहीं देती और शख्सियत को वही आकार देती जैसा कि वो चाहती उसे भी यदि हम प्रतिशत के रूप में देखे तो पाते कि ये तो वो गिनी-चुनी स्त्रियाँ हैं जो किसी तरह गर्भ में मरने से बच सकी उसमें भी कुछ ही ऐसी जिन्हें कि जन्म के बाद अनुकूल माहौल मिला या जिन्होंने अपने हक को पाने संघर्ष किया बाकी तो ‘बेचारी’ बन अपने परिवार, समाज या खानदान की बलि चढ़ गयी यदि वे सब भी इसमें शामिल होती तो क्या परिदृश्य वही होता जो आज हम देख रहे कि ये महज़ उंगलियों पर गिने जाने वाले नाम जिन्होंने अलग-अलग फील्ड में अपनी ख़ास पहचान कायम की जिससे कि उसकी स्थिति में थोड़ा ही सुधार आया लेकिन जब १००% कन्यायें अपना १००% देंगी तो निसंदेह बदलाव भी १००% ही होगा...

इस स्तर तक पहुँचने के लिये कुछ परिवर्तन स्त्रियों को भी अपनी तरफ से लाने होंगे जैसे कि सबसे पहले तो एक स्त्री को ही कन्या भ्रूण को मारने का प्रबल विरोध करना होगा फिर उसके जन्म के बाद उसके दिमाग में लड़की वाली आदतें/लड़की होने के विशेष मायने विकसित करने से बचना चाहिये एवं खुबसूरती एवं सौंदर्य-प्रसाधनों के बीच फंसकर खुद को ३६-२४-३६ के आंकड़े में बांध महज़ सुंदरता का प्रतिमान बन खुद को दूसरों की नजरों से देखने की फ़ितरत से मुक्ति पानी होगी और अपने लड़की होने का फ़ायदा उठाने की मानसिकता से भी बाहर निकलना होगा क्योंकि ये सब कुछ ऐसे अवरोध जो उसके विकास को रोकते तो सिर्फ मर्दों को दोष देने की जगह जो कुछ उससे संभव वो सब उसे भी करना होगा वैसे भी वो प्रथम शिक्षिका जैसा चाहे वैसे ही वातावरण बना ले अपने घर में पैदा होने वाले लड़के के मन में भी यदि बचपन से ही मर्द होने वाली भावना न भरे तो समाज की तस्वीर में वो बराबरी के साथ दर्ज हो सकती नहीं तो वो उसी तरह से अपने आपको देह समझ बढ़ती जायेगी फिर किस तरह से दूसरों से ये उम्मीद करेगी कि वो उसे जिस्म न समझे पहले खुद उसे ही अपने आपको इंसान मानना होगा जो केवल शारीरिक आकृति में भिन्न न कि किसी तरह की क्षमताओं में लेकिन पीढियों से जींस में ये भर दिया गया कि उसका काम केवल गृह संचालन, श्रृंगार करना, बच्चे पैदा कर पालना तो वो भी इससे मुक्त नहीं हो पाई पर, जिस दिन उसकी पैदाइश के पूर्व ही उसको लेकर किसी तरह की धारणायें निर्मित न की जायेगी या उसे अलग तरह से न पाला जायेगा वो दिन उसके मन में जमी उन प्राचीन इबारतों को मिटा उस स्थान पर नई सोच की नई शब्दावली लिखेगा जिससे वो खुद अपने हाथों अपनी कहानी लिखेगी पुरुषों द्वारा निर्धारित नियमावली को बदलकर अपने नियम खुद गढ़ेगी आख़िर, उसके जीवन की धारा कोई पुरुष किस तरह तय कर सकता?

ये स्त्रियों के नव-निर्माण का दौर हैं जहाँ वो दूसरों पर आश्रित होने की अपनी प्रवृति को ही नहीं त्याग रही बल्कि हर वो काम कर रही जिसे उसके लिये कर पाना नामुमकिन नहीं होता परंतु सदियों से उसके दिमाग की ‘प्रोग्रामिंग’ ही इस तरह से की गयी कि उसे भी लगने लगा कुछ कार्य उसके लिये नहीं बने या वो सिर्फ घर-गृहस्थी के लिये ही बनी लेकिन जब उसने इस ‘कोडिंग’ को बदलने का प्रयास किया तो पाया कि ये उतना मुश्किल भी नहीं जितना उनकी माँ-दादियों को लगा जिन्होंने उन वचनों का अन्धानुकरण उन्हें वेदवाक्य मान किया पर, जब उसे अहसास हुआ कि ये सब पुरुषों के द्वारा लिखे गये ग्रंथ-पुराण तो फिर उसने अपने ‘सॉफ्टवेयर’ को बदलने की मुहीम चालू की जिसके ‘आउटपुट’ ने उसके आत्मविश्वास को बल दिया तो उसने नये ‘इनपुट्स’ देने की प्रक्रिया को जारी रखा जिससे कि उसे पूर्णरूपेण बदल सके आख़िरकार अब वो ‘इंजीनियर’ भी तो हैं फिर क्यों न अपने लिये ‘प्रोगामिंग’ स्वयं ही करें... तो ‘फिमेल रेनोवेशन’ की इस लम्बी चलने वाली प्रोसेस के रिजल्ट भी धीरे-धीरे आने लगे हैं जिसे पूरी तरह आने में थोड़ा वक्त जरुर लगेगा पर, आयेगा जरुर... वो भी दिये गये निर्देशों को लोड करने बाद ‘न्यू सोफ्टवेयर सक्सेसफुली इंस्टालड’ मेसेज के साथ... अस्तु... तथास्तु... :) :) :) !!!                
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०८ मार्च २०१

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