शुक्रवार, 2 जून 2017

सुर-२०१७-१५३ : हरफनमौला कलाकार ‘राज कपूर’ !!!


१ जून जहाँ अभिनय सम्राज्ञी ‘नर्गिस’ के जन्म की तारीख तो वहीँ २ जून फ़िल्मी दुनिया के सबसे बड़े शोमैन ‘राज कपूर’ की पुण्यतिथि जो एक-दूसरे से इस तरह जुड़े कि ‘राज-नर्गिस’ दो नाम नहीं बल्कि ‘अर्धनारीश्वर’ के साकार रूप की तरह एक शख्सियत नजर आते जहाँ एक के बिना दूसरे का नाम ही नहीं जीवन भी अधूरा लगता तभी तो अपनी अलग-अलग संपूर्ण जिंदगियों में भी दोनों को कमी का अहसास होता और दोनों के मन में एक-दूजे के प्रति जो भी भाव था वो रजत पर्दे पर अभिनय नहीं वास्तविकता दिखाई देता था जिसे देखकर हर प्रेम करने वाले को लगता जैसे उसमें उनका रूप झलकता हो तो वे भी उन्हीं की तरह हाथों में हाथ लेकर भरी बरसात में ‘प्यार हुआ, इकरार हुआ...’ गाते खुद को ‘राज-नर्गिस’ समझने लगते फिल्म दर फिल्म दोनों के बीच प्रेम की भावना भी बढ़ती ही जाती जिसमें एक-दूसरे के प्रति सम्मान भी प्रदर्शित होता जो उनकी इस चाहत को अलौकिक बनाता था क्योंकि कोई भी मुहब्बत जब देह से परे होकर आँखों से टपकने लगती तो उसका पारसमणि स्पर्श तन को कंचन बना देता जिसके नूर से व्यक्तित्व आभामंडल से घिरी एक तेजोमयी आत्मा में परिणित हो जाती और जब रिश्ता रूहानी बन जाता तो फिर जुदाई में भी नजदीकी महसूस होती और मौत का डर भी मन से दूर हो जाता कि रूह तो कभी मरती नहीं वो तो उसके भीतर समाये इश्क़ को जनम-जनम अपने साथ लिये भटकती तो ऐसा ही कुछ संबंध उनके मध्य भी दृष्टिगोचर होता था

जबकि हम लोगों ने उनको केवल सिनेमा के स्क्रीन पर ही देखा तब भी किसी अंदरूनी हिस्से में उनसे एक आत्मिक जुड़ाव पाते और लगता कि ‘राज-नर्गिस’ महज़ फिल्म में भूमिका निभाने वाले दो किरदार नहीं बल्कि अपने असल रूप में हैं जिनका प्रेम हमको भी छूता हैं शायद, यही वजह कि उनकी जोड़ी आज भी उतनी ही सदाबहार और हिंदी सिनेमा की सबसे लोकप्रिय जोड़ी मानी जाती जिसके उस तिलस्म को तोड़ पाना किसी के वश की बात नहीं कि वो जज्बात तो भीतर से स्वतः ही ज़ाहिर होते थे उनके गहरे लगाव को उनकी जन्म-मृत्यु से जोडकर भी देख सकते कि दो भिन्न तिथि व महीने में जन्मे ये कलाकार जब एक बार मिले तो फिर फ़िल्मी दुनिया के इतिहास में एक स्वर्णिम अध्याय बन गये जिसे मिटा पाना कभी भी संभव नहीं होगा और जब-जब भी ये तारीखें आयेंगी हम उनको याद करेंगे । इन तारीखों का कालान्तर में इस तरह से जुड़ जाना भी एक संयोग कि जो काल्पनिक जगत में भले एक-दूजे के साथ एक ड़ोर से बंधे थे लेकिन वास्तविक दुनिया में तो ये संभव नहीं हो पाया तो बाद मरने के इस तरह करीब आ गये फिर भी कोई कमी शेष तो बीच में एक रात की दुरी अब भी बनी हुई हैं लेकिन शायद, उस अदृश्य जगत में वो एक हो गये हो कि प्रेम तो कभी मरता नहीं बस, उसकी किस्मत में इंतजार न लिखा हो तो फिर मिलन तो किसी न किसी तरह से हो ही जाता चाहे वो इस तरह से ही क्यों न हो ।

आज अभिनेता, निर्देशक, संगीतकार और महान कलाकार ‘राजकपूर’ की पुण्यतिथि पर यही ख्याल सुबह से आ रहा था तो फिर उसी को शब्दों में ढालकर उनको श्रद्धांजलि दे दी... :) :) :) !!!              
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०२ जून २०१७

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