गुरुवार, 22 जून 2017

सुर-२०१७-१७२ : कामुकता को सिर्फ देह से मतलब उसकी अवस्था चाहे फिर जो हो... तो क्या इनके प्रति हमारा कोई दायित्व नहीं ???


नरसिंहपुर के स्टेशन क्षेत्र में शाम 6 बजे घटी एक सच्ची घटना कि मानसिक रूप से विक्षिप्त एक महिला सड़क पर एक बच्ची को जन्म देती हैं परंतु किसी को भी अपनी नवजात बच्ची छूने नहीं देती जबकि खबर मिलते ही 108 तुरंत पहुँच जाती हैं...

जितनी चौंकाने वाली ये घटना हैं उतना ही मन में कई तरह के सवाल भी उठाती हैं...

सबसे पहला तो यही कि उसे इस अवस्था तक पहुंचाने वाला वो कौन वहशी दरिंदा होगा जिसने इंसानियत को ताक पर रखकर उसके साथ दुष्कर्म किया होगा ?

दूसरा कि इस तरह के लाचार और बेबस लोगों के लिये सरकार के पास कोई व्यवस्था भी हैं या अब कुछ केवल कागजी कार्यवाही जिसका खामियाजा एक नहीं कई ज़िंदगियों को भुगतना पड़ता हैं ऐसे में उसका कोई दायित्व बनता हैं या नहीं ??

वे सामाजिक संगठन जो कि इनको न्याय दिलाने की बात तो जोर-शोर से करते हैं पर, जब अवसर आता तो नदारद हो जाते तो क्या इसमें वे भी दोषी नहीं ???

यूँ तो ऐसे अनेकों मामलों में न्यायालय स्वविवेक से संज्ञान लेकर खुद ही आगे आती हैं पर, वो भी लगता इन्हें इंसान नहीं समझती तो इसका मतलब इनके साथ किसी को भी कुछ भी करने का अधिकार मिल गया तो फिर कानून होने का लाभ क्या ????

सबसे बड़ा और अंतिम सवाल कि इनकी इस अवस्था के लिए जिम्मेदार कौन घर, समाज, व्यक्ति, हालात या व्यवस्था और इसका समाधान क्या हैं ???

सृष्टि निर्माण के साथ ही पंचतत्वों के मिश्रण से इंसान की रचना भी की गयी जिसमें विकारों का समावेश भी किया गया साथ ही मस्तिष्क की अनमोल सौग़ात से उसे ईश्वर की सर्वश्रेष्ठ कृति होने का गौरव प्राप्त हुआ कि वो जानवरों की तरह महज़ खाने-पीने को ही जीवन न समझे बल्कि दिमाग़ का इस्तेमाल भी करे परंतु मानव ने तो उसका जितना दुरुपयोग संभव था किया और कई मामलों में तो जानवर को भी पीछे छोड़ दिया क्योंकि इंसानियत तत्व जो इंसान की पहचान जब वो उसका ही परित्याग कर कोई कृत्य करे तो उस वक़्त वो जानवर से भी बदतर लगता हैं । कुछ ऐसा ही वाकया आज नृसिंह भगवान की परम पावन स्थली के स्टेशन क्षेत्र में दिखाई दिया जब एक मानसिक रूप से विक्षिप्त महिला जिसे अपने शरीर की सुध-बुध नहीं फिर भी इतनी चैतन्यता बाकी थी कि जब उसने नारीत्व की पूर्णता को साकार करते हुये एक शिशु को जन्म दिया तो मातृत्व के सुखद अहसास ने उसे न जाने किस तरह से ये बोध करा दिया कि ये उसकी देह का वो अंश जिसके बिना वो अधूरी हैं इसलिये वो किसी को भी अपनी बच्ची छूने नहीं दे रही थी जबकि इस अवस्था तक पहुंचने से पूर्व जब उसके साथ किसी हैवान ने अपनी नीचता का प्रदर्शन किया होगा तब उसके तन ने भले विरोध किया होगा पर, उसे ये भान न होगा कि इसके बाद वो किस तरह की परिस्थितियों से गुजरेगी । एक तो वैसे ही नारी रूप में जन्म उस पर मानसिक रूप से अस्वस्थता जो पैदाइशी थी या उसके विपरीत हालातों ने बनाई वही जाने इस देश में नीम चढ़े करेले वाले बात हो गयी कि जहां दिन के उजाले में लोग उसे दुत्कारते होंगे वहीँ रात के अंधेरे में उसे ढूंढते होंगे और इन सब बातों से अनजान वो वहशी लोगों की नजर में एक काया मात्र बनकर रह गयी होगी जिसका किसी ने इलाज़ कराने की तो न सोची होगी लेकिन अपनी हवस पूर्ति के बारे में विचार करने एक पल की भी देरी न की होगी ।

ये सोचते हुये भी रूह कांपती हैं कि किस तरह से उसने समाज के इन दोहरी मानसिकता के तले खुद को रोज पिसते देखा होगा और किस तरह से नारी देह के उन मुश्किल हालातों का सामना किया होगा जिसकी वजह से आज वो माँ बन सकी और उसको इस हालत में देखने वाले कैसे अ-मानव रहे होंगे जिन्होंने इसके अर्थ को तो ग्रहण किया लेकिन परमार्थ करने से बचते रहे जिसका दुष्परिणाम उस पगली ने भुगता जबकि अनगिनत पूर्ण रूप से स्वस्थ महिलाएं भी इस पूर्णानंद से वंचित रहती हैं । इस घटना ने ये सोचने पर विवश किया कि इस तरह के लाचार लोगों के लिये सरकार के पास क्या व्यवस्था हैं या उन्हें ऐसे ही सड़कों पर दरिंदों से नुचने के लिये छोड़ देगी या फिर समाज से कोई इनके लिए आवाज़ उठायेगा जिससे कि इन्हें भी सामान्य जीवन जीने का अवसर मिले जो इनका नैतिक अधिकार भी या फिर इस तरह के दृश्य यूँ ही सड़कों पर खुलेआम दिखते रहेंगे । अनेक मामलों में न्यायालय इस तरह के मामलों में स्वयं संज्ञान लेकर उचित कार्यवाही कर अपराधियों को उनके किये का दंड देती हैं तो क्या वो भी संभव नहीं ? राज्य सरकार इस तरह के लोगों के लिये क्या कोई कानून नहीं बना सकती कि उन्हें भी न्याय मिले और वो भी खुद को समाज का हिस्सा समझे न कि अभिशाप ।

ये तो खैर वे बातें हैं जहाँ दूसरों से अपेक्षा की जा रही या उन पर ऊँगली उठाई जा रही अब आते हैं खुद पर कि हम इनके लिए क्या कर सकते तो इसका कोई एक जवाब नहीं हो सकता क्योंकि हर व्यक्ति की सोच अलग फिर भी एक बात तो सब मानेंगे कि सभी इंसान तो इंसानियत के नाते ही सही हमें इनके लिये जो संभव प्रयास हो करना चाहिए ताकि भले वे मुख्य धारा में शामिल न हो सके लेकिन फिर भी केवल वहशियों के उपयोग का साधन बनकर न रह जाये और इसके लिए हम सबको अपने कर्तव्यों को भी समझना होगा सब कुछ दूसरों पर डालकर हम स्वयं को निर्दोष करार नहीं दे सकते इसलिये इस घटना का उल्लेख किया कि हम भी यहां पर उसके लिए जो कुछ संभव वो करने के प्रयास में लगे और आप सब भी यदि कोई ऐसे व्यक्ति को देखे या किसी ऐसे वाकये से सामना हो तो अपने हिस्से की जिम्मेदारी निभाने का प्रयत्न जरूर करना न कि कंधे उचकाकर और सब कुछ व्यवस्था के माथे पर चिपका पतली गली से निकल न जाना कि भले मानसिक रूप से विक्षिप्त हैं फिर भी वो जीवित इंसान हैं जिनकी यथासंभव सहायता हम सबका नैतिक फ़र्ज़ यदि हम समझे तो अब से जरा ध्यान दे कि अपने आस-पास इस तरह के लोग दिखाई दे तो उनको उन इंसान रूपी राक्षसों से बचाने का प्रयास जरूर करे जिससे कि न सिर्फ उसकी बल्कि आने वाली ज़िंदगी को भी बेमौत मरने से बचाया जा सके आखिर, यही तो जीवन की सार्थकता हैं क्या नहीं... :) :) :) !!!

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२२ जून २०१७

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