बुधवार, 14 जून 2017

सुर-२०१७-१६४ : ‘रक्त’ इंसानियत का पर्याय... कर के दान बचाओ किसी की जान...!!!



आज ‘विश्व रक्तदान दिवस’ पर चार अलग-अलग स्थानों पर चार अलग-अलग जाति के चार लोग ‘राम’, ‘रहीम’, ‘जॉन’ और ‘जसप्रीत’ अपने अलग-अलग रक्त समूह वाले रक्त का दान करते है लेकिन वे नहीं जानते कि उनका खून कब, कहाँ और किसको दिया जायेगा और उन्हें इससे कोई सरोकार भी नहीं क्योंकि उन्होंने महज़ इंसानियत के नाते ही ये नेक काज किया इसलिये आगे उसका इस्तेमाल किसी की जान बचाने ही किया जायेगा केवल यही भाव उन सबके भीतर था और ये केवल उनका अपना कोई विशेष विचार नहीं था बल्कि वो हर व्यक्ति जो अपना ‘ब्लड डोनेट’ करता उसके भीतर कहीं यही भावना समाई होती और कभी-कभी तो रक्तदाता को ये भी ज्ञात होता कि जिसको अपना खून दे रहे वो उसके संप्रदाय का नहीं लेकिन फिर भी उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता और वो ख़ुशी-ख़ुशी अपना खून देता याने कि निःस्वार्थ पीड़ित मानवता की रक्षा ही हर रक्तदाता का एकमात्र संकल्प होता जिसे पूर्ण करने ही वो ये कदम उठाता यहाँ तक कि कुछ लोग तो नियम से एक निश्चित समय अन्तराल से इस प्रक्रिया को दोहराते क्योंकि वे जानते कि रक्तदान से उनके भीतर किसी तरह की कोई कमजोरी नहीं आयेगी बल्कि रक्त ही तेजी से बढ़ेगा और ये दान उनको स्वस्थ ही बनायेगा तो वे इसे अपने जीवन में इस तरह से अपना लेते जिस तरह रूटीन में शामिल गतिविधियों की उनको आदत हो जाती तो स्वतः ही वे अपने क्रम से संचालित होती रहती उसी तरह से ये भी उनकी जीवन शैली का एक हिस्सा बन जाती केवल जरूरत होती हर पहलू पर गंभीरता से विचार करने के बाद इसके लाभ को सही तरीके से समझ फिर सभी भ्रामक जानकारियों से परे हटकर इसे सहज तरीके से अपनी जिंदगी में शामिल करने की उसके बाद फिर उसे दोबारा इस विषय पर सोचने की आवश्यकता नहीं रहती क्योंकि इसके बाद उसकी सोच ही बदल जाती जिसे पुख्ता मोहर लगती जब उसके रक्त से किसी जरुरतमन्द की जान बचती तो फिर वो अन्य लोगों को भी इसके लिये प्रेरित करता ताकि अधिक से अधिक जरुरतमंदों का जीवन बचाया जा सके

१४ जून को जन्मे विश्व विख्यात ऑस्ट्रियाई जीवविज्ञानी और भौतिकीविद ‘कार्ल लेण्डस्टाइनर’ ने रक्त में ‘अग्गुल्युटिनिन’ की उपस्थिति के अनुसार इसे अलग अलग समूहों – ‘ए’, ‘बी’ और ‘ओ’ में वर्गीकृत कर चिकित्सा के क्षेत्र  में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया जिसके लिये उन्हें १९३० में ‘नोबल पुरस्कार’ से भी नवाजा गया तो उन महान वैज्ञानिक की मानव कल्याण के लिये की गयी उनकी इस अभूतपूर्व खोज की वजह से उनके जन्मदिवस १४ जून को ‘विश्व रक्तदान दिवस’ मनाया जाता हैं जिससे कि हम आज के दिन उनके प्रति भी अपनी कृतज्ञता ज्ञापित कर सके जिन्होंने ये साबित किया कि दिखने में केवल ‘लाल’ दिखाई देने वाला ‘लहू’ वास्तव में अपने आप में एक अलग चिकित्सा विज्ञान हैं और केवल उसके रंग को देखकर हम सभी व्यक्तियों को एक-दूसरे का खून नहीं दे सकते तो इस अत्यंत महत्वपूर्ण जानकारी की वजह से आज अनगिनत शारीरिक समस्याओं का निदान भी सम्भव हो सका हैं । विदेशों में तो भारत की तरह ‘कुंडली’ का मिलान न कर ‘रक्त समूह’ मिलाकर ही विवाह संपन्न किया जाता जिसके कारण पति-पत्नी बनने वाले जोड़े अपने भावी जीवन में आने वाली संभावित बीमारियों या शारीरिक जटिलताओं से बाख जाते क्योंकि रक्त समूह पर केवल शादी के बंधन से बंधने वाले दो अजनबी लोगों का ही नहीं बल्कि आने वाली पीढ़ी का भविष्य भी टिका होता तो ऐसे में यदि विवाह के पूर्व ही इसकी जाँच करा ली जाये तो बनने वाला परिवार स्वस्थ रहते हुये अपना सुखमय जीवन व्यतीत कर सकता लेकिन बहुत से लोग अभी भी वैज्ञानिक प्रमाणिकता के बावजूद भी इस थ्योरी की बजाय परंपरागत शैली में ही अपने भावी जीवन का निर्णय लेते लेकिन यदि वो इस पहलू को भी अपने वैवाहिक कार्यक्रम में शामिल कर ले तो फिर अपनी आने वाली संतान के स्वास्थ्य का बीमा करवा सकता शायद, यही वजह कि अपने देश में कई स्थानों एवं मजहब में ‘गौत्र’ जानने के बाद ही विवाह का निर्णय लिया जाता जिसके पीछे कहीं न कहीं यही एक कारण छिपा हुआ हैं जिसे अनजाने में हम अनदेखा कर रहे ।  

आज विश्व रक्त दान दिवस पर हम भी इसे दान करने का व्रत लेकर इंसानियत की रक्षा करने का वचन भी ले... :) :) :) !!!       
          
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१४ जून २०१७

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