शनिवार, 3 जून 2017

सुर-२०१७-१५३ : लघुकथा : 'जनम दिया, जीवन नहीं...'!!!


'सविता' ने झोपड़ी में घुसते ही सामने 'बिरजू' को शराब पीते देखा तो उसके पास जाकर बोली, आपको पता 'कमली' के आदमी ने लड़की होने के डर से एक बार फिर उसका बच्चा गिरा दिया । समझ नहीं आता कैसे दुष्ट और शैतान लोग हैं ये जो बार-बार ऐसा नीच काम कर रहे । अरे, हमारी भी तो दो बेटियां 'दुर्गा' और 'पारो' लेकिन हमने तो कभी ऐसा गंदा काम नहीं किया छि लानत हैं इन पर और ऐसा कहकर वो रसोई के काम में लग गयी ।

कोने में बैठी छोटी बेटी 'पारो' चुपचाप पढ़ते हुये उनकी बातें सुन मुंह बिचका रही थी क्योंकि उसके माता-पिता ने उन दोनों बहनों को जन्म तो दिया लेकिन जीवन नहीं दे पाये । माना गरीब थे फिर भी जो कर सकते थे वो भी नहीं किया और बड़ी बहन चौदह की नहीं हुई कि उसकी शादी कर दी जो अगले ही साल बच्चे को पैदा करते समय मर गयी । अब उसके माँ-बाप चाहते हैं कि वो उसके पति से शादी कर ले भले उसकी उम्र बारह ही क्यों न हैं इससे क्या फर्क पड़ता ।

उसे लगता कि वो पढाई में अच्छी और यदि पढ़ने मिले तो वो कुछ बन सकती हैं ऐसे में उसे समझ नहीं आ रहा था कि वो क्या करे कि इन नर्क से मुक्ति मिले । अभी वो सोच में गुम ही थी कि उसके जीजा भी आ गये और उसके पिता के पास बैठ उसे ललचाई नजरों से देखते हुये बोले, बाबा पंडितजी कह रहे थे परसों अच्छा मुहूर्त शादी कर लो और वैसे भी दूसरी तो कौन-सी धूमधाम से करनी सात फेरे लेकर लड़की को घर ले आ ।

इसके पहले कि बापू कुछ कहते पारो बोल पड़ी कि, चाहे कुछ हो जाये बापू मैं दीदी की तरह अपनी ज़िंदगी बर्बाद नहीं करने वाली । मैं तो पढ़-लिखकर अपना जीवन बनाउंगी जो आप दोनों ने हम दोनों बहनों को नहीं जीने दिया आप से अच्छा तो वो कमली मौसी का पति जिसने बच्ची को जन्म ही नहीं लेने दिया कम से कम वो ऐसी मौत से तो बच गयी ।

मुझे जीना हैं जो संभव होगा पढाई करने से ये मैंने जान लिया हैं तो अब मेरी चिंता छोड़कर आप लोग ये कोशिश करे कि जितनी ज़िंदगी बची उसे बर्बाद न करे वैसे भी जन्म देना ही सब कुछ नहीं जीवन देना भी जरुरी हैं नहीं तो इससे अच्छा लड़कियों को पैदा ही न करो । उसकी बात सुनकर माँ ने खाना बनाना छोड़ पहले उसके जीजा को झोपड़ी से बाहर किया फिर उसके पास आ गई और उसे सीने से लगा सर पर आश्वासन भरा हाथ रख दिया तो उसे यूँ लगा मानो जीवन मिल गया हो ।

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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

०३ जून २०१७

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