शुक्रवार, 11 अगस्त 2017

सुर-२०१७-२२१ : नौजवानों में जगाये देशप्रेम की चाहत... युवा ‘खुदीराम बोस’ की शहादत...!!!


आज हमारे देश की जनसंख्या विश्व में अपना भले शीर्ष स्थान नहीं रखती लेकिन दोयम दर्जे पर तो आती हैं उसमें भी युवाओं का प्रतिशत तो पूरे जगत में यही सर्वाधिक पाया जाता हैं लेकिन जहाँ विदेशों में नौजवान बड़े-बड़े कारनामे कर रहे या अपना उद्यम स्थापित कर दुनिया में अपना नाम कर रहे वही हमारे यहाँ के अधिकांश युवक या तो लडकियाँ छेड़ रहे या फिर किसी अपराध लिप्त पाए जा रहे केवल चंद ही हैं जिन्हें कि देश की परवाह हो वरना तो किसी को अपने आप से ही फुर्सत नहीं जबकि ऐसा भी नहीं कि इस समय देश को इस युवाशक्ति की आवश्यकता नहीं लेकिन सारे देश की बागडोर अधेढ़ या बुजुर्ग नेताओं के हाथ में हैं और हमारे ये नव-वयस्क मतदाता का अधिकार पाकर चुनाव आने पर सिर्फ़ वोट देकर अपनी फर्ज अदायगी से मुक्त हो रहे कि उन्हें ये अहसास ही नहीं कि १८ साल का होने पर उन्हें जो मतदान का अधिकार प्राप्त हो रहा वो महज़ संविधान से प्राप्त होने वाली एक सुविधा मात्र नहीं बल्कि एक जिम्मेदारी भी हैं जिसका सदुपयोग यदि सोच-समझकर नहीं करे तो फिर बाद में पछताना पड़ सकता हैं पर, सोशल मीडिया ने तो उनको भड़ास निकालने भी मंच दे दिया तो फिर काहे की फिकर वे वहां जाकर देश के कर्णधारों को गरियाते पर, वे खुद इस तस्वीर को बदलने में अहम भूमिका निभा सकते इसके बारे में विचार नहीं करते कि लिखना या बोलना करने से ज्यादा आसान लगता तो उसे अपना लेते और यदि कोई उन्हें समझाये या उनसे अपेक्षा रखे तो ये उनसे बहसबाजी में लग जाते या ज्यादा हुआ तो उसे ब्लॉक मारकर सोचते कि चलो छुट्टी मिली

आजकल के ये नौजवान किसी की सुनना पसंद नहीं करते उन्हें तो बस, मौज-मस्ती या गेजेट्स में खोये रहना सुहाता या कुछ करना ही हुआ तो ये देश नहीं विदेश का वातावरण लुभाता तो अपनी प्रतिभा को यहाँ लगाने की जगह वहां पर बर्बाद करते तो इस तरह वही चंद जो शेष रह जाते वे अपनी तरह से अपने कर्तव्यों का पालन करते ऐसे हालातों में जबकि एक बार पुनः देश क नव-जागरण और परिवर्तन की जरूरत हैं ये जरूरी हैं कि हमारे देश की युवाशक्ति ये जाने कि वे अपनी प्रतिभा, अपनी ताकत, अपनी ऊर्जा का उपयोग केवल मजे के लिये न करे बल्कि ये देखे कि क्या करने को बाकी रह गया या क्या करना चाहिये जिससे कि हमारा देश भी विश्वपटल पर अपनी विशेष जगह बनाये ‘भारत’ को इसलिये नहीं जाना जाए कि यहाँ के लोग ‘इंटरनेट’ या ‘मोबाइल’ का प्रयोग दूसरे देशों की तुलना में अधिक आकर रहे तो उन्हें अहसास होगा कि भले हम आज़ाद हैं लेकिन कहीं-न-कहीं तो चाहे तकनीक के मामले में हो या यंत्रों की निर्भरता हो हम पराधीन हैं तो क्यों न कुछ ऐसा करे कि ये निर्भरता भी खत्म हो जाये

उस पर भी यदि ये महसूस हो कि उनकी उम्र अभी कम या सिर्फ मस्ती करने की तो अमर शहीद ‘खुदीराम बोस’ की कहानी याद कर ले जिसने महज़ १२-१३ साल की उम्र में ये जान लिया कि उसे देश के लिये क्या करना हैं और किस तरह से करना हैं तो एक बार अपने लक्ष्य को निर्धारित कर चल पड़े अपने मार्ग पर जब तक कि शरीर में जान बाकी रही अपने बाहुबल के दम पर अंग्रेज सरकार से पंगा लिया ये भी न सोचा कि अभी तो वे बहुत छोटे हैं उन्हें तो केवल ये दिख रहा था कि मेरा देश गुलाम हैं और मुझे स्वाधीनता संग्राम में अपनी भूमिका निभानी हैं तो सर पर कफन बंधकर निकल पड़े और जब १८ साल की मासूम उम्र में फांसी की सज़ा सुना दी गयी तो घबराए नहीं आज ही के दिन हंसते-हंसते फांसी पर झूल गये उनकी इस शहादत को हम भूले नहीं उससे प्रेरणा लेकर ये देखे कि हमें अपनी मातृभूमि के लिये किस तरह से अपना योगदान देना हैं यही उन शहीदों के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि होगी... जय हिन्द... वंदे मातरम... :) :) :) !!!
      
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© ® सुश्री इंदु सिंह इन्दुश्री
नरसिंहपुर (म.प्र.)

११ अगस्त २०१७

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