सोमवार, 5 जून 2017

सुर-२०१७-१५५ : नहीं बचायेंगे अगर हम प्रकृति तो नहीं जी पायेगी आने वाली संतति...!!!


ओ प्रकृति...

धूप
छाया
फल
फूल
धरती
आकाश
झरने
पर्वत
नदियां...

सब कुछ तूने
बिन मांगे ही दिया
बिना ये सोचे कि
हमने तुझको
प्रतिदान क्या दिया ?

तू तो सदा
सब पर नेमतों की
अनवरत बरसात करती
सोचती हूँ...
तेरी इस कृपा का
कर्ज मैं कैसे चुकाऊं ?
मैं क्या लोटाऊ ??

तेरा ही तुझको देकर
खुद को किस तरह
बड़ा बताऊँ
बोल मैं क्या लोटाऊं ???

बेहतर हैं कि
जोड़कर दोनों हाथ
सर को झुकाऊं ।।
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सुबह-सुबह सूरज उगता तो साथ उसके सारी क़ुदरत भी जाग उठती और पंछी चहचहाने लगते तो उनकी इस मीठी बोली को सुनकर मानो समस्त ब्रम्हांड भी जागृत हो जाता और फिर शुरूआत होती अपनी-अपनी दिनचर्या की जहाँ पशु, पक्षी, पेड़-पौधे इस कुदरती घड़ी के काँटों संग अपने काम निपटाते वही दूसरी तरफ इंसान इन सबसे बेखबर अपने बिस्तर पर पीडीए रहता कि उसने खुद को प्रकृति से दूर ही नहीं किया बल्कि अपने फायदे के लिये उसका भरपूर दोहन भी किया जिसके परिणामस्वरुप जहाँ पहले मनुष्य की सेहत, आयु और व्यवहार प्राकृतिक होने की वजह से दीर्घ अवधि तक स्थिर रहता था वहीँ अब यंत्रों के अधिक इस्तेमाल और तकनीक की तरंगों से बनाये कृत्रिम वातावरण में एकदम अस्थिर और अप्राकृतिक हो गया हैं जो दर्शाता कि मनुष्य जब सहज-सरल होकर नैसर्गिक वातावरण में अपना जीवन व्यतीत करता तो उसका सकारात्मक प्रभाव उसकी प्रत्येक गतिविधि पर भी उतना ही सकारात्मक पड़ता यही वजह कि पशु-पक्षी कभी न तो बीमार पड़ते और न ही अपने अंगों के लिये किसी तरह की कोई अतिरिक्त मशीन का प्रयोग करते वे तो प्रकृति की घड़ी के साथ प्राकृतिक ढंग से चलते तो इससे उनकी जिंदगी भी उसके अनुरूप पूर्णरूप से तरोताज़ा और ऊर्जा से भरपूर होती जिसमें आलस्य, अनिद्रा, कामचोरी जैसे दुर्गुणों के लिये कोई स्थान नहीं होता जबकि हम यंत्रों के बीच रहकर खुद एक यंत्र बन जाते और मशीनों पर निर्भरता हमें धीरे-धीरे एक कमजोर लाचार पराश्रित रोबोट में तब्दील कर देती जिसके जीवन का कोई भरोसा नहीं होता
अपनी खराब आदतों व स्वार्थीपने के चलते आज हमने अपने आस-पास के पर्यावरण का ऐसा हाल कर दिया कि उसमें हमारी क्षमतायें तो नकारात्मक रूप से प्रभावित हुई ही साथ ही साथ प्रकृति की संतानें निरीह जानवर-पक्षी, नदी-तालाब, झरने-पहाड़ आकाश-धरती पर भी विपरीत असर हुआ जिसके कारण वे सब तो नष्ट हुये ही साथ हमारे भी विनाश का दिन नजदीक आ गया क्योंकि वे सब जो हमारे जीने के लिये साँसों की तरह जरूरी हवा, पानी, आग़, मिट्टी, आकाश उन सबको बर्बाद कर दिया जिसकी वजह से वे तो दूषित हुये ही और उनके साथ ही बहुत सारी प्राकृतिक संपदा भी नष्ट हो गयी तो ऐसे में प्रश्न उठाना स्वाभाविक कि जब हमें ही शुद्ध हवा, पानी नसीब नहीं हुआ तो हमारी आगे आने वाली पीढ़ी की क्या स्थिति होगी ??? ये वो सवाल जिसका जवाब हम सबको पता और आश्चर्य कि समाधान से भी हम सब अवगत लेकिन करे कौन ? पहला कदम कौन उठाये?? यदि हमें ही ये सब करना तो फिर सरकार क्या करेगी ??? जैसे सवालों को तो हम हल कर पाते नहीं फिर दूसरों से क्या उम्मीद करें कि वे उजाड़ जंगल को पुनः बसा सकेंगे ये तो हम सबको ही मिलकर करना होगा तभी हम आपनी आगे आने वाली पीढ़ी को कुछ देकर जा पायेंगे नहीं तो वो हमें कोसेगी कि हमने उसे जनम ही क्यों दिया जब जीने के ये जरूरी साधन ही शेष नहीं रहे थे और तब हम उसके इस सवाल का चाहकर भी कोई उत्तर नहीं दे पाएंगे कि अपनी करतूतों का खुद किस तरह से बखान करे लेकिन यदि अब भी सचेत हो गये तो निसंदेह हमारी संतति हम पर गर्व करेगी कि हमने अपने हाथों से उसके लिये वो वातावरण रचा जहाँ वो न केवल साफ़ हवा में सांस ले सकती बल्कि निरोगी काया और दीर्घ आयु के साथ अपने सभी कामों को अंजाम दे सकती हैं तो आज से यही हमारा लक्ष्य होना चाहिये कि हम सिर्फ अपने बारे में ही नहीं अपने आने वाली पीढियों की सुरक्षा के बारे में भी विचार करें और उसके अनुरूप आवश्यक कदम भी उठाये जिससे कि प्रकृति भी हमें अपना सहयोगी समझ हमारी सहायता करे ।          

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पेड़ों से चलती हैं
हर साँस हमारी
पेड़ों से मिलती हैं
हवा जीवनदायिनी

पशु-पक्षी बनाते
पृथ्वी का संतुलन
सहजीवन करता
प्रकृति का सरंक्षण

जल, हवा, धरती
सबके लिये जरूरी
प्रदूषण से बन रही
घातक और जहरीली

सबको ये बताना हैं
पर्यावरण बचाना हैं
इस तरह से आज हमें
पर्यावरण दिवस मनाना हैं ।।
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आज विश्व पर्यावरण दिवस पर हमने सिर्फ भाषण बाजी या बधाइयाँ देकर ही इसे मनाने का कोरा दस्तूर बहर कर लिया तो समझो कृतध्नता का चरम छू लिया कि हमें तो अपने आने वाली नई पीढ़ी की जरा-भी परवाह नहीं क्योंकि जो व्यक्ति अपनी जीवनदायिनी प्रकृति माँ की ही फिकर नहीं करता वो भला अपनी संतान के बारे में क्या सोचेगा तो अब जरा तरंगों से बने कृत्रिम वायुमंडल से बाहर निकले और ये इस नेक काज की दिशा में अपना पहला कदम बढ़ाये तब पर्यावरण दिवस मनाये... :) :) :) !!!
    
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०५ जून २०१७सुर-२०१७-

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