मंगलवार, 13 जून 2017

सुर-२०१७-१६३ : लघुकथा : कोठा_मधुशाला_और_समाज़



मधुशाला ही नहीं कोठे में भी कोई किसी का धर्म नहीं पूछता सबको सिर्फ अपनी भूख-प्यास मिटाने से मतलब होता हैं...

वो तो ये भी नहीं पूछते या देखते कि उनसे पहले उस पैमाने से किसने मय पी या कौन तवायफ़ के साथ समय बिताकर गया उन्हें तो सिर्फ अपनी हवस मिटाने से मतलब...

भुख, प्यास और हवस ये तीन जरूरतें ऐसी जिसके आगे कोई मज़हब नहीं देखा जाता जब भी ये हद से जियादा बढ़ जाये... ऐसे में साला समझ में नहीं आता कि फिर किसी को छूने या किसी के घर खाने-पीने से धर्म कैसे भ्रष्ट हो जाता हैं...

पूजा को मंदिर जाते पंडित से जब किन्नर टकराकर उनके ऊपर गिर गया तो उनका गुस्सा उबला जिसकी प्रतिक्रिया स्वरुप उसके मुंह से भी ये सब निकल पड़ा ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१३ जून २०१७

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