न जाने क्यूँ ?
‘बीमा कंपनी’ का काम
मुझे सुहाता न था
रोज-रोज लोगों से मिलना
उन्हें ‘पालिसी’ के बारे में बताना
‘प्लान’ के लिये राजी करना
याने कि एक ही बात को
बार-बार और लगातार दोहराना
मुझे पसंद न था ।
या तो मैं एक बहु थी
या फिर मैं एक छोटे शहर में रहती थी
पता नहीं क्या इसकी वजह थी?
लेकिन, अब मुझे ये काम नहीं करना
ये मैंने सोच लिया था ।
दूसरे दिन जाकर,
अपनी कंपनी के मैनेजर से बोली,
“श्रीमान मुझे माफ़ कीजिये
और इस नौकरी से मुक्त कर दीजिये” ।
सुनकर मेरी ये बात
मैनेजर कुछ मुस्कुराया
और फिर मुझे यूँ समझाया-
“आप तो इतनी प्यारी
इतनी मासूम नजर आती हो
अपने रूप-सौंदर्य ही क्या
मीठी बातों से भी सामने वाले पर
एक सम्मोहन करती हो
तो फिर क्यों इस छोड़ना चाहती हो?”
सुनकर उनकी ये बात,
मन जो कुछ धुंध थी वो भी
एकाएक छंट गयी
सारी तस्वीर जेहन में साफ हो गयी
कि क्यों मेरे बार-बार मना करने पर भी
अच्छा परिणाम न देने पर भी
उन्होंने मुझे अब तक निकाला नहीं
तब तिमिलाकर मैं उठी और हाथ जोड़कर बोली,
“मैं ये काम अपनी खुबसूरती या
लुभावनी बातों से नहीं
कंपनी की शर्तों और स्कीम के अनुसार
जैसा बताया गया करती थी
तब आपकी इस सोच से परिचित न थी
इसलिये नौकरी छोड़ने से पहले बता देती हूँ
खुबसूरती नहीं योग्यता मेरी पहचान हैं
ये महज़ दिखावा नहीं मेरा स्वाभिमान हैं”
जानती थी कि नारी की सुंदरता
उसकी अदाओं और मनमोहक बातों से
अपने उत्पाद बेचने वाले व्यापारी
इन बातों का मर्म न समझेंगे कभी मगर,
ख़ुशी थी कि मैं उस अभियान का हिस्सा नहीं ॥
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२९ जून २०१७
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