जाने वो कैसे लोग थे जिनके प्यार को प्यार मिला
हमने तो जब कलियाँ मांगी काँटों का हार मिला...
गीत की स्वर लहरियां एफ.एम. से निकलकर जैस ही
‘कामिनी’ के कानों में पड़ी वो बीते दिनों में खो गयी जब ‘अशोक’ ने बड़े अंदाज़ से
कॉलेज के वार्षिकोत्सव मेहमानों से भरी महफ़िल में सबके सामने उससे अपने प्रेम का
इज़हार किया था जिसे सिवाय उसके कोई भी न समझ सका क्योंकि उसने उसे गीत में जो ढाल दिया
था मानो वो गीत अभी भी कहीं बज रहा हो,
न हम तुम्हें जाने, न तुम हमें जानो
मगर, लगता हैं कुछ ऐसा मेरा हमदम मिल गया...
उस दिन उसके दिल में जिस तरह से प्रेम की
कोंपलें फूटी थी उसने उसे अहसास कराया कि वो भी ‘अशोक’ से प्रेम करती हैं तो फिर
उसने भी एक दिन जब वो उसे मंदिर में अचानक अकेले मिला तो उसके प्यार का जबाव प्यार
से कुछ यूँ दिया था,
छूपा लो यूँ दिल में प्यार मेरा
कि जैसे मंदिर में लौ दिये की...
उसके बाद जब दोनों के बीच चाहतों का सिलसिला
शुरू हुआ तो फिर इसी तरह गीतों के माध्यम से वो एक-दूजे को याद किया करते थे और
उनका कोडवर्ड सोंग था,
याद किया दिल ने कहाँ हो तुम ?
झूमती बहार हैं कहाँ हो तुम ??
तब वो बड़े नाज से इतराकर कहती थी, ‘प्यार से
पुकार लो जहाँ हो तुम’ और इस तरह ये गीत उनके जीवन का हिस्सा बन गया था और जब भी
किसी एक को दूसरे की याद आती वो इसी तरह से गीत गुनगुनाते तो महसूस होता कहीं किसी
कोने से हवाओं में उड़ता जबाव आ गया हो
इसके बाद दोनों ने मिलकर अपने भावी जीवन के
स्वप्न देखने शुरू कर दिये तब हाथों में हाथ लेकर उन्होंने एक-दूजे से कहा,
छोटा-सा घर होगा बादलों की छाँव में
आशा दिवानी मन में बांसुरी बजाये...
सबकी नजरों से छिपकर उनकी प्रेम कहानी धीरे-धीरे
आगे बढने लगी किसी को कानों-कान तक खबर न हुई पर, कहते हैं न इश्क़-मुश्क़ छिपाये
नहीं छिपते तो जब ‘कामिनी’ की आँखों ही नहीं होंठों ने भी गाना शुरू कर दिया कि,
पिया ऐसो जिया में समाये गयो रे
के मैं तन-मन की सुध-बुध गंवा बैठी
तब पहले उसकी माँ फिर उसके बाऊजी को शक हो गया
कि कुछ तो गड़बड़ हैं तो बस ऐसे में उस जमाने का एक ही हल था शादी कर दो तब तो लड़की
की न मर्जी पूछी जाती थी न ही मन जानने का प्रयास किया जाता तो उसे भी ब्याह दिया
गया और वो मन मारकर पिया के घर आ गयी,
चली गोरी पी से मिलन को चली
नयना बावरिया मन में सांवरिया
और, अपने सांवरे की छवि अंतर में बसाकर वो आ गयी
फिर कभी ‘अशोक’ से मिलना नहीं हुआ पर, आज इस गीत ने उसे उस दर्द की याद दिला दी...
आज इस अधूरी गीतों भरी प्रेम कथा के माध्यम से ‘हेमंत
दा’ को उनकी जयंती पर गीतमय श्रद्धांजली’... :) :) :) !!!
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
१६ जून २०१७
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