बिखर गये
वो दर्द भरे आखर
पढ़ते-पढ़ते ही
इबारत धुंधला गई
देखते-देखते
पिघल गया कागज़
रोती आँखों में
अक्स बनते-बिगड़ते रहे
सिसकियों के बीच
थरथराते होंठों पर कोई नाम
आकर भी न आ पाया
मगर, दूर कहीं
किसी दिल को करार आया
सलामत रहे सरहद पर
देश की ढाल बना मेरा प्रियतम
दुआ में उठे हाथों संग
किसी होंठ पर ये पैग़ाम आया
तो रोती आँखों को पोंछ
सैनिक ने खुद को
नई ऊर्जा से भरपूर पाया
चूम लिया टुकड़ा-टुकड़ा ख़त का
तो शर्मा कर मूंद ली आँखें
ख़त लिखने वाली ने
जब यूँ अपने पत्र का जवाब पाया
हवाओं ने दुरी का अहसास मिटाया
तो फिर न किसी ने भी खुद को
तन्हा अकेला उदास पाया ।।
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© ® सुश्री
इंदु सिंह “इन्दुश्री’
नरसिंहपुर (म.प्र.)
२१ अगस्त २०१७
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