मंगलवार, 27 जून 2017

सुर-२०१७-१७७ : प्रेम करते दो, फिर निर्णय एक का क्यों ???


प्रेमी :
आय लव यू

प्रेमिका :
आय लव यू टू

चाहे प्रेमी इज़हार करे या प्रेमिका लेकिन ये तो तय हैं कि दोनों के ऐसा कहने के बाद ही वो ‘प्यार’ संपूर्ण होता हैं याने कि किसी एक के कहने या सोचने मात्र से कुछ नहीं होता जब तक कि दूसरा उस प्रेम निवेदन पर अपनी स्वीकृति की मोहर नहीं लगाता लेकिन जब किसी भी वजह से इसी प्रेम को खत्म करने का निर्णय लिया जाता तो अमूमन वो इकतरफा ही होता जिसमें अगले की मंजूरी की आवश्यकता न के बराबर रह जाती क्योंकि जिसे इस संबंध को आगे निभाने में किसी तरह की समस्या आती या किसी भी अन्य वजह से वो अब इस सिलसिले को जारी नहीं रखना चाहता तो उस स्थिति में कभी तो कहकर तो कभी किसी संदेश के माध्यम से और कभी-कभी तो बेरुखी से इसे ज़ाहिर किया जाता तब वो ये नहीं समझता कि जिस तरह दो के इकरार करने से ही ‘प्यार’ पूर्ण हुआ था तब केवल किसी एक के फैसले से वो समाप्त किस तरह हो सकता ? क्या अगले की इच्छा अब कोई  मायने नहीं रखती या सिर्फ़ अपने स्वार्थ से मतलब दूसरे की जान जाये या दुखों का पहाड़ टूटे हमें क्या ???

ऐसे अनगिनत प्रश्न उभरते जब किसी भी दो जीवन का फ़ैसला केवल किसी एक के द्वारा लिया जाता जिसमें इजहारे इश्क़ के समय तो सामने वाले का मंतव्य सर्वोपरि होता लेकिन रिश्ता तोड़ते समय अकेले एक के ही निर्णय को तवज्जो दी जाती चाहे फिर पृथक हुआ हिस्सा चीखता-चिल्लाता रहे या सवाल पर सवाल करते रहे लेकिन उससे विलग होने वाले धड़े को कोई फर्क नहीं पड़ता और न ही उसकी तड़फ या दर्द से ही उसके दिल में कोई तकलीफ़ होती जबकि उसके पहले तक तो किसी एक के सांस लेने या न लेने तक से दूसरे की जान पर बन आती थी तो फिर अलगाव के फैसले से एकदम से ऐसा क्या हो जाता कि कभी जिसकी आँखों में आंसूओं की नमी की कल्पना मात्र से दिल दहल जाता था अब उसकी तकलीफ़, उसके जार-जार रोने का भी कोई असर नहीं होता तो ऐसे में यही ख्याल आता कि सच क्या था वो जो इसके पहले महसूस किया या फिर जो अब सहना पड़ रहा और यदि वो सच था तो फिर ये झूठ होगा और यदि ये सच हैं तो फिर वो झूठ होगा मगर, अफ़सोस कि दोनों ही ‘सत्य’ लेकिन समझ नहीं आता कि किस तरह समय के रुख ने उनके अर्थ बदल दिये ऐसे में जो बेहद संवेदनशील और भावुक वे इस तरह की पीड़ादायक परिस्थितियों से सामंजस्य नहीं बिठा पाते और या तो पागल या मनोरोगी या फिर आत्महत्या का शिकार हो जाते क्योंकि एकाकी हो जाने के बाद वो अकेले-अकेले ही उन बीते दिनों की बातों को याद करते रहते और खुद से ही सवाल करते रहते कि उनके मन में जो भी प्रश्न उमड़ते-घुमड़ते उनका वाज़िब जवाब देने के लिये वो शख्स हाज़िर नहीं होता जिसके पास ये होते और यदि ऐसे में उस दुखी हृदय को समझने या समझाने वाला कोई हितैषी या शुभचिंतक भी साथ न हो तो फिर उसका संभल पाना लगभग नामुमकिन होता

‘प्रेम’ की ये सबसे जटिल और असहनीय अवस्था होती और जिस किसी को भी इन्हें एकाकी झेलना पड़ता वही जान सकता कि इन आत्मघाती हालातों से किस तरह वे खुद को बचाये कि वेदना की इस घड़ी में जिसने हमेशा साथ देने का वादा किया था वही इनका जिम्मेदार भी तो ऐसे में जबकि जिसने आपको सुख ही सुख देने का वचन दिया हो वही दुःख ही दुःख दे तो फिर शिकवा और शिकायत किससे करे ? सिवाय इसके कुछ भी शेष नहीं कि खुद ही खुद से बात करें और खुद ही जवाब भी दे... दीवारों से सर टकराते फिरे... या दर्द के इन तूफानों को पार कर इतना मजबूत बने कि फिर कोई दुबारा ऐसा न कर सके... :) :) :) !!!                     
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

२८ जून २०१७

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