गुरुवार, 15 जून 2017

सुर-२०१७-१६५ : “काश, वो नजर... पलट जाती...!!!”


मेरी नजरें
देख रही थी उसे
जबकि उसकी टिकी थी
किसी और पे
और जिन पर पर
उसने बड़ी देर से जमाई थी
वो निगाहें भी तो
निहार रही थी
अगले बैठे शख्स के
अक्स को
काश, कि पलट जाती
ये सभी तो फिर
किसी को भी
एकतरफ़ा इश्क़ का
दर्द सहना नहीं पड़ता

मगर,
ये आखें भी न
जिसे पसंद करती हैं
उसके सिवा किसी और को
देखती ही नहीं
कभी पलट भी जाये तो
इस कदर
भरी होती हैं
अश्कों की नमी से
कि देखकर भी
उन मुंतजिर निगाहों को
पहचान नहीं पाती
और कभी-कभी तो छवि ही
धुंधली दिखाई देती हैं

मान लो,
चार हो ही गयी उनसे तो भी
उनमें पहले प्यार वाली
वो अनुभूति कहाँ होती हैं ???
 

गर, किसी तरह
पिछला खुश हो जाये
कि आखिर उसकी दुआ
कुबूल हो गयी
जो उसे उसकी मुहब्बत मिल गयी
फिर भी कहीं न कहीं
पहली ही बार में
पसंद न बन पाने की
इक टीस तो बाकी रह जाती हैं

फिर भी...
खुशनसीब हैं वो लोग
जिनको  वापिसी में ही सही
अपनी वो खोयी चाहत मिल गयी  
बनिस्बत उनके कि
जो तलबगार बन राह में
पलकें बिछाये बैठे ही रह गये ।  

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

१५ जून २०१७

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