अपनी
नौकरानी की
बिटिया
के चेहरे पर खिली
ख़ुशी
की कलियाँ देख
वे
हैरत में थी कि
किस
तरह वो
कचरे
में फेंके टूटे-फूटे
खिलौनों
को पाकर
उन्हें
बार-बार
छूकर
देख रही थी
चहक
रही थी
जबकि
उनकी अपनी बेटी
मंहगे
से महंगे
खिलौने
भी दिला दो तो भी
ख़ुशी
की ये झलक
नज़र
न आती
सच...
पैसे
से सिर्फ़
वस्तु
खरीदी जा सकती
लेकिन
सच्ची ख़ुशी
वो
तो अंदर से ही आती ।।
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२५ जून २०१७
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