मुश्किल था
बहुत
ये तय कर पाना
कि
जो राह चुनी
मैंने
वो सबसे जुदा
हैं तो
किस तरह से
इस पर चलना हो
सकेगा
रजामंद नहीं था
कोई
कि एक राजकुमार
सन्यासी का
चोला धारण कर
हर सुख और
ऐशो-आराम त्याग दे
फिर भी जाना तो
था ही
तो रुकता किस
तरह
निकल पड़ा उस
काली अंधियारी
रात में
सबको सोता छोड़
कि लीक से हटकर
काम करना
सदैव कठिन होता
लेकिन जिसने
ठान लिया
फिर उसको कुछ
भी कभी
असंभव नहीं
लगता ।।
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
३० जून २०१७
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